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गतिमान एक्सप्रेस एवं भारतीय रेल - Gatiman express, hindi article by mithilesh, high speed trains, Indian Railways

गतिमान एक्सप्रेस के बारे में खूब प्रचार हुआ है तो इसको लेकर रेलमंत्री सुरेश प्रभु भी काफी उत्साहित दिखे, हालाँकि उनका उत्साह कहीं अति उत्साह में न तब्दील हो जाए, इस बाबत प्रश्नचिन्ह भी लगा हुआ है, जिसकी वाजिब वजहें भी दिखती हैं. खैर, पहले सकारात्मक बातें होनी चाहिए और सबसे बड़ी सकारात्मक बात यही है कि देश में रेलवे पर बढ़ रहे बोझ से निजात दिलाने के लिए गतिमान जैसी हाईस्पीड ट्रेन्स या बुलेट ट्रेन जैसी सुपर हाई स्पीड ट्रेन्स की योजनाएं हमें चाहिए ही चाहिए! इसी कड़ी में, आखिरकार हमारा एक सपना पूरा होता जरूरी दिखा है. हाईस्पीड ट्रेन में सफर करने का लोगो के अंदर उत्साह तो दिखा ही, इसके साथ-साथ दूर देश बसे लोगों को आपस में जोड़ने के लिए गतिमान जैसी सुविधा संपन्न ट्रेन हो तो सफर का मजा और भी बढ़ जायेगा. हालाँकि, यह ट्रेन अभी दिल्ली से आगरा तक ही शुरू की गयी है, किन्तु यह इस बात की याद जरूर दिलाती है कि हमारा रेल मंत्रालय 'तेज गति' की नॉन-स्टॉप ट्रेन्स को लेकर सजग है और शोधकार्यों को जारी भी रखे हुए है. जानकारी के अनुसार, गतिमान एक्सप्रेस देश की सबसे तेज गति से चलनेवाली अब तक की ट्रेन है, जिसकी रफ्तार 160 किलोमीटर प्रति घंटे की है. इसकी तकनीक की बात करें तो, ट्रेन में हाई पावर इमरजेंसी ब्रेकिंग सिस्टम, ऑटोमैटिक फायर अलार्म, यात्रियों के लिए जीपीएस पर जानकारी और कोच में स्लाइडिंग डोर जैसे फीचर्स की बात है तो, ट्रेन में लाइव टीवी की सेवा भी दी जाएगी. इसके अतिरिक्त, इस 5400 एचपी के इलेक्ट्रॉनिक लोकोमोटिव में 12 कोच होंगे, जिससे यह ट्रेन आपको सिर्फ 100 मिनट में दिल्ली से आगरा पहुंचा देगी. ट्रेन के डिब्बों में हॉटस्पॉट उपकरण लगाए गए हैं जिससे यात्री अपने स्मार्टफोन, टैबलेट या लैपटॉप पर सीधे इन सुविधाओं का निशुल्क लाभ उठा सकते हैं. 

आम भारतीय के लिए तो ये सपने जैसा ही था लेकिन वर्तमान सरकार द्वारा गतिमान एक्सप्रेस के माध्यम से देश के अन्य हिस्सों में भी इस तरह की तेज गति की रेलगाड़ियों की सम्भावना बढ़ गयी है. इसका श्रेय रेलमंत्री सुरेश प्रभु को भी जाता है, जिनके जुझारूपन और दूरदर्शिता का परिणाम गतिमान एक्सप्रेस को बताया जा सकता है. थोड़ा विस्तृत बात कहें तो करोड़ों भारतीयों के आवागमन का मुख्य  साधन है रेल. रोजगार के लिए, धार्मिक स्थलों के दर्शन एवं टूरिस्म के लिए लोग मुख्यतः रेलवे पर ही निर्भर हैं. भारतीय रेलवे हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गया है, इस बात में दो राय नहीं. भारतीय रेल का इतिहास 169 साल पुराना है और इसकी शुरूआत भारत में अंग्रेजों के शासन काल से हुई. भारतीय रेलवे के अंतर्गत पहली ट्रेन 16 अप्रैल 1843 को मुंबई से ठाणे के बीच चली थी. वर्तमान में, भारतीय रेलवे न केवल दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेल सेवा है बल्कि यह दुनिया में सर्वाधिक लोगों को नौकरी प्रदान करने वाले प्रक्रमों में से एक है. तथ्यों के लिहाज से देखें तो भारतीय रेलवे 63,974 किलोमीटर से अधिक लंबे रेल मार्ग के साथ दुनिया का चौथा सबसे विशाल रेल यातायात नेटवर्क संचालित करने वाला प्रक्रम है. अमेरिका, रूस, चीन तथा कनाडा के बाद भारतीय रेल का ही स्थान है. इसकी अहमियत हम इस बात से ही समझ सकते हैं कि भारतीय रेलवे एक अरब टन प्रतिवर्ष माल ढोने वाले रेल यातायात क्लब में शामिल हो गया है तो प्रतिदिन 19,000 ट्रेनों का संचालन करता है. इनमें से 12,000 ट्रेनें यात्री ट्रेनें हैं तथा 7,000 रेलगाड़ियां माल ढोने के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं. जाहिर है कि व्यापार के लिए भी भारतीय रेल रीढ़ की हड्डी की तरह बन चुका है, जो प्रतिदिन 26.5 लाख टन माल की ढुलाई करता है. 7,083 स्टेशनों के साथ भारतीय रेलवे के अंतर्गत प्रतिदिन 2.5 करोड़ लोग यात्रा करते हैं, जिसके लिए 16  लाख कर्मचारी कार्य करते हैं. 

इकोनॉमिस्ट पत्रिका के अनुसार, भारतीय रेलवे दुनिया की सांतवा सबसे बड़ा रोजगार प्रदाता भी है. इस भारी भरकम प्रतिष्ठान का राजस्व आधार प्रतिवर्ष 1,06,000 करोड़ रुपये से भी अधिक बताया जाता है. सुविधाओं की शुरुआत की बात करें तो, शुरू -शुरू में ट्रेनों में यात्रियों के लिए टॉयलेट की सुविधा भी नहीं थी, जिसे 1909 में ट्रेनों यात्रियों के लिए शुरू किया गया तो, लोगों को पहले टिकट के लम्बी लाइन लगानी पड़ती थी, घंटों धूप में खड़ा रहना पड़ता था. इस समस्या से मुक्ति मिली, 3 अगस्त 2002 को! पहली बार भारतीय रेलवे ने घर बैठे इंटरनेट के जरिए टिकट बुक कराने की सुविधा तब शुरू की. समय समय पर रेलवे ने तमाम सुविधएं प्रदान की है, लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई बन चुकी है कि बढती आबादी का बोझ उठाने में  रेलवे वैश्विक मानकों से काफी हद तक पिछड़ भी गया है! पहले की अपेक्षा लोगों का आवागमन काफी बढ़ गया है, जिसका असर देश के अनेक रेलवे स्टेशन पर आपको हमेशा ही नज़र आ जायेगा! होली दिवाली जैसे प्रमुख त्यौहार या शादी ब्याह के सीजन पर तो जैसे मारामारी हो जाती है और टिकट की ब्लैकमेलिंग जैसी गतिविधियाँ भी चरम पर पहुँच जाती हैं.आबादी के हिसाब से कम ट्रेनें, ट्रेनों की लेट-लतीफी, भेड़ बकरियों की तरह लदे लोग जैसे दृश्य आपको रेलवे में भी देखने को मिल जायेंगे. आप गूगल में अगर 'इंडियन रेलवे क्राउड' कीवर्ड से तस्वीरें सर्च करें तो उन्हें देखकर आपको यकीन करना मुश्किल होगा कि क्या वाकई यह वही इन्डियन रेलवे है, जिस पर देश का यातायात टिका हुआ है. हालाँकि, यह एक सच्चाई है, जिससे निपटने के लिए आपको कठोर और दूरदृष्टि वाले कदम न केवल उठाने होंगे, बल्कि तेजी से उठाने होंगे! वैसे साल 1988 में दिल्ली और भोपाल के बीच शताब्दी एक्सप्रेस शुरू की गई थी, जिसकी रफ्तार 150 किलोमीटर प्रति घंटा है, लेकिन ऐसे दो चार ट्रेनों से क्या फर्क पड़ने वाला है जहाँ की आबादी अरबों में पहुँच गयी है. 

गतिमान और शताब्दी जैसे हाई स्पीड ट्रेन्स का प्रयोग बहुत जल्दी शुरू होना चाहिए था, किन्तु इसमें रेलवे के राजनीतिक दुरूपयोग ने स्थिति और भी बदतर कर दी है, इस बात में रत्ती भर भी संदेह नहीं! जहाँ तक बात गतिमान एक्सप्रेस की है तो दिल्ली से आगरा तक के सफर में कोई स्टॉपेज न होना और इसका शताब्दी से भी महंगा किराया होना, कहीं इसकी सफलता पर प्रश्नचिन्ह न लगा दे, इस बात की चिंता स्वाभाविक ही है. इस बाबत मुझे एक उदाहरण समझ आता है, जिसका ज़िक्र करना चाहूंगा. दिल्ली जैसे शहर में, जहाँ की मेट्रो सेव न केवल अत्याधुनिक है, बल्कि बेहद सफल भी रही है, वहां एयरपोर्ट मेट्रो की सेवा पीपीपी मॉडल के तहत शुरू की गयी, जिसमें कम स्टॉपेज और अधिक किराया वसूलने की बात थी. बाद में घाटे के कारण वह कंपनी तो इस प्रोजेक्ट से निकल भागी, तो दिल्ली मेट्रो को भी इसके किराए में भारी कमी करनी पड़ी है. कम स्टॉपेज होने के कारण शायद आज भी यह सेवा मुनाफे में नहीं आ सकी है. जाहिर है, आप अव्यवहारिक हल देकर लोगों से नहीं जुड़ सकते हैं और अगर लोग किसी सेवा से नहीं जुड़ेंगे तो उसके असफल होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है. यह ठीक है कि आगरा जाने वाले विदेशी सैलानी बहुतायत में हैं, किन्तु सिर्फ उन्हीं के भरोसे गतिमान को छोड़ देना कहाँ की समझदारी है? वैसे भी यह दिल्ली के निजामुद्दीन स्टेशन से है, जहाँ तक दिल्ली मेट्रो का जुड़ाव सीधा नहीं है, जिसके कारण लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ सकता है. खैर, यह सुविधा अगर शुरू हुई है तो इसकी तारीफ़ इसकी शुरुआत के लिए की जानी चाहिए, बाकी छोटी मोटी दिक्कतें जैसे पेश आएँगी, उसे दूर करने में हमारा रेल मंत्रालय सक्षम है! पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि रेलवे के ऊपर बढ़ते जा रहे बोझ से हमारी रेल मिनिस्ट्री किस प्रकार निपट पाती है और किस प्रकार हाई स्पीड और सुरक्षित ट्रेनों का तोहफा देश को दे पाती है और अगर यह हो सका तो कोई कारण नहीं कि हमारे देश का विकास भी 'बुलेट' रफ़्तार से भाग सकेगा.
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