देखा जाए तो देश के सर्वाधिक चर्चित नेताओं में शामिल लालू प्रसाद यादव की छवि को एक 'मसखरा' के तौर पर ज्यादा देखा जाता है, हालाँकि जनता की नब्ज़ पर जिस कदर यह राजनेता रखता है, वैसे इक्के-दुक्के राजनेता ही मिलेंगे. कई कॉर्पोरेट और एलिट वर्ग के लोग लालू यादव का मजाक उड़ाने में पीछे नहीं रहते हैं, लेकिन जब इन्हीं लोगों को चुनाव के मैदान में यह देशी नेता पटखनी देता है, तब लोग बंगले झाँकने लगते हैं कि आखिर इसके पास कौन सा दिव्यास्त्र है, जिसके दम पर यह कई दशकों से जनता के दिलों में घुसा हुआ है. लोग उसे घोटालेबाज कहें, अपराधी कहें, अनपढ़ या गंवार कहें, लेकिन राजनीति में लालू यादव के देशी नुस्खों का तोड़ नहीं. हालाँकि, इस बार बात राजनीति से ज्यादा उनके उस सुझाव की है, जो गर्मी से बचने के लिए उन्होंने दिया है. देश में चरों तरफ गर्मी ने हाहाकार मचा रखा है. अभी तो अप्रैल का महीना ही गुजरा है, जबकि मई और जून की चिलचिलाती गर्मी तो अभी बाकी ही है. ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल के मुखिया लालू प्रसाद यादव ने लोगों का ध्यान पुरानी परम्परागत चीजों की तरफ खींचा है, जिससे गर्मी में राहत मिल सकती है. हालाँकि, ऐसा नहीं है कि यह बातें लालू यादव ने ओरिजिनल खुद कही हैं, बल्कि पहले भी तमाम जानकार इसे बताते रहे हैं, लेकिन यह लालू यादव की खासियत ही है कि वह आम चीजों को भी अपने विशेष अंदाज से ख़ास बना देते हैं. अपने प्रसिद्ध अंदाज में पहले तो उन्होंने अपनी राजनीतिक विचारधारा के विपरीत विचार रखने वाले बाबा रामदेव पर चुटकी ली और कहा कि 'रामदेव की छुट्टी कर दूंगा', उसके बाद लोगों में जागरूकता फ़ैलाने की कोशिश करी कि कैसे लोग प्राकृतिक संसाधनों को भूलकर आधुनिकता की दौड़ में अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. चूंकि बाबा रामदेव स्वदेशी आंदोलन एवं आयुर्वेदिक नुस्खों के बड़े पैरोकार माने जाते हैं, इसलिए अगर कोई इस बारे में सलाह देगा तो उनका ज़िक्र अवश्यम्भावी ही है, बेशक वह 'चुटकी' के अंदाज में ही क्यों न हो! इस चुटकी के बाद, अपने भाषण में लालू ने 'आम के पन्ने' (कच्चा आम उबालकर बनाया जाने वाला जूस) का विशेष गुणगान किया है. वैसे कच्चे आम का पन्ना गर्मियों में लगने वाली लू के लिए रामबाण दवा है, जिसे आयुर्वेद ने भी स्वीकारा हैं.
उसके बाद लालू यादव ने लोगों को फ्रीज़ के ठंडे पानी की जगह मिट्टी के मटके का पानी पीने की सलाह दी. यह बात भी सामान्य तौर पर महसूस की जाती है कि गर्मियां आते ही ठन्डे पानी के ना होने से प्यास नहीं बुझती और हम फ्रीज में पानी रखना शुरू कर देते है, पर यह पानी बहुत ज़्यादा ठंडा होने से नुकसान करता है, तो पेट में गैस और चर्बी को भी बढाता है. इसके अलावा प्लास्टिक की बोतल भी पानी रखने के लिए सुरक्षित नहीं होती है. वही अगर हम देशी नुस्खों की ओर देखते हैं तो मिटटी के घड़े में रखे पानी का तापमान बिलकुल ठीक रहता है, ना बहुत अधिक ठंडा ना गर्म! और मटके का पानी पीने से मन को तुरंत तृप्ति मिलती है. अनुभवों से जाहिर होता है कि इसका पानी पीने से ना ही गला खराब होता है, ना ही सिरदर्द की समस्या आती है. बाजार में मुश्किल से 25 से 30 रूपये में मिलने वाले घड़े के उपयोग से आप बिजली की बचत भी कर सकते है तो आपकी छोटी सी पहल से गरीब कुम्हारों को रोजगार मिलेगा और ऐसे आप देश के कुटीर उद्योग के विकास में सहभागी बन सकते हैं. इसी क्रम में, लालू यादव की दूसरी सलाह थी कि 'कोल्ड ड्रिंक्स' से बचें और मट्ठा(छाछ) पिएं. ये सलाह भी बिलकुल सटीक है, जो सीधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है. तमाम जाँच तथा प्रयोगों में यह सिद्ध हो चूका है कि बाजार में मिलने वाले डिब्बाबंद शीतल पेयपदार्थ, कोल्ड्ड्रिंक्स इत्यादि जहर के समान हैं. इनमें मिलाया जाने वाला केमिकल कैसे हमारी आँतों को नुकसान पहुंचाता है तो कई मामलों में तमाम कोल्ड्ड्रिंक्स, सॉफ्टड्रिंक्स 'कैंसर' जैसी घातक बिमारियों को आमंत्रित करते हैं, वहीं दूसरी तरफ मट्ठा या छांछ जो कि कैल्सियम, मिनरल तथा विटामिन से भरपूर होने के साथ ही हमारे पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है, उसका सेवन अमृत तुल्य है. गर्मी के मौसम में तो खासकर, आप 1 गिलास छाछ पी लीजिए और फिर देखिये आनंद. पेट से लेकर शरीर का अंग-प्रत्यंग दुरुस्त होने की गवाही देगा.आर्थिक दृष्टि से भी देखा जाए तो जब हम छांछ का प्रयोग करते हैं तो जाहिर सी बात है दूध के उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और गरीब किसान, ग्वाले को पर्याप्त रोजगार! इसके अतिरिक्त, शुद्धता से भरपूर छांछ हर हाल में बाजारू कोल्ड ड्रिंक से सस्ता और स्वास्थ्यवर्धक पहले ही सिद्ध हैं. इसी कड़ी में लालूजी की तीसरी सलाह जो सबके लिए व्यवहारिक नहीं है, किन्तु गाँव के अनेकों लोगों के लिए अवश्य ही व्यवहारिक और गर्मी से राहत देने वाला भी है. इसमें मिट्टी के घरों को अपनाना और गोबर से दीवारों को लीप कर रहने की सलाह शामिल है.
इसी सलाह में, छत को कंक्रीट करने की बजाय लोग ताड़ के पेड़ के तने का इस्तेमाल करें और छप्पर के लिए खप्पर का इस्तेमाल किया जाए. देखा जाए तो यह हल 'पर्यावरण फ्रेंडली तो जरूर है, किन्तु आज के परिदृश्य में ये सलाह फिट बैठना बेहद मुश्किल है. वैसे, आजकल जहाँ गांव भी आधुनिकता की दौड़ में शामिल हो चुके हैं और वो मिटटी के घर में रहना भला कैसे पसंद करेंगे. वैसे, लालू यादव की इस सलाह को धनाढ्य लोग भी अपने फार्म हाउस पर अपनाते ही हैं तो गाँव के संपन्न लोग भी छप्पर फूस से निर्मित हिस्सों में ही गर्मी में बैठना पसंद करते हैं. जाहिर हैं, यह अपने आप में एक विशेष और पारम्परिक समाधान हैं गर्मी से राहत का! इसी कड़ी में, चौथी सलाह में लालू ने बिलकुल तात्कालिक और सबसे जरुरी मुद्दे को उठाया है. लालू के मुताबिक न सिर्फ पुराने कुंओं को जिंदा करना होगा बल्कि हर गांव में कम से कम 10 नए कुएं खोदने होंगे. उन्होंने कहा कि सरकार को इसके लिए सब्सिड़ी देनी चाहिए! पानी की कमी से किस कदर हाहाकार मचा हुआ, यह बात बताने की आवश्यकता नहीं. आईपीएल से लेकर महाराष्ट्र और उत्तराखंड से लेकर देश के दूसरे भाग पानी की किल्लत से जूझने लगे हैं और इन सबका हल लालू यादव की सलाह से अवश्य ही निकाला जा सकता हैं. कुओं की मौजूदगी से बरसात का पानी इकट्ठा होता है और धरती का पानी रिसाइकिल होता रहता है, जिससे वाटर लेबल काफी हद तक मेंटेन रहता है. लालू द्वारा दी गयी पांचवी और आखिरी सलाह भी स्वागत योग्य है. लालू यादव ने गांवों में होने वाले धार्मिक यज्ञों को गर्मी में नहीं करने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि इससे गांव में आग लगने का खतरा तो बढ़ ही जाता है और पानी की बर्बादी भी होती है. हालाँकि, हमारे ऋषि मुनि और ज्ञानी लोग पहले ही ऐसा नहीं करते हैं, किन्तु फिर भी अगर अज्ञान के चक्कर में कुछ लोग ऐसा करते हों तो उन्हें इस सलाह से सीख लेनी चाहिए.
गर्मी के बढे हुए तापमान में वैसे ही अधिकांश चीजें गर्म होती हैं और ऐसे में छोटी सी लापरवाही भी काफी नुकसानदायक हो सकती है. लालू यादव की सलाह के अतिरिक्त भी अगर हम कुछ और छोटी-मोटी बातों का ध्यान रखें तो गर्मी में होने वाली परेशानियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है, मसलन गर्मी में जब भी घर से निकले, कुछ खा कर और पानी पी कर ही निकलें, खाली पेट नहीं, क्योंकि इससे 'लू लगने' और 'डिहाइड्रेशन' होने का खतरा रहता हैं. इसी के साथ, गर्मी में ज्यादा भारी और बासी खाना खाने से बचें, क्योंकि गर्मी में शरीर की जठराग्नि मंद रहती है, इसलिए वह भारी खाना पूरी तरह पचा नहीं पाती और जरुरत से ज्यादा खाने या भारी खाना खाने से उलटी-दस्त की शिकायत हो सकती है. इसी क्रम में, गर्मी में सूती और हलके रंग के कपडे पहनने चाहिये, क्योंकि चटक कपड़े पराबैगनी किरणें ज्यादा अवशोषित करते हैं और जल्दी गर्म हो जाते है. ऐसी ही कुछ छोटी मोटी सावधानियों में घर से बाहर निकलने पर चेहरा और सर रुमाल से ढकना, कच्चे प्याज का सेवन तथा जेब में प्याज रखना जैसे नुस्खे आजमाने चाहिए, जिससे लू नहीं लगेगी. इसके अतिरिक्त, ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी पिएं और हाँ लालू यादव भले ही बातों को हल्के अंदाज में कहते है लेकिन आपको गर्मी को हल्के में लेने की जरुरत नहीं, क्योंकि अगर एक बार आप इसके चपेट में आ गए तो फिर लालू और बाबा रामदेव भी आपको परेशानियों से नहीं बचा पाएंगे. इसलिए 'प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योर' और हमारी देशी परम्पराओं के साथ आयुर्वेदिक नुस्खे यही तो कहते हैं.
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2 टिप्पणियाँ
बेहतरीन सलाह हैं गर्मी से बचने का सस्ता का सस्ता और सेहत भी.
जवाब देंहटाएंकुआं वाला काम तो बेहतरीन है।
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