गर्मी शुरू होते ही देश के कई हिस्से जल संकट से जूझने लगे हैं. महाराष्ट्र के लातूर और बुंदेलखंड जैसे इलाकों में तो हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि गाँव के गाँव न केवल पलायन कर रहे हैं, बल्कि लोगों की मौत भी जलाभाव में हो जा रही है. इन सबसे भी बड़ी बात यह है कि सूखे और जल-संकट को कुछ लोग भुनाने में जुट गए हैं और वह समस्या की गम्भीरता के बावजूद राजनीति और प्रोपोगैंडा फैलाने से बाज नहीं आ रहे हैं. खुद का प्रचार करने के लिए कुख्यात हो चुके दिल्ली के मुख़्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का नाम इनमें सबसे पहला होना चाहिए, क्योंकि महाराष्ट्र के जल-संकट पर उन्होंने 'दिल्ली से पानी भेजने' का प्रस्ताव किया, जो एक तरह से मजाक की तरह ही देखा गया! दिल्ली के कई इलाके किस तरह पानी के लिए महरूम हैं, यह बात केजरीवाल से कई लोगों ने पूछी तो कुछ ने इस बात की याद भी उन्हें दिलाई कि दिल्ली खुद ही हरियाणा और यूपी जैसे राज्यों पर पानी के लिए निर्भर है! खैर, उनका मामला आगे निकला तो विवाद आया पंकजा मुंडे का. महाराष्ट्र में सूखे का जायज़ा लेने गई राज्य की ग्रामीण विकास और जल संरक्षण मंत्री पंकजा मुंडे के लिए सेल्फी खींचना मुसीबत सा बन गया. दरअसल मुंडे अपनी टीम के साथ सूखे के हालातों का जायज़ा लेने लातूर गई थी जहां उन्होंने सेल्फी खींची जिससे इस मामले पर मंत्री की गंभीरता पर सवाल उठने लगे. गौरतलब है कि लातूर में ट्रेनों के ज़रिए पानी पहुंचाया जा रहा है जिसे जनता तक ले जाने के लिए पाइपलाइन का काम चल रहा है. मुंडे इसी काम की समीक्षा करने लातूर गईं थी जहां उन्होंने बराज के आगे खड़े होकर तस्वीर खींची और उसे ट्वीट भी कर दिया.
जाहिर है, मीडिया के कई हलकों में इस पर सवाल उठे और उठने भी चाहिए कि सूखे जैसे मसले पर कोई मुस्कराते हुए 'सेल्फी' कैसे ले सकता है? यह तो संवेदनहीनता की पराकाष्ठा जैसी क्रिया है. हालाँकि, मुंडे का कहना है कि वह अपने विभाग के कामकाज की फोटो ले रही थीं, तो उनसे पूछा जा सकता है कि ऐसे में अपनी मुस्कुराती हुई फोटो शामिल करने की क्या आवश्यकता थी? खैर, वह राजनीति में अभी नयी हैं, इसलिए उत्तेजनावश राजनीति के रूल्स भूल गयी होंगी. देश में 33 करोड़ लोग आज सूखे की मार झेलने को मजबूर हैं और ऐसे आंकड़े हमारे प्रशासन पर ही नहीं, हमारे समाज पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. देश के 660 जिलों में से 256 जिले सूखाग्रस्त हैं, तो भारत के 11 राज्यों ने खुद को सूखाग्रस्त इलाका घोषित भी कर दिया है. अकेले महाराष्ट्र के, 44 हजार में से 14 हजार ७०८ गाँव सूखे से प्रभावित हैं. बदलते मौसम की वहज से मानसून की बारिश भी बहुत कम हुई है, ऐसे में जाहिर सी बात है कि फसलें बर्बाद हो गईं हैं जो किसानों की परेशानियां और भी बढ़ा रही हैं. किसानों के आत्महत्या की ख़बरें हमारे सभ्य और विश्व की विशाल अर्थव्यवस्था होने के दावे पर गम्भीर प्रश्न खड़ा कर रही हैं. हालाँकि, नाना पाटेकर, मकरंद और अक्षय कुमार जैसे कुछ अभिनेता किसानों की समस्याओं के लिए आगे बढ़कर कार्य कर रहे हैं तो बॉलीवुड के अन्य धनिक सितारे चुपचाप नज़ारे देखने में व्यस्त हैं. अमिताभ बच्चन बिचारे पनामा पेपर्स में फंसे हुए हैं और वैसे भी उन्हें समाज से क्या लेना-देना!
ऐसे ही, शाहरुख़ खान जैसे अभिनेता यूं तो देश में सहिष्णुता-असहिष्णुता जैसे मामलों में खूब गाल बजाएंगे, किन्तु जब बात आती है पल्ले से कुछ लगाकर सूखे जैसी समस्याओं में हाथ बंटाने की तो वह आराम से 'मन्नत' मांगते हैं कि कोई उन्हें इस बात की याद न दिला दे! सिर्फ शाहरुख़ ही क्यों, उन जैसे सैकड़ों सितारे हैं, जिन्हें सामाजिक जिम्मेदारी के नाम पर सिर्फ 'पार्टियां' और विवाद खड़ा करना आता है. ऐसे लोगों को नाना पाटेकर जैसों से थोड़ी बहुत सीख तो लेनी ही चाहिए. नाना ने आत्महत्या किये हुए किसानों के परिवारों की मदद की तो उनके परिवार को सिलाई मशीन के साथ कुछ कैश भी दिया, ताकि वह आगे संघर्ष कर सकें. बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार ने भी महाराष्ट्र में 90 लाख रुपये आत्महत्या कर रहे किसानों की मदद करने के लिए और 50 लाख रूपये सूखे के लिए दान में दिये हैं. जाहिर है, यह राशि पीड़ितों के ज़ख्म पर कम से कम मरहम तो अवश्य ही लगाएगी. इस कड़ी में, किसानों की मदद के लिए अभिनेता आमिर खान भी आगे आये है . आमिर ने सूखाग्रस्त दो गांवों को भी गोद लिया है. ताल और कोरेगांव नामक गांवो का दौरा करते समय आमिर से इनकी दयनीय हालत देखी नहीं गई और उन्होंने गोद लेने का निर्णय किया.
आमिर खान की इस बात के लिए तारीफ़ करनी चाहिए कि सरकार के साथ 'सहिष्णुता बयानबाजी विवाद' से जल्द उबरकर उन्होंने अपने चिर परिचित अंदाज में समाज के हिस्सों, मसलन पानी फाउंडेशन के साथ जुड़ कर सत्यमेव जयते वाटर कप कैंपेन भी चला रहे हैं. यही नहीं, उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के जलयुक्त शिविर अभियान की तारीफ़ भी की. वह लोगों को पानी जतन करने के उपाय भी बता रहे हैं, जिससे सूखा में थोड़ी राहत तो जरूर ही मिलेगी. जाहिर है कि सितारे अगर इस मामले में जागरूकता फैलाने का कार्यक्रम भी स्वेच्छा से हाथ में ले लें तो स्थिति में काफी परिवर्तन हो सकता है, किन्तु नहीं उपरोक्त गिनाए कुछेक नामों को छोड़ दिया जाय तो दूसरों ने चुप्पी साध रखी है. हाँ, अगर बात एफटीआईआई के चेयरमैनशिप की हो तो कइयों के बोल खूब फूटने लगेंगे और तब देखिये, समाज पर आये हुए खतरों का मुकाबला हमारा बॉलीवुड कैसे करता है! काश सूखे जैसे अहम मसले पर फ़िल्मी सितारों का बड़ा भाग दिलदारी दिखा पाता, वह भी उस राज्य का सूखा, जहाँ बॉलीवुड सितारों को रोजी-रोटी मिलती है. किन्तु, नहीं! आखिर सामाजिकता पैसे से बढ़कर थोड़े ही है!
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3 टिप्पणियाँ
जल संकट से उबरने के लिए बॉलीवुड के साथ साथ आम जनता को भी आगे आना चाहिए. जो भी जल सम्पन्न राज्य है वह को लोगो को जल संरक्षण करना चाहिए जो आने वाले समय जल संकट में थोड़ी राहत जरूर दे सकती है . कहा जाता है की "सावधानियों इलाज से बेहतर है" .
जवाब देंहटाएंSuperb topic of low class and middle class family and also me because anybody want to water but You have a lot of money than you have no problem such as Businessman, Politician and Bollywood. Mostly Bollywood people solve this problem but problem is very big. Bollywood News
जवाब देंहटाएंthanks for sharing this informative story, for more story you can visit Bollywood Hindi News
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