राजनीति भी क्या चीज है, इसमें कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना वाली बात बेहद सटीक बैठती है. कुछ-कुछ बिजली के स्विच जैसी बात इसमें भी होती है कि एक जगह बटन दबाओ और दूसरी ओर 'बल्ब' जल उठता है. खैर, बात इस बार थोड़ी घुमा फिराकर है और राजनीति के साथ-साथ इसमें नए ज़माने के साथ कदमताल करने की जरूरत भी रेखांकित है. संघ और भाजपा अरसे से, 70 साल से ज्यादा उम्र वालों को राजनीति की मुख्यधारा में न शामिल करने पर ज़ोर देते रहे हैं. नरेंद्र मोदी की कैबिनेट और उससे पहले लोकसभा चुनाव में टिकट देने के मामले में भी इसका काफी हद तक ख्याल रखा गया था, किन्तु फिर भी कई लोग लिपट ही गए. अब हमारे तेज-तर्रार प्रधानमंत्री पुरानी पीढ़ी के साथ नयी पीढ़ी के नेताओं को भी मजबूर कर रहे हैं कि वह जनता से ज़ुडने की अपनी उपयोगिता साबित करें और वह भी अपडेटेड टेक्नोलॉजी के साथ, अन्यथा उन पर प्रश्नचिन्ह उठाये ही जाते रहेंगे. जाहिर तौर पर पिछली पीढ़ी के कई लोग फेसबुक, ट्विटर इत्यादि से उस तरह से साम्य नहीं बिठा पाते हैं, जैसे वर्तमान पीढ़ी के लोग! देखा जाय तो पीएम का अपने नेताओं और मंत्रियों को इस बात के लिए ज़ोर देना कि वह सोशल मीडिया पर एक्टिव रहे, गलत तो नहीं ही है, बल्कि कई स्तर पर फायदेमंद भी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया प्रेम को कौन नहीं जानता भला! पौने दो करोड़ फ़ॉलोअर्स हैं उनके ट्विटर अकाउंट में और इस तरह वो भारत के दूसरे सबसे लोकप्रिय शख्सियत हैं ट्विटर पर! इसी क्रम में, उनके फेसबुक पेज को 2.8 करोड़ लोगों द्वारा लाइक किया जाता है. जाहिर है, यह न केवल प्रधानमंत्री की लोकप्रियता बयान करता है, बल्कि उनकी एक्टिवनेस भी सोशल प्लेटफॉर्म्स पर देखने लायक होती है. चाहे उनका सरकारी कामकाज हो या देशी-विदेशी यात्रायें, किसी राष्ट्राध्यक्ष का जन्मदिवस हो अथवा कोई प्राकृतिक आपदा, हर छोटी-बड़ी चीज का ब्यौरा, उनकी संवेदनाएं आपको उनकी ऑफिसियल वेबसाइट और सोशल मीडिया अकाउंट्स पर मिल जायेगा. आधुनिक विचारों वाले प्रधानमंत्री मोदी ये जानते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों से जुड़ना है, उन तक अपने विचारों को प्रेषित करना है तो यह काम सोशल मीडिया द्वारा आसानी से संभव हो सकता है.
अगर भारत में आंकड़ों की बात करें तो, एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 तक भारत में फेसबुक यूजर्स की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा होगी. ऐसे में नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं की पुरजोर कोशिश होगी कि उनकी सरकार द्वारा किया गया काम लोगों तक पहुंचे और इसके लिए वह शुरू से ही अपने मंत्रियों, सांसदों तथा पार्टी विधायकों को सोशल मीडिया के प्रयोग के बारे में कहते रहे हैं. नरेंद्र मोदी की सक्रियता इस बात से ही मापी जा सकती है कि वह केवल सलाह ही नहीं देते हैं, बल्कि उनकी सलाह पर कहाँ तक अमल हुआ है, इस बात की एनालिसिस भी वह करते हैं. इसी के अंतर्गत भाजपा के डिजिटल सेल के द्वारा एक डिजिटल एमआईएस (मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम) बनाया गया, ये पता लगाने के लिए कि कितने सांसद सोशल मिडिया पर सक्रीय हैं, किस हद तक सक्रीय हैं और उनका स्टेटस क्या है! इसमें सांसदों के सोशल मीडिया अकाउंट को ट्रैक तो किया ही गया है, साथ ही साथ हर सांसद के ट्विटर और फेसबुक पर फॉलोअर की संख्या, ट्वीट्स की संख्या और रिट्वीट का हिसाब रखा गया है. जाहिर है, इस रिपोर्ट का सबसे अहम पैमाना है कि क्या सांसद सरकार के काम का प्रचार करते हैं या नहीं? हालाँकि, इस रिपोर्ट में प्रधानमंत्री को निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि उनके अधिकांश सांसद तो सोशल मीडिया के संपर्क में हैं ही नहीं, तो कुछ मशहूर नाम तो बेहद कम सक्रीय हैं. इनमें मेनका गांधी, संतोष गंगवार, डॉक्टर राम शंकर कठेरिया, संजीव बाल्यान, निरंजन ज्योति, निहाल चंद, हरिभाई चौधरी और हंसराज अहिर का नाम शामिल किया गया है. जाहिर, है आगे के समय में इन रिपोर्ट्स के आधार पर प्रधानमंत्री निष्क्रिय सोशल मीडिया नेताओं पर लगाम कस सकते हैं. देखा जाय तो इन तमाम नेताओं को खुद तो सोशल मीडिया अकाउंट मैनेज करना नहीं होता है, बल्कि इसके लिए उनके पास तमाम दुसरे लोग भी होते हैं, किन्तु उनको गाइड तो इन्हें खुद ही करना पड़ेगा! प्रधानमंत्री की मंशा इन नेताओं को समझनी ही चाहिए, क्योंकि आज 90 फीसदी से ज्यादा यूथ सोशल मीडिया पर ख़ासा समय व्यतीत करता है और अगर उसके सामने सरकार की योजनाओं, कार्यान्वयन की जानकारियां पेश नहीं की जाएँ तो फिर सरकार की छवि ठीक नहीं बनती है. यह भी आश्चर्य ही है कि भाजपा द्वारा बनाई गयी 'एमआईएस' में उत्तर प्रदेश और गुजरात तो सबसे पीछे हैं. उत्तर प्रदेश में आंकड़ा ऐसा है कि 71 में से 43 सांसदों के तमाम सोशल मिडिया अकाउंट ही नहीं हैं, तो गुजरात में 26 में से 15 सांसद तो ट्विटर और फेसबुक से ही गायब हैं, बाकी सोशल मीडिया अकाउंट्स की कौन कहे! जाहिर तौर पर यह एक शर्मनाक आंकड़ा ही है, क्योंकि यह साबित करता है कि आप एक बड़ी आबादी को 'अनदेखा' करने का रिस्क ले रहे हैं, जो आप के साथ-साथ पार्टी को भी नुक्सान पहुंचा सकता है.
आखिर इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल जैसे नेताओं के उभार में 'सोशल मीडिया' प्लेटफॉर्म्स का रोल कहीं ज्यादा बड़ा है. इस क्रम में, बीजेपी के कुछ सांसदों ने जरूर प्रधानमंत्री को राहत पहुंचाई हैं और इसमें स्टार परफॉर्मर रहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, जिनके ट्विटर पर 50 लाख से अधिक फॉलोअर हैं. ऐसे ही, तकरीबन साढ़े आठ लाख फॉलोअर के साथ केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी दूसरे स्थान पर रहे. इसी क्रम में, पूर्व जनरल वीके सिंह, कलराज मिश्र, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और डॉक्टर महेश शर्मा भी सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले लोगों में शुमार हैं. अब सवाल ये उठता है कि मोदी के 'डिजिटल इंडिया' के सपने का क्या होगा, जब उनके सांसद ही इसके महत्व को नहीं समझ पा रहे हैं. अब वह जमाना नहीं रहा कि इलेक्शन के समय दरवाजे -दरवाजे घूम के अपनी उपलब्धि लोगो को बताई जाये और वोट देने के लिए उन्हें तैयार किया जाये. आजकल लोगों का ज्यादातर समय फेसबुक या ट्विटर पर बीतता है, खासकर युवा वर्ग का! एंड्राइड फ़ोन और इंटरनेट की उपलब्धता ने लोगों को सोशल मीडिया के संपर्क में 24 घंटे रखना सुनिश्चित किया है. अब चाहे गांव हो या शहर हर जगह लोग फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग से जुड़े हैं. ऐसे में अगर आपको अपनी बात कहनी है तो सोशल मीडिया से बेहतर विकल्प और क्या हो सकता है. हमारे प्रधानमंत्री खुद सबसे ज्यादा सोशल माध्यमों पर एक्टिव रहते हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को टक्कर दे रहे हैं. भारत में भी अपने रेल मंत्री सुरेश प्रभु का उदाहरण देखें तो ट्विटर पर लोगों की समस्या का निपटारा करने में उन्होंने एक नया मानदंड स्थापित किया है. जाहिर है, अगर ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के नेताओं से सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने, यूजर्स से जुड़ने की अपेक्षा कर रहे हैं तो यह गलत कहाँ है? और सिर्फ भाजपा के नेता ही क्यों, बल्कि दूसरी पार्टियों के नेताओं को भी इनसे सीख ले कर लोगों को जोड़ने का अभियान चलाना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में 'नेतागिरी और सोशल मीडिया' का अन्तर्सम्बन्ध और गहरा ही होने वाला है.
अगर भारत में आंकड़ों की बात करें तो, एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 तक भारत में फेसबुक यूजर्स की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा होगी. ऐसे में नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं की पुरजोर कोशिश होगी कि उनकी सरकार द्वारा किया गया काम लोगों तक पहुंचे और इसके लिए वह शुरू से ही अपने मंत्रियों, सांसदों तथा पार्टी विधायकों को सोशल मीडिया के प्रयोग के बारे में कहते रहे हैं. नरेंद्र मोदी की सक्रियता इस बात से ही मापी जा सकती है कि वह केवल सलाह ही नहीं देते हैं, बल्कि उनकी सलाह पर कहाँ तक अमल हुआ है, इस बात की एनालिसिस भी वह करते हैं. इसी के अंतर्गत भाजपा के डिजिटल सेल के द्वारा एक डिजिटल एमआईएस (मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम) बनाया गया, ये पता लगाने के लिए कि कितने सांसद सोशल मिडिया पर सक्रीय हैं, किस हद तक सक्रीय हैं और उनका स्टेटस क्या है! इसमें सांसदों के सोशल मीडिया अकाउंट को ट्रैक तो किया ही गया है, साथ ही साथ हर सांसद के ट्विटर और फेसबुक पर फॉलोअर की संख्या, ट्वीट्स की संख्या और रिट्वीट का हिसाब रखा गया है. जाहिर है, इस रिपोर्ट का सबसे अहम पैमाना है कि क्या सांसद सरकार के काम का प्रचार करते हैं या नहीं? हालाँकि, इस रिपोर्ट में प्रधानमंत्री को निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि उनके अधिकांश सांसद तो सोशल मीडिया के संपर्क में हैं ही नहीं, तो कुछ मशहूर नाम तो बेहद कम सक्रीय हैं. इनमें मेनका गांधी, संतोष गंगवार, डॉक्टर राम शंकर कठेरिया, संजीव बाल्यान, निरंजन ज्योति, निहाल चंद, हरिभाई चौधरी और हंसराज अहिर का नाम शामिल किया गया है. जाहिर, है आगे के समय में इन रिपोर्ट्स के आधार पर प्रधानमंत्री निष्क्रिय सोशल मीडिया नेताओं पर लगाम कस सकते हैं. देखा जाय तो इन तमाम नेताओं को खुद तो सोशल मीडिया अकाउंट मैनेज करना नहीं होता है, बल्कि इसके लिए उनके पास तमाम दुसरे लोग भी होते हैं, किन्तु उनको गाइड तो इन्हें खुद ही करना पड़ेगा! प्रधानमंत्री की मंशा इन नेताओं को समझनी ही चाहिए, क्योंकि आज 90 फीसदी से ज्यादा यूथ सोशल मीडिया पर ख़ासा समय व्यतीत करता है और अगर उसके सामने सरकार की योजनाओं, कार्यान्वयन की जानकारियां पेश नहीं की जाएँ तो फिर सरकार की छवि ठीक नहीं बनती है. यह भी आश्चर्य ही है कि भाजपा द्वारा बनाई गयी 'एमआईएस' में उत्तर प्रदेश और गुजरात तो सबसे पीछे हैं. उत्तर प्रदेश में आंकड़ा ऐसा है कि 71 में से 43 सांसदों के तमाम सोशल मिडिया अकाउंट ही नहीं हैं, तो गुजरात में 26 में से 15 सांसद तो ट्विटर और फेसबुक से ही गायब हैं, बाकी सोशल मीडिया अकाउंट्स की कौन कहे! जाहिर तौर पर यह एक शर्मनाक आंकड़ा ही है, क्योंकि यह साबित करता है कि आप एक बड़ी आबादी को 'अनदेखा' करने का रिस्क ले रहे हैं, जो आप के साथ-साथ पार्टी को भी नुक्सान पहुंचा सकता है.
आखिर इस बात से कौन इंकार कर सकता है कि नरेंद्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल जैसे नेताओं के उभार में 'सोशल मीडिया' प्लेटफॉर्म्स का रोल कहीं ज्यादा बड़ा है. इस क्रम में, बीजेपी के कुछ सांसदों ने जरूर प्रधानमंत्री को राहत पहुंचाई हैं और इसमें स्टार परफॉर्मर रहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, जिनके ट्विटर पर 50 लाख से अधिक फॉलोअर हैं. ऐसे ही, तकरीबन साढ़े आठ लाख फॉलोअर के साथ केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग और जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी दूसरे स्थान पर रहे. इसी क्रम में, पूर्व जनरल वीके सिंह, कलराज मिश्र, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और डॉक्टर महेश शर्मा भी सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले लोगों में शुमार हैं. अब सवाल ये उठता है कि मोदी के 'डिजिटल इंडिया' के सपने का क्या होगा, जब उनके सांसद ही इसके महत्व को नहीं समझ पा रहे हैं. अब वह जमाना नहीं रहा कि इलेक्शन के समय दरवाजे -दरवाजे घूम के अपनी उपलब्धि लोगो को बताई जाये और वोट देने के लिए उन्हें तैयार किया जाये. आजकल लोगों का ज्यादातर समय फेसबुक या ट्विटर पर बीतता है, खासकर युवा वर्ग का! एंड्राइड फ़ोन और इंटरनेट की उपलब्धता ने लोगों को सोशल मीडिया के संपर्क में 24 घंटे रखना सुनिश्चित किया है. अब चाहे गांव हो या शहर हर जगह लोग फेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग से जुड़े हैं. ऐसे में अगर आपको अपनी बात कहनी है तो सोशल मीडिया से बेहतर विकल्प और क्या हो सकता है. हमारे प्रधानमंत्री खुद सबसे ज्यादा सोशल माध्यमों पर एक्टिव रहते हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को टक्कर दे रहे हैं. भारत में भी अपने रेल मंत्री सुरेश प्रभु का उदाहरण देखें तो ट्विटर पर लोगों की समस्या का निपटारा करने में उन्होंने एक नया मानदंड स्थापित किया है. जाहिर है, अगर ऐसे में हमारे प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के नेताओं से सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने, यूजर्स से जुड़ने की अपेक्षा कर रहे हैं तो यह गलत कहाँ है? और सिर्फ भाजपा के नेता ही क्यों, बल्कि दूसरी पार्टियों के नेताओं को भी इनसे सीख ले कर लोगों को जोड़ने का अभियान चलाना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में 'नेतागिरी और सोशल मीडिया' का अन्तर्सम्बन्ध और गहरा ही होने वाला है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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