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... तो क्या वाकई 'एप्पल' के दिन गए! Facts of Apple Technology company, Hindi Article, Mithilesh

टेक्नोलॉजी बनाना, उसको प्रीमियम बनाए रखना और उसकी सहायता से भारी मुनाफा बनाने का उत्तम उदाहरण है 'एप्पल कंपनी'! इस कंपनी के प्रोडक्ट्स की क्वालिटी और कम्फर्ट पर कभी प्रश्नचिन्ह तो नहीं उठा है, लेकिन इस बात से भी ज्यादा एप्पल का मुनाफा 'स्टेटस सिंबल' की गलियों से होकर गुजरा है. अगर एप्पल के 'आईफोन' और किसी कंपनी के बढ़िया कॉन्फ़िगरेशन के 'एंड्राइड फोन' के फीचर्स की तुलना आप करें तो 'कटे सेब' वाले लोगो के अतिरिक्त कोई बड़ा अंतर नहीं नज़र आएगा, सिवाय दोनों प्रोडक्ट्स की कीमतों में बड़े अंतर के! हालाँकि, जब आप 'वर्ग विशेष' की ओर अपने प्रोडक्ट सेल को फोकस करते है तो आपको यह ध्यान रखना होता है कि यह बेहद कम संख्या में मौजूद है और 'सैचुरेशन' की स्थिति भी जल्द ही आ जाती है. हालाँकि, इस वर्ग के पास पैसे की कोई कमी नहीं होती है, लेकिन यह आवश्यक है कि आप निश्चित अंतराल पर इस वर्ग के लिए 'अलग प्रोडक्ट्स' पेश करते रहें, जोकि उसके 'स्टेटस सिंबल' को मजबूत बनाने का कार्य लगातार करता रहे. जाहिर है, आप एक ही प्रोडक्ट और उसी तकनीक के सहारे कितनी बार 'रिपैकेजिंग' करेंगे? ऐसे में 'एप्पल कंपनी' के सामने भी यही दोनों विकल्प दिखते हैं कि या तो वह 'नए प्रोडक्ट्स' की बेहतर रेंज ले आये अथवा अपना 'कस्टमर सेगमेंट' परिवर्तन करे! अपने 'कस्टमर सेगमेंट' को एप्पल दो कारणों से परिवर्तित नहीं करना चाहेगी, क्योंकि एक तो उसकी 'प्रीमियम छवि' पर ख़तरा उत्पन्न हो जायेगा तो दूसरी ओर अन्य कस्टमर सेग्मेंट्स में भी तमाम कंपनियां जड़ जमा चुकी हैं. 

आपको ध्यान होगा कि मोबाइल फोन की सबसे बड़ी कंपनी 'नोकिया' पहले तो टच-स्क्रीन, ड्यूल सिम और एंड्राइड प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने में हिचकती रही और जब तक उसने ऐसा करने का निश्चय किया, तब तक नदी में काफी पानी गुजर चुका था और अंततः अपने अस्तित्व को यह खो चुकी है. एप्पल के कर्ताधर्ताओं को 'ब्लैकबेरी फोन्स' की केस स्टडी भी जरूर करनी चाहिए, क्योंकि यह भी 'प्रीमियम सेगमेंट ग्राहकों' की पसंद पर कभी राज किया करती थी. हालाँकि, एप्पल के प्रोडक्ट पोर्टफोलियो में 'आईफोन' के अतिरिक्त, मैकबुक, आईपैड, एप्पल वाच और एप्पल टीवी जैसे बड़े प्रोडक्ट हैं, किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि एप्पल आईफोन का अकेले योगदान इस कंपनी में 50%(विभिन्न क्वार्टर रिपोर्ट्स का औसत) के आसपास है. इसके बात दूसरा बड़ा रेवेन्यू एप्पल को 'आईपैड' से आता है (लगभग 20%). आईफोन और आईपैड की टेक्नोलॉजी लगभग एक ही है, जबकि उनके आकर अलग हैं. जाहिर है, आईफोन की बिक्री में आ रही गिरावट एप्पल के लिए चिंता की ही नहीं, बड़ी चिंता की बात है तो विभिन्न देशों में कुछ और मुसीबतों से यह 'टेक जाएंट' खतरे में दिख रहा है. हालाँकि, एप्पल के पास बड़ी मात्रा में पूँजी है (233.7 बिलियन USD) और वह झटकों को झेल भी सकती है, किन्तु अगर एक बार कोई कंपनी लोगों की जुबान और दिमाग से उतर जाती है तो फिर उसका मार्किट में वापसी करना असम्भव के समकक्ष हो जाता है, बेशक वह कितनी भी बड़ी और विश्वसनीय ब्रांड क्यों न हो! आखिर नोकिया और ब्लैकबेरी जैसी कंपनियां 'ग्राहकों के विश्वास' पर हमेशा ही खरी उतरीं थी, जिनकी ब्रांड वैल्यू बेहद मजबूत थी. 

इस मामले में आगे की कड़ियाँ जोड़ते हैं तो कई बातें सामने नज़र आती हैं. अमेरिका के बाद चीन ही एप्पल का सबसे बड़ा बाजार था जहां आज कल आर्थिक मंदी छाई हुई है और इस वजह से अमेरिका की कंपनी एप्पल को अपनी बिक्री में ऐसी गिरावट 13 साल के बाद देखने को मिली है. यदि 2016 जनवरी-मार्च क्वार्टर की बात करें तो इसके रेवेन्यू में 13% की गिरावट दर्ज की गई जिसके बाद इसका कुल रेवेन्यू 5060 करोड़ डॉलर (करीब 3.34 लाख करोड़ रुपए) तक आ चुका है. इसका असर कंपनी के स्टॉक पर भी पड़ा और तब एक घंटे के दौरान ही स्टॉक में 8 फीसदी की कमी आ गई थी, जिसकी वहज से इन्वेस्टर्स का करीब 4000 करोड़ डॉलर यानी 2.64 लाख करोड़ रुपए डूब गया. जाहिर है कि ऐसे आंकड़ों से हलचल तो मचनी ही थी और मची भी! आंकड़ों पर थोड़ा और गौर करें तो, 2015 के जनवरी-मार्च क्वार्टर में एप्पल का प्रॉफिट 1357 करोड़ डॉलर (करीब 89 हजार करोड़ रुपए) रहा था. इन तमाम रिपोर्ट्स पर एप्‍पल के सीईओ टिम कुक कहते हैं कि अमेरिका, जापान और चीन जैसे बड़े मार्केट में सेल्‍स की ग्रोथ में आई गिरावट का निगेटिव असर आमदनी पर पड़ा है'. बताते चलें कि 2007 के बाद पहली बार एप्‍पल की सेल्‍स ग्रोथ ऐसी कमी दर्ज की गई है. हालाँकि टिम कुक ने इसे आर्थिक दिक्कतों के बीच कंपनी का बेहतर प्रदर्शन बताया है ज़ोर देकर कहा है कि कंपनी ने अपनी सर्विसेस बेहतर बनाकर अच्छा रेवेन्यू हासिल किया है. मामला सिर्फ यहीं तक होता तो एक बात थी, किन्तु आर्थिक गिरावट के साथ ही एप्पल को एक और झटका लगा है. दरअसल, वह चीन में ट्रेडमार्क का एक मुकदमा हार गई है. बीजिंग की अदालत ने लोकल कंपनी 'जियान्तोंग तियांदी' को 'आईफोन' नाम का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है, जो लेदर गुड्स बनाती है. 2012 में चीन में 'आईपैड' ट्रेडमार्क को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एपल को छह करोड़ डॉलर (अब 400 करोड़) चुकाना पड़ा था, जिसकी वजह से वहां आईपैड की सेल्स पर भी काफी असर पड़ा था. 

इसी क्रम में, कुछ समय पहले चीनी सरकार ने फरमान जारी किया था कि "चीन में सिर्फ उन्ही के सर्वर के  'कंटेंट' ब्रॉडकास्ट किये जायेंगे!" इसकी वहज से एप्पल को मजबूरन ऑनलाइन 'आईट्यून मूवी और आईबुक सर्विसेज' को भी रोकना पड़ा था, जिसकी वजह से चीन में एप्पल प्रोडक्ट की बिक्री 26% तक कम हो गई थी. भारत में भी सरकार ने मोबाइल के कम्पोनेंट्स जैसे चार्जर्स, बैट्री इत्यादि पर 29% की इम्पोर्ट ड्यूटी वापस लेने का फैसला किया है और इसका सीधा मतलब यही है कि एप्पल को छोड़कर भारत में भी दूसरी कंपनियों को फायदा पहुँचने वाला है. भारत में घरेलु मैनुफैक्चरिंग को बढ़ावा देने वाली नीति के कारण एप्पल को दूसरे कंपनियों से कड़ा मुकाबला मिलने की बात कही जा रही है. इन आंकड़ों की गणित एक जगह है, पर एप्पल के निवेशकों का कहना है कि एप्पल के आईफ़ोन की बिक्री के लिए यह सेचुरेशन का समय है और यदि एप्‍पल को फिर से अपनी रफ़्तार पकड़नी है तो उसको कुछ नया लेकर ही वापस आना होगा. टेक विशेषज्ञ भी एप्पल कंपनी को 'प्रीमियम सेगमेंट' से बाहर की दुनिया के लिए प्रोडक्ट्स में एंट्री की सलाह देंगे, क्योंकि खुदा-न-खास्ता, अगर भ्रम बिगड़ा तो 'माया और राम' दोनों नहीं मिलेंगे!

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