नए लेख

6/recent/ticker-posts

आईटी इंडस्ट्री और जेटलीजी को 'दर्द' क्यों हुआ? IT Industry, Arun Jaitley and Indo US business relations, hindi article

जब आप किसी मित्र से खूब लगाव प्रदर्शित कर रहे हों और अचानक वह मित्र आपसे कुछ ऐसा व्यवहार कर जाए, जिससे आपके हितों को सीधा नुकसान पहुँच जाए तो फिर 'दर्द' होना, वह भी दिल में स्वाभाविक सी बात है. ऐसी ही कुछ हालत हमारे वित्तमंत्री अरुण जेटली जी की है. अमेरिका में जाकर उन्होंने भारतीय आईटी कंपनियों के हितों की जो बात उठाई, उससे अमेरिका को भी 'दर्द' हुआ ही होगा, किन्तु जब आप पक्षपात का सहारा लेकर अपने हितों को साधने का प्रयत्न करते हैं, तब आप अपने ही लम्बे हितों को नुकसान पहुंचा रहे होते हैं. अमेरिकी नीतियां, हाल-फिलहाल कुछ-कुछ ऐसी ही हैं. एक तरफ तो अमेरिका भारत से अपनी करीबी दिखाने में जरा भी कोताही नहीं कर रहा है तो दूसरी ओर भारतीय हितों को लेकर उसकी व्यापारिक नीतियां 'असहयोग' का भाव जरूर प्रदर्शित कर रही हैं. पिछले साल सितंबर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफल अमेरिका यात्रा और राष्ट्रपति बराक ओबामा की बहुचर्चित गणतंत्र दिवस पर दिल्ली-यात्रा के द्वारा भारत-अमेरिका संबंधों में बेहतरीन सुधार का संकेत था, हालाँकि यह संकेत ऊपरी तौर पर कहीं ज्यादा था. थोड़ा तकनीकी रूप से बात करें तो, पिछले साल अमेरिकी संसद ने एच-1 बी वीजा और एल-1 वीजा पर 4,500 डालर तक का विशेष शुल्क लगा दिया था. बताया जाता है कि यह कदम 9-11 के स्वास्थ्य सेवा कानून तथा बायोमेट्रिक ट्रैकिंग प्रणाली के वित्तपोषण के लिए उठाया गया था. 

गौरतलब है कि ये वीजा भारतीय आईटी कंपनियों में खासे लोकप्रिय हैं. अमेरिका के इस विशेष वीसा शुल्क को पक्षपातपूर्ण बताते हुए इस बात पर भारत ने कड़ी चिंता जताई है. जाहिर है, इसका असर सीधा भारतीय आईटी कारोबारियों पर पड़ेगा. 140 अरब डॉलर से अधिक की भारतीय आईटी कंपनियों के प्रतिनिधि ने भी इसे अत्यधिक भेदभावपूर्ण बताया है. साफ़ है कि इस विशेष शुल्क की वजह से भारत के प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर सालाना 400 मिलियन डॉलर का असर पड़ेगा, तो साथ ही साथ यह आपसी प्रतिस्पर्धात्मकता को भी प्रभावित कर सकता है. भई! 4 लाख रूपये का शुल्क कोई मजाक नहीं है, जिसे हज़म कर लिए जाए. यहाँ भारत में तो ज्वैलरी के कारोबारियों ने 1 % टैक्स पर भी अपनी दुकानें महीनों तक बंद कर रखी थीं. गम्भीरता से अगर इस मुद्दे को देखा जाय तो यह अमेरिकी कदम न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इसे अमेरिकी कंपनियों को वरीयता देने से भी जोड़कर देखा जा रहा है. अमेरिका अभी तक खुद को 'प्रवासियों का देश' कहता रहा है, किन्तु उसकी नीतियां बेशक इसकी गवाही नहीं देती हैं. नैसकॉम के अध्यक्ष बीवीआर मोहन रेड्डी ने कहा है कि "अमेरिका की अपनी प्राथमिकताएं और अपना संरक्षणवाद है और यह चुनावी वर्ष में और भी अधिक हो जाता है. हालाँकि, अमेरिका के इस कदम से सिर्फ भारतीय आईटी-उद्योग को ही नहीं, अमेरिका को भी खासा नुकसान होगा. विशेष रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित  क्षेत्रों में अमेरिका को भी बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. इस क्रम में, वित्तमंत्री अरूण जेटली ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि राजदूत माइकल फ्रोमैन के साथ द्विपक्षीय बैठक में टोटलाइजेशन एग्रीमेंट को जल्द से जल्द पूरा करने पर जोर दिया, जिससे अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों को फायदा होगा. 

टोटलाइजेशन एग्रीमेंट के तहत सोशल सिक्योरिटी टैक्सेज को लेकर इनकम पर डबल टैक्स से बचने के लिए अमेरिका कुछ देशों के साथ समझौते करने जा रहा है. इसके तहत सम्बंधित देशों के प्रोफेशनल जब कम वक्त के लिए एक दूसरे के देश में काम करने जायेंगे, तो वहाँ उन्हें सोशल सिक्योरिटी टैक्स नहीं चुकाना होगा. डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी चुनाव में विवादित बयानों से पहले ही विभिन्न मुद्दे वैश्विक स्तर पर चर्चित हैं. इसके साथ-साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका में अपने पेशेवरों के लिए सामाजिक सुरक्षा कवर की मांग एक बार फिर चर्चा का विषय हो गया है. तमाम इंडस्ट्रियलिस्टों के अनुसार पिछले दशक के दौरान अमेरिका में सामाजिक सुरक्षा कवर के तौर पर भारतीय कंपनियों ने 25 अरब डालर का योगदान किया है, जिसमे उन्हें अपने योगदान का रिटर्न भी वापस नहीं मिला है. यह सारी प्रक्रियाएं सुनकर दिल चाहने लगता है कि काश, इतना योगदान भारत में कारोबार करने वाली तमाम कंपनियां भी करतीं तो भारत को 'गरीबी' से निजात मिलने में अवश्य ही आसानी होती. बताते चलें कि वर्तमान में वित्त मंत्री अरुण जेटली अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष(आईएमएफ), विश्व बैंक और अन्य सत्र के वसंत बैठकों में भाग लेने के लिए वाशिंगटन की आधिकारिक यात्रा पर हैं. जेटली रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन, आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास, और मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और अन्य अधिकारियों के साथ इस यात्रा पर हैं, किन्तु उनकी यह यात्रा अमेरिकी वीजा विवादों को लेकर कहीं ज्यादा चर्चित हो रही हैं. खैर, इन विवादों और जेटली जी को थोड़े समय के लिए बाहर रखकर पूरे मुद्दे को किसी और नजरिये से देखने की कोशिश करते हैं. भारतीय आईटी कंपनियों की इस बात को लेकर तीखी आलोचना देश में ही होती रही है कि वह बजाय कि स्वदेश में रोजगार पैदा करतीं, उनका सारा जोर अमेरिका की सिलिकॉन वैली समेत दुसरे देशों में सर्विस पर ही जोर बना रहता है. 

यह आलोचना करने वाले कोई लुलु-पंजू लोग नहीं हैं, बल्कि इनफ़ोसिस के संस्थापक एन.आर.नारायणमूर्ति जैसे दिग्गज हैं, जो साफ़ कहते हैं कि 'भारतीय कंपनियां इमिग्रेशन एजेंट्स' की तरह व्यवहार कर रही हैं. नारायणमूर्ति यहीं नहीं रुके, उन्होंने आगे कहा कि सभी भारतीय कंपनियां, वीजा और ग्रीन कार्ड्स की गारंटी सुनिश्चित करती हैं, मानो वह अपने कर्मचारियों को अटलांटिक पार कराने के लिए ही कार्य करती हैं. जाहिर है, ऐसे में अगर किसी देश को हमारी इस कमजोर नस का पता चलेगा तो वह इस पर टैक्स लगाएगा ही लगाएगा! सिर्फ भारत ही ऐसा देश है, जो 'मुक्त व्यापार' करने और भारत के संशाधनों के लूट की खुली छूट देता है. अमेरिका अगर भारतीय आईटी कंपनियों की मजबूरी का फायदा उठाकर टैक्स पर टैक्स लगा रहा है तो जेटली जी, दर्द समझिए और उसका स्थाई निदान करने का रास्ता ढूंढिए! क्या भारत में रोजगार पैदा करने की सम्भावनाएं खोजना इसका स्थाई निदान नहीं है? यह बात अपनी जगह है कि भारतीय निर्यात का बड़ा हिस्सा नार्थ अमेरिकी क्षेत्र में आईटी सेवाओं के द्वारा आता है, किन्तु क्या ऐसी स्थिति हमें बने रहने देना चाहिए? क्या इनफ़ोसिस के नारायणमूर्ति जैसे दिग्गजों की राय का तमाम आईटी कंपनियों और सरकारी नीतियों के लिए कोई मायना नहीं है? जाहिर है, हम समय की मांग से जी चुराना सीख गए हैं और इसलिए सरकार को गिड़गिड़ाहट भरे स्वर निकालने पड़ रहे हैं, किन्तु उनकी गिड़गिड़ाहट को 'सुनता' कौन है, यक्ष प्रश्न तो यह है!
IT Industry, Arun Jaitley and Indo US business relations, hindi article,
H1B visa, IT sector, Arun Jaitley, American Visa Fee, US visa , fee hike ,discriminatory , targeted , Indian IT Arun Jaitley, Totalisation agreement , Social , Nasscom, highly discriminatory, IT industry, science, technology, engineering ,mathematics, shortage of skills, negative thing,  impact Indo-U.S. ties, protectionism, election year, competitiveness, n narayanmurthy, job in India, election in usa, donald trump, immigration agents, green card facility, hindi article, creating jobs in India

एक टिप्पणी भेजें

2 टिप्पणियाँ

  1. इसके लिए सरकार के साथ साथ प्राइवेट सेक्टर को भी सोचना चाहिए की हम जो पैसे बाहर के देशो पर किसी न किसी प्रकर के टैक्स के रूप में जाया कर रहे है यदि उसे हम अपने देश में इन्वेस्ट करें तो उसके क्या फायदे है और क्या नुकसान ? इसके साथ ही दिखावे के रिस्तो से बचना चाहिए

    जवाब देंहटाएं
  2. अपने देश से उच्च डिग्री ले के अपनी सेवाएं अमेरिका को मुहैया कराने वालों के लिए अच्छा है. अपने देश के प्रति वफादारी न दिखाने का कुछ तो परिणाम भुगता चाहिए.

    जवाब देंहटाएं
Emoji
(y)
:)
:(
hihi
:-)
:D
=D
:-d
;(
;-(
@-)
:P
:o
:>)
(o)
:p
(p)
:-s
(m)
8-)
:-t
:-b
b-(
:-#
=p~
x-)
(k)