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देश में बहुप्रतीक्षित पांच राज्यों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं और आज, 19 मई को 1 बजे तक रूझानों से यह साफ़ हो चुका है कि कौन कहाँ सरकार बनाएगा. देश के तमाम सर्वेक्षणों के परिणामों के अनुरूप ही असली रिजल्ट रहे हैं, किन्तु सर्वाधिक चौंकाया है तमिलनाडु की जयललिता ने! जी हाँ, कई सर्वेक्षणों में जयललिता को हारा हुआ दिखा दिया गया तो करूणानिधि की वापसी की बातें भी कही गयीं, किन्तु साफ़ तौर पर एंटी-इंकम्बेंसी को मात देते हुए जयललिता ने एआईडीएमके को अपने दम पर सत्ता में वापसी करा ही दिया. लगभग 127 सीटों पर जयललिता की पार्टी तो 100 के पास करूणानिधि की पार्टी को सीटें मिलने की बात दिख रही है. हालाँकि, शाम 5 बजे तक परिणाम और खुलकर सामने आ जायेंगे, किन्तु इससे अधिक बदलाव की गुंजाइश नहीं दिखती है. तमिलनाडु के इतिहास में यह भी चमत्कार ही है, क्योंकि अक्सर इस दक्षिण भारतीय राज्य में सत्ता का रोटेशन ही हुआ है. चुनाव परिणामों से उत्साहित अन्नाद्रमुक सुप्रीमो जे.जयललिता ने कहा है कि तमिलनाडु की जनता ने फैमिली पॉलिटिक्स को खारिज किया है. जाहिर है, उनका सीधा इशारा करूणानिधि के कुनबे की ओर रहा है. जयललिता के इस स्टेटमेंट से यह संकेत भी मिलता है कि उन्हें खुद अपने कामों पर भरोसा कम रहा है, और करूणानिधि कुनबे की नाकामी पर ज्यादा विश्वास रहा है. हालाँकि, उन्होंने यह भी कहा है कि विकास के हर क्षेत्र में तमिलनाडु को नंबर-1 बनाएंगे. पर सवाल वही है कि जयललिता को अपनी सक्रियता बढ़ानी होगी, अन्यथा उनकी जीत का मार्जिन उन्हें भी परेशान कर सकता है. सच यही है कि इस राज्य में करूणानिधि और उनके सहयोगियों की हार हुई है और अगर अपने परिवार में विवाद और साफ़ सुथरी छवि के साथ वह चुनाव लड़ते तो परिणाम जयललिता की बजाय करूणानिधि के पक्ष भी जा सकता था.
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खैर, परिणाम अंततः मायने रखते हैं और उसके अनुसार, 80 के दशक के इतिहास को दोहराते हुए जयललिता ने लगातार दूसरी बार सत्ता में काबिज होने की तैयारी कर ली है. अम्मा की पार्टी ने करुणानिधि और कांग्रेस को धूल चटाते हुए बहुमत का आंकड़ा छू लिया है और अब उनकी पार्टी वाले शपथ-ग्रहण समारोह की तैयारी करने की योजना बना रहे होंगे. तमिलनाडु के राजनीतिक इतिहास में 32 साल में पहली बार राज्य की जनता ने किसी पार्टी को लगातार दूसरी बार सत्ता सौंपी है. चुनावी रुझानों में जैसे ही जयललिता की पार्टी एडीएमके ने बढ़त बनानी शुरू की, उनके आवास के बाहर बड़ी संख्या में समर्थकों की भीड़ जमा होने लगी और वहां जश्न शुरू हो गया, तो स्वाभाविक रूप से डीएमके के प्रमुख 93-वर्षीय करुणानिधि की पार्टी के नेताओं और उनके समर्थकों में मायूसी का माहौल है. बताते चलें कि कि अधिकतर एग्जिट पोल ने 67 साल की जयललिता के धुर विरोधी करुणानिधि की पार्टी डीएमके के सत्ता में लौटने का अनुमान जताया था. करुणानिधि हालांकि व्हीलचेयर में हैं, लेकिन डीएमके को सत्ता मिलने पर उन्होंने मुख्यमंत्री पद संभालने का संकेत दिया था. हालाँकि, अब उनकी यह इच्छा पूरी नहीं होगी.
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जयललिता की जीत में जिन मुद्दों ने अपना रोल निभाया है, उसमें उनके चुनाव घोषणापत्र में सभी राशनकार्ड धारकों को मुफ्त में मोबाइल फोन देने सहित कई लोकलुभावन वादे किए थे. लेन-देन की राजनीति पर चुनाव आयोग ने भी सख्ती बरती थी. वैसे, पिछले विधानसभा चुनावों में भी जयललिता ने गृहणियों को मिक्सर ग्राइंडर दिया था. इसके अतिरिक्त, आम लोगों को काफी सस्ते दरों पर भोजन उपलब्ध कराने के लिए जयललिता द्वारा चलाई गए 'अम्मा कैंटीन' को खूब वाहवाही मिली थी. साफ़ जाहिर है कि बेंगलुरु की एक अदालत ने जयललिता को पिछले साल भ्रष्टाचार के मामलों में बरी कर दिया था, और उस विवाद के बावजूद जनता का भरोसा जीतने में यह महिला खुद को 'सिकंदर' साबित कर चुकी है, इस बात में दो राय नहीं! हालाँकि, भ्रष्टाचार के आरोप भी जयललिता के मंत्रियों पर लगे, किन्तु विकल्प के अभाव में तमिलनाडु की जनता के पास कोई अतिरिक्त चारा भी नहीं था और अंततः गद्दी जयललिता के पक्ष में ही आ गयी. पीएम नरेंद्र मोदी ने अन्नाद्रमुक प्रमुख को जीत की बधाई दे दी है, किन्तु यह देखना दिलचस्प रहेगा कि आने वाले समय में तमिलनाडु की जनता को क्या लाभ मिलता है और किन पक्षों से उसे नुक्सान उठाना पड़ता है.
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली. Read this article too :: भई! यहाँ तो 'दीदी' ही 'दादा' हैं!
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