हमारे देश में महिला अधिकारों पर हमेशा ही बहस चली है, किन्तु इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि आज 21वीं सदी में भी सिवाय बहस के हम कुछ ख़ास आगे नहीं बढ़ सके हैं. हालाँकि, समाज के कई क्षेत्रों से इस प्रकार की ख़बरें आती हैं, जिनसे उम्मीद की किरण दिखाई देती है, किन्तु यह बात भी उतनी ही सच है कि महिलाओं के सशक्तिकरण के मामलों में अभी 'दिल्ली दूर' है. इस क्रम में हमें उन प्रयासों की सराहना भी करनी होगी जो कई क्षेत्रों की महिलाओं के असाधारण कार्यों को प्रेरणा-श्रोत में प्रस्तुत करने का साहस करते हैं. गुमनामी में खो चुके संघर्ष की कहानी जिसने समाज को एक नया रास्ता देने की हिम्मत की है, ऐसी महिलाओं को सम्मानित करने की एक पहला दैनिक भास्कर ग्रुप ने भी 'वुमन प्राइड अवॉर्ड' नाम से की है, जो पिछले 4 साल से दिया जा रहा है. अब तक सैकड़ों महिलाओं को सम्मानित कर चुकी इस अवार्ड की ज्यूरी सदस्य बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी, शोभा डे और एसिड अटैक एक्टिविस्ट लक्ष्मी हैं. इस अवार्ड का फॉर्मेट कुछ ऐसा है कि सैकड़ों स्टोरीज में चार 'बेस्ट स्टोरीज' को ही ये अवार्ड मिलता है जिसमें 2016 की विजेता है जया धारोड, ज्योति धारोड, शांति जैसवाल और स्मृति सिंघल! इनकी कहानी लाखों महिलाओं के लिए इंस्पिरेशन बन सकती है और निश्चित रूप से ऐसी ज़िंदा कहानियां सुनायी ही जानी चाहिए. जया धारोड वोरा की कहानी मुंबई के चॉल से शुरू होती है जिसमें अनेक कठिनाइयों से जूझते हुए इस बहादुर महिला ने अपना जीवट साबित किया है. जया की शादी को अभी एक साल भी नहीं हुए थे कि इनके हार्ट के वॉल्व में कुछ परेशानी आ गई, जिसकी वजह से थोड़े दिनों बाद ससुराल वालों ने जया को उनके मायके भेज दिया.
जया का इलाज होने के बावजूद 1993 में इनके पति इनसे अलग हो गए और तब जया ने आपने डॉक्टर के कहने पर वॉलंटरी सर्विस करना शुरू कर दिया था. अपने जैसे मरीजों से मिलने पर उदासी और तनाव को दूर करना इस महिला के लिए आसान हो गया और फिर डबल ग्रेजुएशन और एलएलबी की शिक्षा भी इन्होंने पूरी कर ली. हमारे देश में जो कई महिलाएं एकाध तनावों से टूट जाती हैं, उन्हें इस महिला से अवश्य ही प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए, जिन्होंने पहली शादी टूटने के बाद भी ज़िन्दगी में अपना विश्वास नहीं खोया, बल्कि 1998 में दूसरी शादी किया और तीन बच्चों की परवरिश करते हुए जया ने 2006 में अपने दोनों वॉल्व के रिप्लेसमेंट के लिए हार्ट सर्जरी करवाई. 2009 में पति द्वारा उत्साहित करने पर एक बार फिर वॉलंटरी सर्विस शुरू किया इस महिला ने और गुजरात के मुंद्रा और कच्छ में कम्प्यूटर क्लास शुरू करने वाली पहली व्यक्ति बन गयीं! इतना ही नहीं जया ने स्वास्थ्य में सुधार होने के बाद लगन और मेहनत से कच्छ में मॉडर्न टेक्नीक की मदद से खेती शुरू किया, साथ ही साथ गाँव के किसानों को भी मोटिवेट किया. खेती में आने वाली तमाम समस्याओं से कैसे पार पाया जाय, यह एक महिला ने कर दिखाया, मसलन बैंक से लोन पास करना, बीज-ट्रैक्टर के लिए सरकार से सब्सिडी दिलाने में गांव वालों की मदद करना जैसे कार्य सफलतापूर्वक किये. इससे भी आगे बढ़कर, जया ने अपने क्षेत्र में पहली बार एनर्जी प्लांट और ड्रिप इर्रीगेशन टेक्नीक अपनाई. 2013, 2014, 2015 में गुजरात सरकार ने कच्छ में खेती में उच्च तकनीक के इस्तेमाल के लिए इन्हें सम्मानित किया तो भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इस महिला को बधाई दी. जाहिर है इस महिला ने जो राह दिखाई है, उससे प्रेरित होकर हमारे देश में हज़ारों, लाखों और करोड़ों ज़िंदगियाँ बेहतर बनाई जा सकती हैं, बस जरूरत है तो तमाम महिलाओं में जया जैसे जीवट और संघर्ष करने की ललक जगाने की.
इसी तरह भास्कर प्राइड अवार्ड द्वारा सम्मानित दूसरी महिला हैं ज्योति धारोड गाला एक क्लीनिकल परफुशनिस्ट (Clinical Perfusionist) हैं, जिन्होंने अमेरिका, इंडिया और कनाडा में हेल्थकेयर में 23 साल का एक्सपीरियंस के बाद बड़ा मुकाम हासिल किया है. बताते चलें कि स्पेशलाइज्ड हेल्थकेयर प्रोफेशन बेहद 'संवेदनशील' प्रोफेसन हैं, जिसमें ओपेन हार्ट सर्जरी के दौरान और ICU मशीन के जरिए हार्ट, लंग और बॉडी की नॉर्मल फीजियोलॉजी पर नजर रखा जाता है. जाहिर हैं कि ऐसे में एक छोटी गलती भी पेशेंट की जान ले सकती है". ज्योति एडवांस लाइफ सेविंग टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं, जिसे एक्स्ट्रा कॉर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजेनेशन (ECMO) के नाम से जाना जाता है. इन्होंने 180 दिनों तक ECMO किया है, जो अपने आप में एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है, हालाँकि इस दौरान पेशेंट लाइफ सेविंग मशीन पर रहा. अभी तक अमेरिका के 17 हॉस्पिटल, कनाडा के 3 और इंडिया के 14 हॉस्पिटल में काम कर चुकी ज्योति साइंटिफिक कॉन्फ्रेंसेस में मॉडरेटर और चेयरपर्सन भी रही हैं. इस महिला डॉक्टर की ज़िन्दगी में बड़े बदलाव के पीछे मानवीय संवेदनाएं ही महत्वपूर्ण कारक रही हैं, जब इनकी बड़ी बहन हार्ट की बीमारी से ग्रसित हुईं.
इसी क्रम में 53 साल की शांति जैसवाल सिर्फ दसवीं तक पढ़ाई करने के बाद भी महिलाओं को सेल्फ डिपेन्डेंट बना रहीं हैं, जो अपने आप में प्रेरित करने वाला कार्य हैं. हिमाचल प्रदेश के सोलन में इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल वेलफेयर (ICSW) की प्रेसिडेंट शांति जैसवाल हजारों महिलाओं को हथकरघा के हुनर के साथ सिलाई-कढ़ाई, कटाई- बुनाई के साथ ही बैग, टॉयज बनाने की ट्रेनिंग भी दे रही हैं. जाहिर हैं, महिलाओं के लिए बदल रही दुनिया मैं शांति जैसवाल जैसी महिलाओं का भी अहम योगदान है. इसी तरह दिल्ली की स्मृति सिंघल ने सिर्फ 20 साल की उम्र में 'द एजुकेशन ट्री' (TET) णमक ऑर्गनाइजेशन शुरू किया. तेजी से बढ़ रहे इस ऑर्गनाइजेशंस के सारे मेंबर्स युवा हैं, जिसका मोटो है सभी तरह की एजुकेशन को सुविधाजनक रूप से बढ़ावा देना, जिससे हर किसी का हर तरह से विकास हो और वह देश के लिए अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को समझे और उसको पूरा करना का प्रयत्न भी करे.
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