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चीन का यिनचुआन शहर ‘वर्ल्ड मुस्लिम सिटी’ बनाने जा रहा है. कहा जा रहा है कि चीन अपने इस महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट के बनने में अरब के रईसों का ध्यान रख रहा है. यह तो जगजाहिर हो चुका है कि चीन पाकिस्तान का समर्थन विश्व स्तर पर कर रहा है, और ऐसे में उसका यह प्रोजेक्ट निश्चित रूप से मुस्लिम जगत से उसके सम्बन्धों को मजबूत करने की रणनीति जाहिर करता है. चीन का यह प्रोजेक्ट 3.5 बिलियन डॉलर की अनुमानित लागत से बन रहा है जो 2020 तक पूरी तरह से तैयार हो सकता है. इतना ही नहीं इस शहर में मुस्लिमो को समर्पित एक बेहद विशाल और आलीशान थीम पार्क बनाने की भी योजना है. इस पार्क में ताजमहल और नीली मस्जिद दोनों के प्रतिरूप एक साथ लगाए जाने की भी योजना बताई जा रही है. सुनने में आ रहा है कि चीन अपनी छवि पर सुधारने की कोशिश में ‘वर्ल्ड मुस्लिम सिटी’ का निर्माण करा रहा है, क्योंकि अब तक चीन में मुस्लिम समुदाय को दबाया कुचला ही गया है. चीनी सरकार 'उइगर मुस्लिम समुदाय' को ध्यान में रखते हुए भी इस बात पर जोर दे रही होगी, क्योंकि चीन की सरकार पर अक्सर यह आरोप लगता है कि उइगर मुस्लिम समुदाय के साथ वह सौतेला व्यवहार करती है. चीन का यह रूप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खूब चर्चित हुआ है. चीन के इस प्रयास से उइगर और बाहरी देशों के मुस्लिमों में क्या सन्देश जायेगा, यह तो आने वाले दिनों में ही दिखेगा, किन्तु यह बात वहां के सत्ताधारियों में अवश्य ही घर कर चुकी है कि वैश्विक स्तर पर मुसलमानों के साथ से चीन अपनी कूटनीति को नया आयाम दे सकता है. जाहिर तौर पर अमेरिका और दुसरे पश्चिमी देशों में मुस्लिमों के खिलाफ एक माहौल देखा गया है और ऐसे में चीन का यह प्रयास कहीं न कहीं कट्टर मुसलमानों को अपनी ओर खींचने का प्रयास दिखता है.
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हालाँकि, चीन की आतंरिक सोच मुसलमानों के मामलों में कितनी बदलती है, इस बारे में अभी बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा है. पर चीन के आतंरिक मामलों में कौन देख सकता है भला, हाँ, इन प्रयासों से वह अंतर्राष्ट्रीय मुस्लिम समुदाय को अवश्य यह जताने की कोशिश कर सकता है कि वह अमेरिका से ज्यादा हितैषी है मुसलमानों के लिए! देखा जाय तो चीन हमेशा उइगर मुस्लिम समुदाय को दबा कर रखता आया है, जिसके लिए वह उनके कट्टरपंथी होने का हवाला भी देता है. हाल ही में खबर आई थी कि भारत सरकार ने उइगर नेता डोल्कन इसा को दिया गया ई-वीजा रद्द कर दिया, क्योंकि उनके खिलाफ इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस जारी हुआ था. इस मामले को लेकर चीन ने भी ऐतराज जताया था. जाहिर है, उइगरों को लेकर चीन किसी भी तरह की नरमी बरतने के खिलाफ है. अगर आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो, चीन के सबसे बड़े और पश्चिमी क्षेत्र शिंजियांग शहर में इस्लाम को मानने वाले उइगर समुदाय के काफी लोग है, जिनकी संख्या करोड़ों में है. चीन का शहर शिंजियांग की सीमा मंगोलिया, रूस, कजाखस्तान, किरजिस्तान, ताजीकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत जैसे आठ देशों लगी हुई है. गौरतलब है कि 1949 में पूर्वी तुर्किस्तान को एक अलग राष्ट्र का दर्जा मिला था लेकिन बाद में यह चीन का हिस्सा बन गया. 1990 में सोवियत संघ के पतन के बाद फिर से अपना राष्ट्र बनाने के लिए यहाँ के स्थानीय लोग आगे आये और चीन से अलग होने के मकसद से इस शहर में उइगर मुस्लिम ने 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' शुरू किया. इस आंदोलन को मध्य एशिया में कई मुस्लिम देशों का समर्थन भी मिला था, लेकिन चीनी सरकार की दमनकारी नीतियों के सामने किसी की भी एक न चली. इस शहर में उइगर की बहुलता को देखते हुए चीन ने चीनी समुदाय हान को रखने के साथ साथ सेना की कई टुकड़ियां भी तैनात कर दी हैं. साफ़ तउार पर चीन की वामपंथी सरकार का हान चीनियों को शिनजियांग में भेजने का मुख्य उदेश्य उइगरों के आंदोलन 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' को कुचलना है.
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कूटनीतिक दृष्टि से चीनी सरकार अपनी भेदभावपूर्ण नीतियां अपना कर विद्रोही रुख वाले उईगरों को नौकरियों में ऊंचे पदों पर बिठाकर कोई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहती है. ऐसे में इन नीतियों के कारण चीन की छवि 'उइगर और मुस्लिम विरोधी' बन गयी थी, जिसकी भरपाई करने के लिए उसने 'वर्ल्ड मुस्लिम सिटी' का नया तराना छेड़ा है. पाकिस्तान के साथ करीबी बढ़ा रहे चीन की दमनकारी नीतियों का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि यहाँ रमजान के महीने में मुस्लिम कर्मचारियों के रोजा रखने और मुस्लिम नागरिकों के दाढ़ी बढ़ाने पर भी पाबंदी है. इतना ही नहीं, 18 साल से कम उम्र के वर्ग को मस्जिद में जाने पर भी रोक है. यहाँ तक की कई मस्जिदें और मदरसों को राष्ट्रपति जिनपिंग के सख्त आदेश पर 2014 में ही गिरा दिया गया था. चीन अपने बचाव में यह तर्क देता है कि दंगो के जिम्मेदार भी उइगरों का संगठन 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' ही है. अमेरिका ने भी 'ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट' को उइगरों का एक अलगाववादी समूह करार दिया है और उनके अनुसार यह समुदाय अलगाववादी हो सकता है आतंकी नहीं! जाहिर है, तमाम वैश्विक दबावों में उलझे चीन की रणनीति एक कारगर प्रचार का कदम जरूर हो सकती है, किन्तु उसकी दमनकारी नीतियों के कारण मुस्लिम समुदाय का प्रेम उसके प्रति उमड़ पड़ेगा अथवा ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट कमजोर पड़ जायेगा, यह समझना जल्दबाजी ही होगी, क्योंकि किसी शायर ने कहा भी है कि-
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.सच्चाई छुप नहीं सकती, बनावट के उसूलों से,खुशबु आ नहीं सकती, कागज़ के फूलों से.
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2 टिप्पणियाँ
China is really dangerous for all !!
जवाब देंहटाएंचीन का उईगरों को कुचलने के बाद पाकिस्तान से रिस्ता और वर्ल्ड मुश्लिम सिटी का निर्माण , अचानक से मुश्लिम के साथ इतना लगाव क्यों ? हो सकता है चीन कुछ बड़ा प्लान कर रहा हो ?
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