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विश्व अल्जाइमर दिवस एवं पारिवारिक विघटन! World Alzheimer day 2016, Hindi Article, Mithilesh

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आप कल्पना कीजिये कि किसी व्यक्ति को सब कुछ भूल जाए, उसे कुछ याद ही न रहे! जाहिर है, ऐसे में ज़िन्दगी दुश्वार हो जाती है. अक्सर ऐसा देखा गया है कि बढ़ती उम्र के साथ लोगो में भूलने की आदत हो जाती है. ऐसे में, लोगों को कुछ भी याद नहीं रहता है, किसी को पहचानने में भी मुश्किल होती है, तो कई बार ऐसा होता है कि बुजुर्ग यदि टहल कर भी आते हैं तो उनको अपना घर पहचानने में दिक्क़त होती है. समझना मुश्किल नहीं है कि ऐसे में मानव मन किस कदर जद्दोजहद करता होगा? इन सारी परेशानियों को हम बहुत ही हल्के में लेते हैं और सोचते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ ऐसा होता ही है, लेकिन हकीकत यह है कि यह अल्जाइमर नाम की बीमारी है, जिसमें लोग सब कुछ भूलने लगते हैं. 1906 में जर्मन के न्यूरोलॉजिस्ट एलोइस अल्जाइमर ने इस बीमारी का पता लगाया था और इन्हीं के नाम पर इस बीमारी को 'अल्जाइमर(Alzheimer) कहा जाता है. दुनिया भर में लोगों को इस भूलने वाली बीमारी 'अल्जाइमर' के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के मक़सद से प्रत्येक साल 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है. स्मरण शक्ति कमजोर करने वाली यह बीमारी ज्यादातर बुजुर्गों को होती है, लेकिन कई बार इसके लक्षण युवाओं में भी पाये जाते हैं, इसलिए जागरूकता और इसका उचित इलाज बेहद आवश्यक है. हालाँकि, इस बीमारी के लिए कोई प्रॉपर इलाज अब तक विकसित नहीं किया जा सका है, लेकिन इसके लिए सावधानियां और व्यायाम जरूर हैं, जो इस बीमारी में काफी हद तक सहायक साबित होते हैं. इसकी चर्चा आगे की पंक्तियों में करेंगे. बताते चलें कि इससे पीड़ित लोग अक्सर कहीं पर भी सामान रख कर उसे भूल जाते हैं. इतना ही नहीं ऐसे लोग अपने दैनिक कार्य, अपना खुद का घर, खाना-पीना, नाम-पता, यहाँ तक कि नित्यक्रिया करना भी भूल जाते हैं. 

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गौरतलब है कि डिमेंशिया रोग के अनेक प्रकारों में अल्जाइमर भी एक बीमारी है, इसलिए अल्जाइमर को डिमेंशिया भी कहा जाता है. इसके लक्षणों में स्मरणशक्ति क्षीण होना, सोचने-समझने, भाषा और व्यवहार में ऊंटपटांग बदलाव इत्यादि शामिल है, जिसकी वहज से मरीज के हाव भाव बदल जाते हैं और वह चिड़चिड़ा, शक्की होने के साथ-साथ  अचानक रोने तक लगता है. यह भी एक बिडम्बना ही है कि आज विज्ञान के इस विकसित युग में भी अल्जाइमर का पता लगाने के लिए किसी भी तरह के ब्लड या यूरीन का कोई टेस्ट नहीं होता है. हालाँकि कुछ दिन पहले ही एक खबर जरूर आई थी कि खून से अल्जाइमर की जांच हो सकती है, क्योंकि कई साल पहले रक्त में पाए जाने वाले सेल्युलर चैटर का पता चला था, जिससे अल्जाइमर के बारे में जाना जा सकता है. इसमें अल्जाइमर के लक्षणों का पता लगने के लिए रक्त में उपस्थित जैविक सिग्नेचर की मदद ली जाती है. पर अभी भी मार्किट में इस तरह की सुविधा नहीं है, पर भविष्य में इसे लेकर उम्मीद जरूर जगी है. वैज्ञानिकों के अनुसार, इस बीमारी का कारण मस्तिष्क में उपस्थित होने वाली कुछ जटिल घटनाएँ हैं, इसलिए इसमें मस्तिष्क को स्कैन करके उसकी अंदरूनी स्थिति में होने वाले दिमागी परिवर्तनों को देखा जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि तनाव, ब्रेन ट्यूमर, डिप्रेशन, थायरॉयड, संक्रमण, विटमिन्स की कमी भी इसका कारण हो सकता है. इस बीमारी में संतुलित भोजन मस्तिष्क को ठीक करने में कुछ हद तक सहायक पाया गया है. न्यूयॉर्क के आर्काइव ऑफ न्यूरोलॉजी में सवा दो हजार अल्जाइमर रोगियों पर शोध करने के उपरांत यही कहा गया कि "यदि डाइट में पौष्टिक और संतुलित भोजन को शामिल करें तो दिमाग को बेहतर बनाने में मदद मिलती है, इसलिए ऐसे मरीजों को खाने में लापरवाही न बरतने दें और उनके लिए संतुलित डाइट का प्रबंध करें". इसके साथ ही खाने में नमक और चीनी का इस्तेमाल न के बराबर करें, तो हाई सैचुरेटेड और कोलेस्ट्रॉल युक्त भोजन को हाथ भी न लगाएं. 

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संतुलित आहार के साथ-साथ नियमित व्यायाम भी इस रोग से बचाव के लिए बेहद जरुरी है. इसी कड़ी में, अल्जाइमर पीड़ितों को हमेशा अपने आप को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, पढाई-लिखाई, गीत-संगीत और मनोरंजनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रखने की सलाह डॉक्टर्स द्वारा दी जाती है. इसके साथ-साथ दिमाग पर जोर पड़ना वाला खेल जैसे कि वर्ग पहेली, स्क्रैबल और शतरंज खेलना इसमें फायदेमंद रहता है तो सुबह में योग करना, ध्यान लगाना और घूमना फिरना भी इस रोग के लिए रामबाण के समान होता है.  हालही में एक सर्वे हुआ था जिसके अनुसार पुरे विश्व में इस बीमारी से लगभग 18 मिलियन लोग ग्रसित हैं, जो वर्ष 2025 तक दोगुना हो जायेंगे! भारत भी इस बीमारी से अछूता नहीं है और भारत में इसके रोगियों की संख्या विश्व की कुल संख्या के चौथाई प्रतिशत है. देखा जाय तो समाज में जो एकाकीपन आ रहा है, वह इस रोग और इसके रोगियों की संख्या बढ़ाने में सर्वाधिक घातक सिद्ध हुआ है. आज किसी के पास अपने बुजुर्गों के लिए, अपने वरिष्ठों के लिए समय ही नहीं है और ऐसे में व्यक्ति तमाम तरह के रोगों से ग्रसित हो जाता है. कहना जरूरी है कि अल्जाइमर जैसे रोगों की रोकथाम के लिए अन्य उपायों के साथ-साथ हमें परिवार में मेलजोल, बुजुर्गों की सेवा जैसे भारतीय उपायों की तरफ लौटना होगा, अन्यथा यह रोग बढ़ेगा ही. जाहिर है, सामाजिक विकृति से, संयुक्त परिवारों की टूटन से भी इस रोग का सीधा सम्बन्ध है और इसे पूरे विश्व को और खासकर हम भारतीयों को समझने की विशेष आवश्यकता है.

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.




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