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गोबिंद का भारत या गोबिंद का ही भारत ... !! Guru Gobind Singh Maharaj, Seminar in Hindi, Rashtra Kinkar, Rashtriya Sikkh Sangat, Hindi Press Release, Reporting in Hindi



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उत्तम नगर, नई दिल्ली / 8 जनवरी 2017. भारतवंशियों का यह सौभाग्य है कि हम उस महान देश में रहते हैं, जहां गुरु गोविंद सिंह जैसी महान आत्माओं ने अपनी लीलाएं की हैं. 8 जनवरी 2017 को सर्व वंशदानी, संत सिपाही गुरु गोविंद सिंह जी महाराज की 350वीं जयंती के अवसर पर साहित्यिक समाजिक संस्था 'राष्ट्र किंकर' और राष्ट्रीय सिख संगत के संयुक्त तत्वावधान में 'गोबिंद का भारत' विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसे देशभर के बड़े विद्वान और महापुरुषों ने अपने महत्वपूर्ण और अनुभव युक्त वक्तव्य से सुशोभित किया. राष्ट्र किंकर के संपादक डॉक्टर विनोद बब्बर ने मंच का संचालन संभाला तो किशोर श्रीवास्तव जी ने सरस्वती वंदना कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया. तत्पश्चात घमंडीलाल अग्रवाल, सरिता जी, नत्थी सिंह बघेल, देवबंद से ओमवीर, आफताब, संतोष पटेल जैसे कवियों ने गुरु गोबिंद सिंह पर विभिन्न काव्य रचनाएं प्रस्तुत की. Guru Gobind Singh Maharaj, Seminar in Hindi, Rashtra Kinkar, Rashtriya Sikkh Sangat, Hindi Press Release, Reporting in Hindi
भोजपुरी के सुप्रसिद्ध कवि गोरख प्रसाद मस्ताना जी ने अपनी सुमधुर आवाज में 'शमा' बाँध दिया और हिंदी के साथ भोजपुरी रचना सुनाकर श्रोताओं का मन मोह लिया. 

उसके बाद देश, धर्म के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी का त्याग, बलिदान और समाजिक समरसता का संदेश देने हेतु कार्यक्रम का मुख्य भाग शुरू हुआ. मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय सिख संगत के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री अविनाश जायसवाल जी ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कई महत्वपूर्ण बातें कहीं, जिसमें सबसे प्रमुख गुरु गोबिंद सिंह जी का सम्पूर्ण बलिदान छाया रहा. जायसवाल जी ने गुरु गोबिंद सिंह के बच्चों का जिक्र करते हुए माहौल को बेहद भावुक कर दिया और गुरु गोबिंद सिंह जी की माता गुजरी देवी और धर्मपत्नी सुंदरी देवी का भावपूर्ण जिक्र करते हुए देश भर की माताओं और बहनों को 'संस्कार का श्रोत' बताया. साफ़ तौर पर नारी शक्ति का अभिनन्दन करते हुए सिक्ख सांगत के इस पदाधिकारी ने कहा कि हमारे देश की माताएं, बहनें जब तक इस धरा पर हैं, तब तक भारतीय संस्कृति पर किसी प्रकार की आंच नहीं आ सकती. अपने विस्तृत संबोधन में इस विद्वान ने मुस्लिम कवि बुल्लेशाह का जिक्र किया जिसने गुरु गोविंद सिंह के भारतीय संस्कृति को बचाने के योगदान के संबंध में लिखा है कि- Guru Gobind Singh Maharaj, Seminar in Hindi, Rashtra Kinkar, Rashtriya Sikkh Sangat, Hindi Press Release, Reporting in Hindi
ना बोलूं अबकी ना बोलूं तब की 
गुरु गोबिंद सिंह ना होते, तो सुन्नत होती सबकी 

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बेहद कठिन परिस्थिति में जब करोड़ों की संख्या में होने के बावजूद भारतीय समाज विभिन्न जाति सम्प्रदायों में बंटा हुआ था, उस समय अपने आप में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाक्रम था 'देशभर से 80 हजार संगतों का आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद सिंह की प्रेरणा से उपस्थित होना! वहां 'पंच प्यारों' को गुरुवर ने अमृत छकाया. जातिप्रथा को नकारते हुए देश के कोने-कोने से अलग जाति के लोगों को 'पंच प्यारे' चुनने का किस्सा हम सब को ज्ञात है ही, किन्तु इससे आगे का किस्सा सुनाते हुए जायसवाल जी ने कहा कि 'गुरु गोबिंद सिंह इतने विनम्र थे कि उन्होंने खुद पंच प्यारों को अमृत छकाने के बाद कहा कि अब आपका शिष्य मैं हूं और मुझे अमृत छकाइये! वीर और करुण भाव से इस उद्धरण का ज़िक्र करते हुए वक्ता कहा कि जब गोबिंद सिंह ने  अमृत छकने को कहा तो पंच प्यारों ने कहा कि 'हमसे तो आपने बलिदान ले लिया है, पर अमृत छकने के लिए आप क्या दोगे'? गुरु गोबिंद सिंह ने तब कहा कि "बलिदान"! आने वाले समय ने देखा कि अपने इस संकल्प को उन्होंने सम्पूर्ण बलिदान देकर सार्थक भी किया. कार्यक्रम के बीच में "जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल" के नारे नियमित अंतराल पर गूंजते रहे. वक्ता अविनाश जायसवाल ने बिहार सरकार का भी प्रशंसात्मक जिक्र किया, जिसने गुरु गोविंद सिंह की 350वीं जयंती मनाने के लिए बड़े स्तर पर सुविधाएं और प्रशासनिक व्यवस्था दुरुस्त की हैं. निश्चित रूप से कई मामलों में बदनाम रहे बिहार को इस 'ब्रांडिंग' की जरुरत थी और इसके निमित्त बने गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज! जनमानस की महत्ता बताते हुए वक्ता ने कहा कि 'किसी भी महानुभाव के भीतर हम नहीं आना चाहिए', जैसा कि गोबिंद सिंह ने कहा था Guru Gobind Singh Maharaj, Seminar in Hindi, Rashtra Kinkar, Rashtriya Sikkh Sangat, Hindi Press Release, Reporting in Hindi
मैं हूं परम पुर को दासा, देखन आयो जगत तमाशा'! 

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गुरूजी के कहने का अभिप्राय यही रहा कि 'हमें परमेश्वर ना मानो और अगर कोई हमें परमेश्वर मानेगा तो वह नरक को जाएगा.' इसी क्रम में वीर बंदा बैरागी को बंदा बहादुर बनाने का जिक्र जायसवाल जी ने किया जो आगे महाराणा रणजीत सिंह तक पहुंचा और खालसा राज की स्थापना संभव हो सकी. मॉरीशस से पधारे कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रामदेव धुरंधर जी ने हिंदी सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बताते हुए मारीशस से संबंधित अपने छोटे-बड़े अनुभव साझा किए. उन्होंने बताया कि मारीशस में फ्रेंच भाषा की ज्यादा प्रमुखता है तो भोजपुरी का भी बेहद चलन है, जबकि हिंदी बेहद न्यून रूप में विद्यमान है. बेहद साफगोई से धुरंधर जी ने कहा कि अगर भोजपुरी भाषा भी थोड़ी बहुत बच जाती है, तो हिंदी भी बच ही जाएगी. आगे, पोर्ट लुइस में सिख गुरुद्वारे का जिक्र करते हुए सभी को मारीशस आने का न्यौता रामदेव धुरंधर जी ने दिया तो भारत आने पर अपने हिंदी प्रेम को उन्होंने खुलकर व्यक्त किया और इस बात के लिए आभार प्रकट करते दिखे कि भारत में सर्वत्र हिंदी का बोलबाला है और इससे मारीशस के लोग भी अवश्य ही प्रेरणा लेंगे. कार्यक्रम में बोलते हुए प्रोफ़ेसर कुलविंदर जी ने गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन से संबंधित कुछ सिद्धांतों का जिक्र किया जिसमें उसूल, चढ़दी कला, खालसा प्रमुख हैं. कई व्यवहारिक कहानियां सुनाते हुए सभागार में उपस्थित मंडली को उन्होंने भाव विभोर कर दिया. कीरत करो, नाम जपो का संदेश दुहराते हुए प्रोफ़ेसर कुलविंदर ने कहा कि हर एक को अपने जीवन में से 'समय और आमदनी' का कम से कम 10 परसेंट हिस्सा समाज की भलाई में लगाना ही चाहिए. Guru Gobind Singh Maharaj, Seminar in Hindi, Rashtra Kinkar, Rashtriya Sikkh Sangat, Hindi Press Release, Reporting in Hindi



अगले वक्ता के रूप में पी.एस. जोली, जो 'जॉली अंकल' के नाम से साहित्य जगत में प्रसिद्ध हैं, उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी के 350वें प्रकाश पर्व पर बिहार सरकार की अद्भुत और गरिमामय सुविधा का जिक्र किया और बिहार सरकार को कोटि कोटि बधाई प्रेषित की. तत्पश्चात अगले वक्ता के रूप में, विश्व भर में संस्कृत विद्वान के रूप में सुप्रसिद्ध आचार्य, पद्मश्री डॉक्टर रमाकांत शुक्ल ने अपने संबोधन में इस बात का बखूबी जिक्र किया कि अगर आप अपनी गलतियां कर करके सीखना चाहोगे, तो आपके लिए उम्र कम पड़ेगी, इसलिए गोबिंद सिंह जैसे महापुरुषों के अनुभव से सीखें और उनके बताए हुए रास्ते पर चलें. इस तरह सहस्त्राब्दियों का निचोड़ आप कुछ ही देर में पा सकते हैं, जिसे हर एक को धारण करना चाहिए. आचार्य शुक्ल ने साधारण से साधारण लोगों से असाधारण कार्य कराने वाले गुरु गोबिंद सिंह की महिमा को बताते हुए कहा कि खालसा धर्म की स्थापना करने के पीछे उनका उद्देश्य था:
राज करेगा खालसा, आकी रहे न कोय! Guru Gobind Singh Maharaj, Seminar in Hindi, Rashtra Kinkar, Rashtriya Sikkh Sangat, Hindi Press Release, Reporting in Hindi

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यहाँ आकी का मतलब 'दुखी' से है, मतलब खालसा के राज्य में कोई भी दुखी नहीं रहना चाहिए. पद्मश्री डॉक्टर रमाकांत शुक्ल ने समाज में दो तरह की शक्तियों का जिक्र किया, जिसमें एक राज करने की शक्ति है जो समाज को तोड़ती है तो दूसरी समाज को धारण करने की शक्ति होती है जो हमें संगठित करती है. इस संदर्भ में राजा दिलीप का जिक्र करते हुए आदर्श राजा के गुणों का बखान डॉ. शुक्ल ने व्यवहारिक ढंग से किया और उसे वर्तमान राजनीति से जोड़ते हुए इस बात को दुहराया कि जिसके लिए प्रजा पुत्र समान होती है, वही आदर्श राजा होता है. समाज को भगवान का प्रथम रुप बताते हुए डॉ शुक्ल ने "सर्व भूत हिते रतः" का मंत्र दुहराया, तो निर्मल संतो की परंपरा आगे बढ़ाने का सिख संगत से उन्होंने निवेदन भी किया. ज्ञातव्य हो कि निर्मल संतो द्वारा संस्कृत पढ़ने वाराणसी जाने का उल्लेख आता है और इस तरह संस्कृत भाषा की महत्ता बताते हुए डॉक्टर साहब ने इसे सभी भारतीय भाषाओं से जोड़ा और कहा कि अगर कोई संस्कृत सीखता है तो भारतवर्ष की अधिकांश भाषाओं का कुछ भाग को उसे यूंही आ जाएगा. पद्मश्री से सम्मानित विद्वान डॉ. शुक्ल के संबोधन के पश्चात सिख विद्वान अजय पाल जी ने योगेश्वर श्रीकृष्ण और गोबिन्द की तुलना करते हुए इन दोनों को महानतम पुरुषों की श्रृंखला में रखा. अपने वक्तव्य में खुशियों का जिक्र करते हुए बालक गोबिन्द सिंह का उद्धरण अजय पाल ने दिया और कहा कि वह समाज को 'गुझियों से बाहर निकालने' आए हैं. Guru Gobind Singh Maharaj, Seminar in Hindi, Rashtra Kinkar, Rashtriya Sikkh Sangat, Hindi Press Release, Reporting in Hindi

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इस सम्बन्ध में तत्कालीन समय में प्रचलित इस्लाम जो अपने सिवा दूसरों को काफ़िर समझता था और हिन्दू समाज जो जाति प्रथा में विभक्त था, उन दोनों का ज़िक्र दो गुझियों से किया गया है  और गोबिंद सिंह का संकल्प समाज को एक नयी राह की ओर लेकर चलना था. जैसा कि हम सब जानते हैं कश्मीर तत्कालीन समय में बेहद पढ़ा-लिखा और समृद्ध था और इसलिए वह औरंगजेब के निशाने पर आ गया था. मुग़ल बादशाह की सोच थी कि अगर कश्मीर के लोग मुसलमान बन जाएँ तो शेष भारत के लोगों वैसे ही मुस्लिम बन जाएंगे और इस समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए गुरु तेग बहादुर ने बालक गोबिन्द के कहने पर अपना बलिदान दे दिया था. इतना ही नहीं आगे चलकर गोविंद सिंह ने अपने पुत्रों का सहर्ष न्योछावर कर दिया. यह कितना बड़ा बलिदान है, इसका जिक्र करते हुए सिक्ख विद्वान अजय पाल ने डॉक्टर और वैक्सीनेशन का जिक्र किया कि अगर हम अपने बच्चे को डॉक्टर के पास कोई वैक्सीन दिलाने ले जाते हैं और डॉक्टर जब सिरिंज में दवाई भरता है तो हम इधर उधर देखने लगते हैं, क्योंकि बच्चे का दर्द हम से बर्दाश्त नहीं होता है. सहज कल्पना की जा सकती है कि अपने बच्चों का बलिदान देने वाले महापुरुष किस मिट्टी के बने होंगे. तत्पश्चात कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर देवेंद्र कुमावत ने सभी विद्वानों का अभिनंदन किया तो पूरे कार्यक्रम के महत्वपूर्ण बिंदुओं का सारांश प्रस्तुत किया और भारतीय संस्कृति की अलख जगाने वाले विनायक विद्यापीठ संस्थान में विद्वत-मंडली को आने का सहर्ष निमंत्रण दिया. तत्पश्चात राष्ट्रीय सिख संगत के प्रदेश अध्यक्ष बाली जी ने सभी विद्वानों का धन्यवाद किया और फिर पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम संपन्न हुआ. पुरस्कार वितरण में विभिन्न विद्वानों को श्री साहिब, खालसा प्रतीक चिन्ह, शाल इत्यादि प्रदान किये गए. भोजन प्रसाद के उपरान्त कार्यक्रम संपन्न हुआ और श्रोतागण गुरु गोबिंद सिंह का जीवन-चरित्र याद करते हुए घर को रवाना हुए.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.



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