नए लेख

6/recent/ticker-posts

'बुद्धम् शरणम् गच्छामि' के निहितार्थ - Buddham Sharanam Gachchami, Hindi Article, Mithilesh

नरेंद्र मोदी के केंद्रीय सत्ता सँभालने के बाद अगर बड़े विवादों की बात की जाय तो उसमें 'रोहित वेमुला' की ख़ुदकुशी भी एक होगी. बल्कि, यह कहा जाय कि रोहित वेमुला की मौत को तमाम विपक्षियों ने मोदी-विरोध का मजबूत हथियार बनाने की कोशिश की तो गलत न होगा. बात सिर्फ मोदी विरोध की ही रहती तो एक पल के लिए इसकी गम्भीरता पर दूसरी बातें न कही जातीं, किन्तु डॉ. आंबेडकर का नाम ले लेकर इस पर हो रही राजनीति को बखूबी धार दी गयी तो डॉ. आंबेडकर जयंती के दिन ही उनके परिवार द्वारा 'बौद्ध धर्म' स्वीकारने के निहितार्थ कहीं ज्यादा गहरे दिखते हैं. सवाल सिर्फ 'बुद्धम् शरणम् गच्छामि' का ही नहीं है, क्योंकि इतिहास में यह बात बखूबी दर्ज है कि किस प्रकार तमाम ईसाई पादरियों और इस्लामिक मौलवियों द्वारा डोरे डाले जाने के बाद भी डॉ. आंबेडकर ने हिन्दू धर्म में कुरीतियों का विरोध करने के लिए 'बौद्ध धर्म' की दीक्षा ली थी. उनका साफ़ कहना था कि विदेशी धरती पर जन्मा धर्म, भारतवासियों के कल्याण के लिए कतई उपयोगी नहीं हो सकता है. 'बौद्ध धर्म' के भारतीय होने के बावजूद, रोहित वेमुला के परिवार द्वारा 'बुद्धम् शरणं गच्छामि' कहने से संघ परिवार में निश्चित रूप से खलबली मच गयी होगी, क्योंकि रोहित वेमुला के मामले की डॉ. आंबेडकर से भले ही तुलना न की जा सके, किन्तु यह बात इतिहास में दर्ज हो ही गयी है और चर्चित रूप में दर्ज हो गयी है कि 'हिन्दुओं' का विरोध करना हो तो 'बौद्ध' बन जाओ. हालाँकि, इस पूरे कृत्य के पीछे 'संकीर्ण राजनीति' छिपी हुई है, जिसने रोहित के परिवार को इस बाबत मनाने के लिए जी जान झोंक दिया होगा. ज़रा गौर कीजिये, बाबा साहेब की 125 वीं जयंती के दिन ही यह सारा कार्य सम्पादित किया जाता है. 

जाहिर है, एक आम परिवार अगर भावनाओं में बहकर ऐसा कोई फैसला लेता भी है तो वह इतनी सटीकता से दिवस का चुनाव शायद ही करे. खैर, इस पर आरोप प्रत्यारोप चलते रहेंगे, तो आंबेडकर की विरासत पर जंग भी चलेगी. हाँ, यह प्रश्न अवश्य ही हमेशा की तरह परिदृश्य में चला जायेगा कि 'सामाजिक बराबरी' की वकालत करने में सबसे आगे रहे 'संविधान निर्माता' के उद्देश्यों और सोच की कदर किसने, कितनी की. इस परिदृश्य में देखा जाय तो, अंबेडकर सेंट्रल यूनिवर्सिटी में जेआरएफ क्वालिफाई करके हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में पीएचडी करने आया एक होनहार छात्र अपने जीवन को समाप्त कर लेगा ऐसा किसी को अंदाजा शायद ही रहा हो! पर रोहित वेमुला इस राह पर चले, जिनकी आत्महत्या ने खासी सुर्खियां बटोरी थी तो उनकी मौत को 'हॉट केक' की तरह 'जेएनयू' में भी घुमाया गया! राजनीति के धुरंधरों को मौका मिला था, एक दूसरे पे कीचड़ उछालने का तो वहीं मीडिया को नया मुद्दा मिला गया था अपनी टी.आर.पी. बढ़ाने का! खैर, रोहित का नाम एक बार फिर चर्चा में है लेकिन वजह कुछ और है. अपने बेटे रोहित वेमुला की खुदकुशी के लगभग तीन महीने बाद रोहित की माँ तथा भाई ने 'बौद्ध धर्म' ग्रहण कर लिया है. रोहित के परिवार का कहना है कि वे 'दमनकारी जाति व्यवस्था' से आजादी चाहते हैं, इस लिए उन्होंने 'बौद्ध धर्म' अपनाया है. ठीक बात ही है कि हमारे देश का 'जाति व्यवस्था' ने बड़ा अहित किया है, बल्कि यहाँ तक कहा जा सकता है कि भारत-राष्ट्र को लम्बे समय तक 'गुलामी की ज़ंजीरों' में बंधे रहने में भी इसका योगदान अन्य कारकों से कहीं ज्यादा है. पर काश! मरने से पहले रोहित वेमुला और उनके जाने के बाद उनका परिवार यह गौर कर पाता कि डॉ. आंबेडकर के समय से आज का समय किस हद तक बदल चुका है! आज, जाति-व्यवस्था सामाजिक समस्या से हटकर, सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक समस्या रह गयी है, जिसे कभी वोट के नाम पर, कभी आरक्षण के नाम पर राजनेता भुनाते रहे हैं! 

डॉ. आंबेडकर के 'बुद्धम् शरणं गच्छामि' कहने और रोहित वेमुला के 'बुद्धम् शरणं गच्छामि' कहने में यही बड़ा अंतर है कि तब 'सामाजिक गैर-बराबरी' के खिलाफ माहौल बना था, किन्तु आज का यह कृत्य सिर्फ और सिर्फ 'राजनीतिक मोहरा' बन कर रह गया. आज किस जाति को क्या सम्मान नहीं है? इसके विपरीत अगर अन्याय की बात कही जाए तो किस जाति के साथ क्या अन्याय नहीं हो रहा है? पर अन्याय का मतलब पलायन है क्या? काश, रोहित का परिवार इस तरह के राजनीतिक षड्यंत्र में फंसने से पहले उन दलितों और पिछड़ों का विचार कर पाता, जो जेआरएफ और नेट जैसे उच्च-स्तरीय परीक्षाएं तो क्या 'मैट्रिक' तक की परीक्षाएं नहीं दे पा रहे हैं. रोहित के परिवार में तो सब उच्च-शिक्षित हैं, जितनी शिक्षा तो कई सवर्णों के पास भी नहीं होगी. बल्कि, यह कहा जाय तो आप 10 सवर्णों से इन परीक्षाओं का फुल फॉर्म भी पूछेंगे तो वह शायद ही बता पाएं. जाहिर है, रोहित का परिवार तथ्यात्मक रूप में सामाजिक असमानता का शिकार नहीं था! हाँ, उनके साथ रोहित की ख़ुदकुशी के रूप में अवश्य ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, किन्तु इस घटना का वास्तविक कारण रहा क्या है, यह बात भी अभी खुलकर सामने नहीं आ सकी है. क्या पता, वह बच्चा किस बात से निराश था. लोग, सुसाइड जैसा कदम 'बाहरी दबाव' की बजाय 'घरेलु' तनावों की वजह से ज्यादा उठाते हैं. देखा जाय तो, किसी का मानव के रूप में जन्म लेना ही काफी है सम्मानपूर्वक जीने के लिए! धर्म का सहारा लेने के पीछे अक्सर कुत्सित मानसिकता ही सामने दिखाई पड़ी है. सभ्यता के इस दौर में भी ऊंच -नीच, छोटा-बड़ा का भेद समझते वालों की लानत मलानत होनी ही चाहिए, किन्तु समाज को कमजोर करने से किसका और क्या लाभ होने वाला है भला? हमारे ऋषि- मुनियों ने जब जाति-व्यवस्था बनायीं थी, तो उसका आधार कर्म था 'नयी जातियों' का निर्माण बदस्तूर जारी है, जिसकी विकृति दिखाई देने लगी है. 

मसलन, नेता की औलाद नेता ही होगी! कोई यह बता दे कि हमारे देश में आज वही स्थान 'नेताओं' का हो गया है, जो भारत में 'सवर्णों' का था. आज भी योग्यता, अयोग्यता के बजाय 'जाति' को ही प्रश्रय दिया जा रहा है, नहीं तो देश 'राहुल गांधी' जैसों को झेलने को मजबूर क्यों होता भला? यही तो 'जाति व्यवस्था' है जो धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते दूसरों पर शासन करने लगती है, उनको प्रताड़ित करने लगती है. क्या हमें इतिहास से सीख लेकर आज की नयी 'जातियों' के निर्माण के प्रति सचेत नहीं होना चाहिए? सिर्फ नेता ही क्यों, फिल्म अभिनेता का बेटा 'एक्टर' ही हो रहा है, बेशक उसकी हालत 'अभिषेक बच्चन' जैसी ही क्यों न हो जाए तो इसी प्रकार 'आइएएस लॉबी' अपने बच्चों को 'गर्भ' में आते ही 'आईएएस' बनाने का मंसूबा पालने लगती है! ठेकेदार का बेटा ठेकेदार ही क्यों बन रहा है आखिर आज! विजय माल्या और अम्बानी जैसों के बेटे पैदा होने के साथ ही 'सवर्ण' बने बैठे हैं आज! क्या इन वर्तमान कुरीतियों के प्रति रोहित के परिवार को आवाज नहीं उठानी चाहिए, बजाय कि जो व्यवस्था अब चरमरा चुकी है, उस पर राजनीति करने वालों का साथ देने के? बहुत मुमकिन है कि केजरीवाल जैसा कोई नेता रोहित की माँ या भाई को चुनाव में कहीं से टिकट भी दे दे, किन्तु सवाल यही है कि इससे पिछड़ों के जीवन में क्या बदलाव आ जायेगा? पिछड़ों के नाम पर कितने लोगों ने 'क्रीमी लेयर' बना डाली है जो कालांतर में 'कृमि' बन कर सबका हक़ चट करती जा रही है, किन्तु इस बात पर कोई आंदोलन नहीं होता, कोई सुगबुगाहट नहीं होती, आखिर क्यों? धर्म और जाति के नाम पर पाखण्ड करने वाले न पहले कम थे और न आज कम हैं. सुना कि किसी शंकराचार्य ने शनि के दर्शन से 'महिलाओं के रेप' में बढ़ोतरी होने की भविष्यवाणी कर डाली है. 

वाह रे धर्म! वाह रे ठेकेदारों! आप जैसे मठाधीशों को देखकर कुछ और समझने की आवश्यकता नहीं रह जाती है कि यह 'देश' विधर्मियों के हाथों क्यों हज़ारों साल तक गुलाम बना रहा. कभी आप जैसे लोगों की साईं को मिल रहे चढ़ावे पर नज़र चली जाती है तो कभी आप गुस्से में आकर किसी पत्रकार को थप्पड़ मार देते हैं, किन्तु आपको यह सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं होती है कि आखिर कोई व्यक्ति क्यों हिन्दू धर्म छोड़ने के लिए 'बरगला' दिया जाता है. खैर, आप भक्तों की सेवा लीजिए और मोटी गद्दियों पर जीवन बिताइए, क्योंकि आप जैसे लोगों की भी एक ख़ास 'जाति' ही है, जो चापलूसी से प्राप्त होती है और योग्य स्वामियों को साइड कर दिया जाता है. जहाँ तक बात बौद्ध धर्म की है तो, अगर दो शब्दों में इसे व्यक्त किया जाये तो वो है  'अभ्यास और जागृति'. बौद्ध धर्म की ऐसी मान्यता है कि कर्म ही जीवन में सुख और दुख लाता है और सभी कर्म चक्रों से मुक्त हो जाना ही 'मोक्ष' है. हिन्दू धर्म की ही भांति, बौद्ध धर्म में भी दो संप्रदाय है हिनयान और महायान, जिसमें हिनयान को छोटा तथा महायान को बड़ा समझा जाता है. भाई, हम जैसे आम भारतीय तो दुआ कर सकते हैं कि देश के नागरिक खुश रहें, उनको और उनके परिवार को समुचित सम्मान मिले! इसके साथ-साथ इस बात की दुआ भी हम सबको करनी चाहिए कि लोग राजनीति के कुचक्रों में कम से कम फंसे और स्वेच्छा से 'जय श्री राम कहें' अथवा कहें 'बुद्धम् शरणं गच्छामि'!

Buddham Sharanam Gachchami, Hindi Article, Mithilesh, 
Rohith Vemula, Raja Vemula, Ambedkar Anniversary, Buddhism,Rohith Vemula suicide, hindutva,hindu religion, buddh ,Buddhism, Pilgrimage, Religion, hinduism, Philosophy, Buddha,  Buddhist Pilgrimage, Buddhist Sect, बौद्ध धर्म, politics, kejriwal, hinduism, hindutva, today's casteism, aaj ki jaati, creme layer,  shankaracharya,  neta ka beta neta, thekedaar ka beta thekedaar, rahul gandhi, abhishek bachchan

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. समस्या चाहे जितनी भी हो हमें उससे भागना नहीं चाहिए बल्कि उसका सामना करना चाहिए, फिर ये तो धर्म की बात है अगर सच में समस्या है तो उसके खिलाफ आवाज उठाना चाहिए. आजकल तो अपनी बात लोगों तक पहुंचाना और भी आसान हो गया है.

    जवाब देंहटाएं
Emoji
(y)
:)
:(
hihi
:-)
:D
=D
:-d
;(
;-(
@-)
:P
:o
:>)
(o)
:p
(p)
:-s
(m)
8-)
:-t
:-b
b-(
:-#
=p~
x-)
(k)