केंद्र में नयी सरकार के केंद्र में गठन के साथ ही उद्योगों को बढ़ावा देने की नीति पर जमकर कार्य करने की कोशिश दिखाई देती है, किन्तु बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई उद्योगों की दशा-दिशा में कोई परिवर्तन आ भी रहा है या नहीं! खासकर जब लघु उद्योगों की बात करते हैं तब यह प्रश्न और भी गम्भीर हो जाता है, क्योंकि देश में लघु उद्योग अपनी पहचान खोते जा रहे हैं. अगर थोड़ा बहुत उनकी हालत कहीं ठीक भी है तो वह सिर्फ और सिर्फ 'वेंडरशिप' के दम पर! तमाम बड़ी कंपनियां अपनी मार्केटिंग एवं कॉर्पोरेट स्ट्रक्चर के दम बड़ा मुनाफा खुद हज़म कर जाती हैं तो थोड़ा बहुत बचा खुचा छोटी कंपनियों को मिल पाता है, वह भी सभी को नहीं! जाहिर तौर पर कई बातें हैं, जिन पर चर्चा होनी चाहिए तो सुधार की भी बड़ी गुंजाइश दिखती है.
स्टार्टअप इंडिया अभियान (Startup India): इस क्रम में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्टार्ट-अप मूवमेंट शुरू किया गया, जिसका मक़सद उद्यमशीलता को बढ़ावा देना बताया गया. जाहिर तौर पर शुरू में 'स्टार्ट-अप' शब्द कहीं न कहीं लघु उद्योग का प्रारूप ही दिखता है, किन्तु यह कहना अत्यन्त कठिन है कि इस अभियान का किस हद तक परिणाम सामने आ पाएगा! इस आशंका के पीछे तमाम पेचीदगियां हैं, जिन पर गौर किया जाना आवश्यक है. अगर स्टार्ट-अप की बात करते हैं तो विशेषज्ञों के अनुसार, "यह एक मज़बूत इकोसिस्टम है, जिससे देश में नए उद्यमियों के विकास में मदद मिलने की बात शामिल है. कसौटी पर आंकड़ों की बात करें तो, देश में स्टार्ट-अप की संख्या में इज़ाफ़ा अवश्य हो रहा है, किन्तु उनका स्थायित्व किस हद तक है यह कहना अत्यन्त कठिन है. यह सच है कि पिछले वित्त वर्ष में देश में 500 नए कारोबार शुरू हुए थे जबकि मौजूदा वित्त वर्ष में यह आंकड़ा लगभग 1200 तक पहुंच चुका है. स्पष्ट है कि स्टार्ट-अप बिज़नेस में तीन साल तक टैक्स में छूट, अटल इनोवेशन मिशन, इनक्यूबेशन सुविधाओं और ट्रेनिंग से नए उद्यमियों को मदद मिल रही है. सरकार का जो लक्ष्य सामने है, उसके अनुसार काफ़ी लोगों को रोज़गार मिलने की बात कही जा रही है, जिससे भारत में एक नई क्रांति का आग़ाज़ हो सकता है. इस क्रम में विशेषज्ञ बताते हैं कि देश में "उद्यमों के बढ़ने के साथ-साथ सबसे बड़ी चुनौती होगी युवाओं को प्रेरित करने की. यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है और इसी पर निर्भर करेगा कि हमारी अर्थव्यवस्था कैसे आगे बढ़ेगी." प्रधानमंत्री ने स्टार्ट-अप के इच्छुक लोगों के लिए 10 हज़ार करोड़ रुपए का एक कोष तैयार करने की घोषणा की है और कहा है कि गुणवत्ता से समझौता किए बग़ैर नए विचारों को अवसर दिया जाएगा. इस पूरे कार्यक्रम को लेकर भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी कहते हैं कि "छोटे व्यवसायों में एक बड़ी समस्या होती है नियमों का पालन करने की यानि कि कॉम्प्लायंस की. लेकिन आज की कार्य योजना में सेल्फ़-सर्टिफ़िकेशन का ऐलान इस बोझ को काफ़ी कम कर देगा ताकि उद्यमी व्यवसाय पर ध्यान दें न कि नियमों पर." जाहिर तौर पर सरकार छोटे उद्योगों के लिए काफी सक्रियता से जुटी हुई है, किन्तु लायसेंस राज का कुछ ऐसा चक्कर है, जिसमें छोटे व्यवसायी उलझ कर रह जाते हैं और उन्हें व्यवसाय करने के लिए तमाम संस्थानों और उनके मठाधीशों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही तरह से चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है. मुश्किल तो यह है कि यह बड़ा नेक्सस तोड़ने के लिए काफी कोशिशें हो चुकी हैं, किन्तु कोई भी कोशिश परवान नहीं चढ़ पाती है.
लघु उद्योगों की ज़मीनी हालत (Reports about small scale industries): यदि क्रमवार उद्योगों को देखते हैं तो, घरेलू व निर्यात दोनों ही कारोबार में अहम भूमिका निभाने वाला एमएसएमई क्षेत्र (छोटे और मझोले उद्योग) इन दिनों कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा है. इन मसलों पर केंद्रीय एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्र साफगोई से कहते हैं कि लघु व मझोले उद्यमियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती कर्ज की है, क्योंकि उन्हें गिरवी मुक्त कर्ज नहीं मिल पाता है. यदि जैसे-तैसे लोन मिल भी गया तो उसके बाद बात भुगतान की आती है और यह कहीं ज्यादा बड़ी दिक्कत पैदा करता है. छोटे उद्यमियों को लोन चुकता करने के लिए काफी कम समय मिलता है. समय की कमी रहती है, इसलिए उनके कर्ज को गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) में बदलने की अधिक आशंका रहती है. छोटे उद्योगों के लिए एनपीए से कर्ज का बोझ हो जाता है और वह बढ़ता रहता है और जल्द ही ऐसी इकाइयां बीमार घोषित हो जाती हैं. आज जब विजय माल्या सहित तमाम बड़ी मछलियां बैंकों का बड़ा माल हज़म करके विदेश भाग जाती हैं और उनके आगे बैंक से लेकर सरकार तक बेबश हो जाती है, मगर छोटे उद्यमियों के मामलों में बैंक अधिकारी कार्रवाई करने में जरा भी देती नहीं करते, बल्कि कई बार तो यह कार्रवाई अन्यायपूर्ण हो जाती है. स्टार्ट अप को बढ़ावा देने से पहले इस बड़ी चुनौती पर ध्यान दिया ही जाना चाहिए.
मार्केटिंग की समस्या का समाधान जरूरी (Marketing policy): छोटे उद्यमियों की दूसरी समस्याओं की बात करें तो उनके लिए मार्केटिंग की समस्या प्रमुख समस्याओं में से एक है. मार्केटिंग के लिए ऐसे उद्यमियों के पास फंड की बड़ी कमी रहती है और इसलिए मार्केटिंग की समस्या लगातार बनी ही रहती है. सरकारी स्तर पर कुछेक प्रयास जरूर होते हैं, किन्तु वह नाकाफी ही होते हैं, क्योंकि वह घूम फिरकर सरकारी अफसरशाही की भेंट चढ़ जाते हैं. कहने को तो मंत्रालयी स्तर पर प्रोक्यूरमेंट पॉलिसी के आधार पर सीपीएसयू (केंद्रीय सार्वजनिक कंपनी) के लिए छोटे व मझोले उद्योग से खरीदारी अनिवार्य किया गया है तो क्रेता-विक्रेता बैठक, वेंडर विकास कार्यक्रम व कई अन्य प्रकार के कार्यक्रम मंत्रालय की सहायता से आयोजित किए जा रहे हैं. पर बावजूद इसके मार्केटिंग की समस्या से लघु उद्योग बड़े स्तर पर जूझ रहा है, इस बात में कोई शंका नहीं है.
प्रदूषण की समस्या का सामूहिक निदान हो (Issue of Pollution): एक अलग समस्या से लघु उद्योगों के कई व्यवसायी पीड़ित रहे हैं जो है प्रदूषण की चुनौती! इस क्रम में, कई पेपर मिलों को पर्यावरण बोर्ड की तरफ से प्लांट बंद करने का नोटिस मिल चुका है. इसका कारण भी बड़ा स्पष्ट है, क्योंकि पोल्यूशन ट्रीटमेंट प्लांट लगाने में खर्च काफी होता है जो छोटी इकाइयों के वश में नहीं है और अभी कॉमन ट्रीटमेंट प्लांट की स्थिति नहीं बन पाई है. जाहिर है, जो काम सरकारी एजेंसियों को करना चाहिए, उसका ठीकरा कहीं न कहीं लघु उद्योगों के सर फोड़ा जा रहा है. नयी टेक्नोलॉजी के साथ अगर सामूहिक रूप से मिलकर ट्रीटमेंट प्लांट लगाई जाएँ, जिसमें पर्यावरण विभाग का बड़ा सहयोग हो तो बात निश्चित रूप से आगे बढ़ सकती है.
टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन (Technology Upgrade): इन समस्याओं के अतिरिक्त जब हम ग्राउंड पर नज़र दौड़ाते हैं तो सबसे बड़ी समस्या आती है 'टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन' की. यदि चीन और भारतीय बाज़ारों के क्रमिक विकास का अध्ययन करें तो हम यह बात मानने को मजबूर हो जायेंगे कि उनकी तकनीक न केवल हमसे आगे रही है, बल्कि वह समयानुसार बदलती भी रही है. एक लाइव उदाहरण जो मैंने महसूस किया वह एशिया के बड़े कंप्यूटर मार्किट में से एक 'नेहरू प्लेस' में जाकर हुआ. वहां पुराने कंप्यूटर की सेल्स पर अगर आप नज़र दौड़ाएं तो देखेंगे कि अमेरिका और अन्य विकसित देशों की बड़ी कंपनियों से निकले हज़ारों कंप्यूटर, जो ठीक हालत में हैं, उन्हें लोग खरीद रहे हैं. सवाल उठता ही है कि आखिर जब कम्प्यूटर ठीक हाल में हैं तो उसे वह तमाम कंपनियां क्यों बदल देती हैं. इसका सीधा सा जवाब है टेक्नोलॉजी अपग्रेड करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि इसका सीधा प्रभाव आपकी कार्यक्षमता पर पड़ता है, जो अंततः आपके उत्पाद की कीमत बढ़ाती है तो उसकी गुणवत्ता भी कहीं न कहीं कम करती है. जाहिर है, इस क्षेत्र में भी सरकार को और व्यक्तिगत रूप से उद्यमियों को भी कार्य करने की आवश्यकता है.
सूचना तकनीक का और प्रसार जरूरी (Information Technology and Internet awareness): नयी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद कई स्तरों पर जनता और लोगों से जुड़ने का प्रयत्न किया गया है, इस बात में कोई दो राय नहीं! मायजीओवी.इन अनेक ऐसे नए पोर्टल्स का निर्माण भी किया गया, जिनसे जनता और सरकार के बीच दूरी घट सके. इसी प्रकार उद्यमियों के लिए भी सूचना तकनीक के बेहतर इस्तेमाल पर जोर दिया गया. हालाँकि, इन सबसे बढ़कर नए और पुराने दोनों तरह के उद्यमियों को कम्प्यूटर पर तमाम तकनीकों को खोजने और उनको धार देने की आदत विकसित करनी होगी. तमाम टूल जिससे आप मार्केटिंग कर सकते हैं, अपना अकाउंट्स मैनेज कर सकते हैं, अपने एम्प्लॉयीज और सहयोगियों के कॉन्टेक्ट्स में रह सकते हैं, वह आपको शुरुआत में मुफ्त उपलब्ध होगा. एक उदाहरण आपको दें तो कई व्यवसायी शुरू में ही कई सॉफ्टवेयर इत्यादि खरीद कर बैठ जाते हैं जिसमें अच्छा खासा पैसा खर्च हो जाता है, जबकि कई बार उनको बाद में पता चलता है कि जिस पर उन्होंने पैसा लगाया है, वह तो उनके काम की चीज ही नहीं है! इसलिए अगर आप गूगल पर सम्बंधित प्रोडक्ट के रिव्यू देख लें तो बहुत मुमकिन है कि आपको वह चीज मुफ्त ही मिल जाये. मसलन, दूसरों को छोड़ अगर गूगल की ही बात करें तो आपको ऑनलाइन ड्राइव से लेकर फॉर्म्स, शीट, स्लाइड बनने की सुविधा यह मुफ्त देता है. बस जरूरत है इसे समझने की और इसके लिए न केवल आपको फ्री ट्यूटोरियल मिल जायेंगे बल्कि यूट्यूब पर इसके इस्तेमाल के लिए वीडियो भी देख सकते हैं. इसी तरह सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके आप शुरुआत में अपने प्रत्येक तरह के प्रोडक्ट की न केवल मार्केटिंग कर सकते हैं, बल्कि संबंधित ग्राहकों के लिए एक ग्रुप या पेज पर सपोर्ट भी दे सकते हैं. ई-कॉमर्स के ज़माने में तो आप अपने तमाम प्रोडक्ट्स को ऑनलाइन सेल कर सकते हैं, वह भी बिना किसी शुरूआती इन्वेस्टमेंट के. फ्लिपकार्ट, अमेजन और स्नैपडील समेत तमाम कंपनियां आपको फ्री प्लेटफॉर्म और ट्रेनिंग दोनों देती हैं. इसी तरह कई ऐसे पोर्टल और ब्लॉग आपको मिलेंगे, जहाँ अपनी जरूरत से सम्बंधित लोगों को आप ढूंढ सकते हैं. बिजनेस करते समय सावधानियां, औपचारिकताओं पर आपको अनेक लेख पढ़ने को मिल सकते हैं, जिसको पहले पढ़ने और समझने से आपके सफल होने की उम्मीद कहीं ज्यादा बढ़ जाएगी.
जाहिर है, बदलते दौर में व्यापार बढ़ाने के लिए सरकारें भी जी-जान से लगी हैं तो सूचना प्रौद्योगिकी का अहम रोल सामने है. बस आपको अपने उद्योग की जरूरतों को समझते हुए आगे बढ़ते जाना है, बढ़ते ही जाना है... !!
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