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प्रचार से आगे बढे 'ऑड इवन' प्रयोग - Odd Even formulae in delhi again, hindi article, mithilesh

सोशल मीडिया में चल रहे जोक्स में अरविन्द केजरीवाल का खूब ज़िक्र होता है. महाराष्ट्र के लातूर में पानी की जानलेवा समस्या से सभी हलकान हैं, किन्तु दिल्ली के सीएम ने वहां पानी भेजने की घोषणा कर डाली. अब जाहिर है कि दिल्ली के कई इलाके खुद ही पानी की समस्या से ग्रसित हैं, तो 'सर जी' की इस राजनीतिक पेशकश पर जोक बनने ही थे! एक जोक में किसी ने कहा कि 'केजरी सर', आप महाराष्ट्र पानी कैसे भेजेंगे. केजरी सर ने जवाब दिया, 'केंद्र से ट्रेन लूँगा, हरियाणा से पानी' और उसे लातूर भेज दूंगा. तो फिर... 'आप' क्या करेंगे? केजरी सर का जवाब बड़ा दिलचस्प था कि 'मैं समस्त ब्रह्माण्ड के अखबारों में 'फूल पेज एड' दूंगा! साफ़ जाहिर है कि अरविन्द केजरीवाल कई बार अति गम्भीर मुद्दों पर इतना ज्यादा शोर-शराबा और प्रचार-प्रसार करने लगते हैं कि यह अतिवादिता 'मजाक' में बदल जाती है.  हालाँकि, दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है, इस बात में दो राय नहीं. इसको लेकर, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस राज्य को 'गैस का चैंबर' तक कह डाला था. इतनी खतरनाक स्थिति के मद्देनजर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक-एक दिन छोड़कर सम और विषम संख्या वाहन चलाने का फैसला लिया जिसकी शुरुआत 1 जनवरी 2016 को की गयी! यह योजना केवल 15 दिनों के ट्रायल पर थी. यह योजना काफी हद तक सफल रही और न केवल सफल रही, बल्कि इसने अरविन्द केजरीवाल को विश्व के टॉप-50 नेताओं में जगह भी दिलाई. 
 
फोर्ब्स पत्रिका ने अपने हालिया अंक में इसकी घोषणा की थी, जिसे लेकर केजरीवाल और उनकी टीम का उत्साहित होना स्वाभाविक ही है. इसी क्रम में, दिल्ली सरकार ने एक सर्वे कराया था और इस 'ऑड-ईवन सर्वे' में सम्भवतः चार लाख लोगों ने भाग लिया जिसमें 81 फीसद लोगों का कहना था कि इसे दोबारा लागू किया जाना चाहिए! जाहिर तौर पर दिल्ली की जनता भी प्रदूषण और ट्रैफिक की मार से परेशान है, पर क्या वास्तव में सिर्फ 'यही एक सल्यूशन है, जिसे लम्बे समय तक लागू करते रहने से प्रदूषण की समस्या हल हो जाएगी'? इस बाबत गम्भीरता से कार्य किया जाना चाहिए था, क्योंकि ऐसे 'तात्कालिक फैसले' लम्बे समय के लिए कतई कारगर नहीं होते हैं. ऐसा भी नहीं है कि सरकार के इस कदम का कोई अर्थ ही नहीं था या नहीं है. इसका महत्त्व यह जरूर है कि लोग 'प्रदूषण की समस्या' के प्रति जागरूक हो रहे थे और सरकार को बजाय इस फॉर्मूले को इतनी जल्दी लागू करने के प्रदूषण दूर करने के स्थाई रास्ते के बारे में प्लान करना चाहिए था. पर यदि ऐसा होता तो 'केजरी सर' को प्रचार करने का मौका भला कहाँ मिलता? उन्हें तो तत्काल रिजल्ट चाहिए और चाहिए 'पूरे पृष्ठ का विज्ञापन', टोपी लगाकर! इसके दीर्घकालिक हल में 'साइक्लिंग को बढ़ावा देना एवं विभिन्न स्थानों पर इसके लिए डेडिकेटेड रुट का निर्माण करना, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ज्यादा सुविधाजनक करने की दिशा में कदम बढ़ाना, मेट्रो स्टेशन्स को बसों और मिनी बसों के माध्यम से पूरी दिल्ली से जोड़ना, पुराने वाहनों और प्रदूषण नियमों का उल्लंघन करने वालों से सख्ती से निपटा जाना, एक या दो गाड़ियों से ज्यादा की बिक्री पर नियंत्रण करने जैसे उपाय पर सोचा जा सकता था, किन्तु सरकार इसे अब दोबारा लागू करने का आसान और प्रचारयुक्त रास्ता अपना रही है. जाहिर है, इसके नकारात्मक पक्ष की तरफ न तो विश्व के बड़े नेता 'केजरीवाल' का ध्यान गया है और न ही उनकी टीम का! 

पहली बार जब ऑड-इवन फार्मूला शुरू हुआ तो कई महाशयों ने दूसरी कार का जुगाड़ शुरू कर दिया था और इस बार यह लागू होने के बाद लोग पुरानी, नयी नंबर प्लेट वाले वाहनों का जुगाड़ शुरू कर देंगे. अब यह समझना मुश्किल नहीं है कि दिल्ली में वाहनों की संख्या में और ज्यादा बढ़ोत्तरी हो सकती है. आंकड़े बताते हैं कि, पहले ही दिल्ली में बड़ी संख्या में वाहनों की बिक्री 'रोजाना' होती है और शायद संसार में सर्वाधिक वाहनों का संचालन भी इसी शहर में होता है. यहां केवल स्थानीय वाहन ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों  से आने वाले वाहनों का भी भारी संख्या में संचालन होता है, जिस पर नियंत्रण करने की गुंजाइश खोजी ही जानी चाहिए! दिल्ली सरकार का कहना है कि ऑड-ईवन के पहले फेज में प्रदुषण का स्तर 50 प्रतिशत तक काम हुआ था, हालांकि दिल्ली की हवा की क्वॉलिटी पर कितना प्रभाव पड़ा इस विषय पर तमाम विवाद और विरोधाभास हैं. तमाम विद्वानों की रिपोर्ट अलग-अलग बातें कहती हैं. कोई रिपोर्ट कहती है कि जनवरी का महीना होने से हवा की तेज़ी थी जिसने उस स्कीम के दौरान प्रदूषित हवा को धकेल दिया, तो किसी रिपोर्ट ने यह कहा कि प्रदूषण में धुंआधार कमी आई! वहीं कुछ रिपोर्ट में पंद्रह फ़ीसदी बढ़ोत्तरी की ही बात कह डाली गई. अब सच्चाई जो भी हो, लेकिन एक चीज जो आम लोगों ने महसूस किया वो ये थी कि सड़कों पर भीड़ कम दिखी और भारी ट्रैफिक से थोड़ी राहत मिली. इसके अतिरिक्त, इस योजना का इससे भी बड़ा फायदा था कि 'प्रदूषण' जैसा गम्भीर विषय, जिसे लोग हलके में लेने लगे थे, उस पर चर्चा शुरू हो गयी, लोग थोड़े-बहुत ही सही सचेत होने लगे. उनकी इस जागरूकता को दिशा दिए जाने की आवश्यकता थी, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया. बजाय इसके, मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने इस योजना को रेडियो तथा पोस्टरों के माध्यम से खूब सफल बताया और धुआंधार प्रचार किया! ऐसा नहीं है कि यह योजना गलत है, लेकिन एक बार ट्रायल होने के बाद लोगों को कुछ खास की उम्मीद थी और पढ़े-लिखे मुख़्यमंत्री को इस बाबत विशेषज्ञों से गम्भीर चर्चा करके योजना तैयार करनी चाहिए थी. इस योजना के कई अन्य नकारात्मक पहलु भी हैं, जिसमें ट्रैफिक पुलिस वालों को अवैध वसूली की छूट मिल जाएगी और ऑटो-टैक्सी वालों को मनमाना किराया वसूलने की आजादी!

जाहिर है, जब हम स्थाई इलाज नहीं ढूंढते हैं तो 'भ्रष्टाचार' पनपने लगता है और यह 'प्रदूषण' से कम खतरनाक तो नहीं! यह ठीक है कि दिल्ली में प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण किया है लेकिन हमें समस्या को तार्किक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक ढंग से देखने की जरूरत है. अभी तो यह स्पष्ट नहीं है कि राजधानी में प्रदूषण के स्त्रोत क्या हैं, प्रदूषण फ़ैलाने वाली छोटी बड़ी उत्पादन इकाइयां, आस-पास के राज्यों मे फसलों को जलाया जाना, पावरहाउस, पुराने और जर्जर वाहन या धड़ल्ले से हो रहे निर्माण कार्य! इन में से  कौन दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान दे रहे हैं, इस बाबत शोध करना चाहिए था और यह 'ग्राउंड वर्क' तात्कालिक लोकप्रियता के बजाय स्थायी होता. तब शायद अरविन्द केजरीवाल, प्रदूषण की समस्या के स्थायी निदान के लिए सर्वकालिक महान नेताओं में शामिल किये जाते, किन्तु उन्होंने किसी पत्रिका में फोटो छप जाने को ही 'छाती फुलाने' का कार्य मान लिया. प्रदूषण की समस्या बड़ी है तो इसका इलाज भी समुचित होना चाहिए, ताकि समस्या जड़ से खत्म हो न कि कुछ दिन के लिए टल जाये! वैसे भी, इस योजना में महिलाओं को छूट, वीआईपी को छूट, बच्चों को स्कूल यूनिफार्म में छोड़ने की छूट है. ऐसे में लोगों के बच निकलने के कई रास्ते हैं और लोग उसका इस्तेमाल भी करेंगे ही! चलो ठीक है एक तरफ से बच्चा बैठा है, लेकिन बच्चे को स्कूल छोड़ने के बाद गाड़ियों की पहचान कैसे होगी? दोपहिया वाहनों की बड़ी संख्या भी चिंताजनक विषय हैं, जिस पर ध्यान देना पड़ेगा, अन्यथा आप खानापूर्ति कीजिये, फोटो खिंचवा लीजिए, लातूर में पानी भेजने का हवा-हवाई जुमला फेंक दीजिये और चापलूसों से घिरे होकर 'परिवर्तन' कर लेने का तमगा 'छाती पर चिपका' लीजिए!
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1 टिप्पणियाँ

  1. पिछली बार जो चालान का पैसा वसूला गया था, उसको लेके बड़े बड़े वादे हुए की ये पैसा जनता की सुविधा के मद में खर्च होगा. लेकिन उस पैसे का भी तक कोई हिसाब नहीं दिया गया . और फिर इस बार तो चालान 2000 का कटेगा

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