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ट्रेन नहीं, अब हवाई जहाज में...

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जी हाँ, अब आसमान ही बाकी रह गया है जहाँ मनुष्य अभी कम मात्रा में दिखते हैं अन्यथा ट्रेन और गाड़ियों के बोझ से तो पहले ही धरती कराह रही है. भारत जैसे देश में जहाँ आबादी सवा सौ करोड़ से ऊपर भाग चुकी है, वहां सिर्फ रेल और बसों के सहारे आवागमन की जरूरतों को पूरा करना 'दिवास्वप्न' ही है. चूँकि मध्यम वर्ग की तादात हमारे देश में बढ़ रही है, इसलिए अगर हवाई किराए सस्ते होते हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले कुछ सालों में ही 20% से ज्यादा भारतीय एयर-ट्रैफिक के सहारे अपनी जरूरतें पूरी करने को तत्पर हो जायेंगे, जिनकी संख्या अभी 1% भी नहीं होगी. हालाँकि, इसके बावजूद 80% भारतीय आबादी आने वाले 50 सालों तक ट्रेन और रोड ट्रैफिक पर भी निर्भर रहेगी. हाँ, नितिन गडकरी और वर्तमान केंद्र सरकार खूब जोर लगा रही है कि सामान ढोने का कार्य भी हमारे देश की नदियों में जल यातायात से हो. खैर, सभी क्षेत्रों में यह योजनाएं अभी योजनाएं ही हैं, लेकिन एयर ट्रैफिक को बहु-सुलभ बनाने की दिशा में अवश्य ही एक बड़ी पहल नरेंद्र मोदी सरकार ने कर दी है. लोगों को बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने वाली मोदी सरकर भले ही इस सपने को पूरा करने में थोड़ा समय ले, लेकिन देश की आम जनता को आसानी से हवाई सफर करने की सुविधा जरूर उपलब्ध करा सकने की राह पर है. जी हाँ, हवाई यात्रा को आम लोगों की पहुंच में लाने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाया है. लंबे इंतज़ार के बाद नई नागरिक उड्डयन नीति (New Aviation Policy) को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी है, जिसके तहत न सिर्फ एयरलाइन कंपनियों के लिए विदेशी उड़ान भरने के नियम सरल किए जाएंगे, बल्कि क्षेत्रीय हवाई संपर्क को बेहद मजबूत बनाने के साथ-साथ ज़्यादा लोगों को हवाई यात्रा के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा. 
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साफ़ है कि वर्तमान समय की कठिनाइयों को धरातल पर आंककर मोदी सरकार ने ठीक ही किया है और अगर उसकी योजनानुसार कार्य किया जाता है तो कोई कारण नहीं कि हमारे देश में रेल और बसों के कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर पर 'भारी बोझ' कुछ कम हो जाए! इस नीति के अंतर्गत छोटे शहरों के बीच एक घंटे का समय लेने वाली उड़ानों के लिए अधिकतम किराया सीमा 2,500 रुपये तय करने की बात कही गयी है, क्योंकि सरकार की योजना एक ऐसा ईकोसिस्टम तैयार करने की है, जिससे हवाई यात्रा को आर्थिक रूप से सुगम बनाकर हवाई यात्रियों की संख्या बढ़ाई जा सके. लोगों के आवागमन के बढ़ते बोझ को उठा पाना अकेले ट्रेनों (Indian Train system) के बस की बात नहीं रह गयी है और यह बात अब हर एक को बखूबी समझ लेनी चाहिए! ऐसे में अगर हवाई यात्रा को बढ़ावा दिया गया तो लोगों की परेशानी निश्चित तौर पर कम होगी. हालाँकि, इसमें कई व्यवहारिक कठिनाइयां भी हैंतो. अब जब किराया कम किया जा रहा है तो ऐसे में जाहिर है कि विमान कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ेगा, तो इसीलिए इसमें एयरलाइन कंपनियों के फायदे को भी ध्यान में रखने की बात है जिससे उन्हें देश के छोटे शहरों के बीच उड़ानें भरने के लिए प्रोत्साहंन मिल सके! इस मामले को कुछ यूं समझा जा सकता है कि किराये की अधिकतम सीमा तय होने की वजह से एयरलाइन कंपनियों को होने वाले नुकसान का 80 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार देगी. जाहिर है, घूम फिरकर पब्लिक पर ही इसका बोझ पड़ेगा इसलिए बेहद जरूरी है कि इस पूरे प्रयास का सरलीकरण किया जाए तो इसमें तेजी भी उतनी ही आवश्यक है. 
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हालाँकि, सरकार का प्रयास उचित ही है कि हवाई कंपनियों पर ज्यादा बोझ न पड़े, अन्यथा यह योजना शुरुआत में ही दम तोड़ देगी! इस पूरे प्रयास के लिए टिकटों पर सर्विस टैक्स घटाया जायेगा, तो एक्साइज ड्यूटी को भी कम किया जायेगा. इसी कड़ी में, राज्य सरकारें पुलिस और फायर सेवा एयरपोर्ट्स पर नि:शुल्क उपलब्ध करायेंगी, तो बिजली व पानी जैसी सुविधाएं भी कम दरों पर उपलब्ध कराने पर विचार किया जा रहा है. ऐसी तमाम सहूलियतें देने के बावजूद केंद्र सरकार को हवाई कंपनियों पर निगरानी सिस्टम दुरुस्त रखना होगा अन्यथा घाटा सरकार को ही झेलना पड़ेगा. इस कड़ी में, केंद्र सरकार ने ये उम्मीद जताई है कि घरेलू क्षेत्र में 2022 तक 30 करोड़ हवाई टिकट (Air Tickets in India) प्रतिवर्ष बिकने लगेंगे, और वर्ष 2027 तक यह संख्या 50 करोड़ पार हो जाएगी. हालाँकि, यह बेहद महत्वकांक्षी लक्ष्य है और अगर ऐसा होता है तो फिर निश्चित तौर पर हमारी चरमराई हुई यातायात व्यवस्था सुधार की ओर बढ़ चलेगी. बताते चलें कि अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में यही लक्ष्य वर्ष 2027 तक 20 करोड़ टिकटों का रख गया है. इस निति में यात्रियों का हित पीछे न छूट जाए, इसका ख्याल रखते हुए कुछ विशेष व्यवस्था भी की गयी है, जिसकी पुरजोर सराहना की जानी चाहिए जैसे, घरेलू हवाई टिकट कैंसिल कराने पर रिफंड पंद्रह दिन के अंदर और पूरा मिलेगा, जबकि अंतरराष्ट्रीय हवाई टिकट कैंसिल करवाने पर 30 दिन के अंदर. ऐसे ही, यदि कोई यात्री टिकट कैंसिल करवाता है, तो चार्ज के तौर पर उससे 200 रुपये से ज्यादा नहीं वसूला जा सकता है. ऐसे ही, उड़ान के वक्त से 24 घंटे के अंदर फ्लाइट अगर कैंसिल होती है, तो मुआवजे की राशि 10 हजार रुपये तक होगी, जो सम्बंधित कंपनी देगी. 
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यात्री सुविधाओं में बढ़ोत्तरी के लिए मोदी सरकार इसलिए भी बधाई की पात्र है क्योंकि 15 किलो लगेज की फ्री लिमिट के बाद के अगले पांच किलोग्राम पर अब मात्र 100 रुपये/किलो चार्ज लगेगा जो कि पहले 300 रुपये प्रति किग्रा था. हालाँकि, अगर आप 20 किग्रा से भी ज्यादा सामान ले जा रहे हैं तो इस पर कंपनियां अपना चार्ज तय करेंगी. गौरतलब है कि सितंबर 2016 से लागू होने वाले इस नियम में यात्रा का एक डेस्टिनेशन टाइप-2 या टाइप-3 शहर होना चाहिए. साफ़ तौर पर नयी नीति से उन हवाईअड्डों के विकास में मदद मिलेगी, जहां अभी कम लोग हवाई सफर करते हैं. बता दें कि हमारे देश में 482 हवाई हवाई अड्डे (Airports in India) हैं, लेकिन उनमें से केवल 84 हवाई अड्डे ही ऐसे हैं जो कार्य में लाए जाते हैं. स्पष्ट है कि इसीलिए ही सरकार की कोशिश है कि विभिन्न राज्यों में छोटी हवाई पट्टी को विकसित कर विमानन  कंपनियों के लिए ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को यात्रा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाये. इसी क्रम में, सरकार की योजना तत्काल 50 नये एयरपोर्ट को परिचालन के अनुरूप बनाना है. कुल मिलाकर इस योजना से लोगों को बहुत फायदा होने वाला है अगर इसे यथारूप में लागू किया जाता है तब! हम सब इस अनुभव से गुजरते ही हैं, जब अक्सर ट्रेन में टिकट ना मिलने से बहुत सारे काम अंटक जाते हैं या आदमी का समय बर्बाद होता है. लेकिन अब सबके पास दूसरे विकल्प के रूप में अगर हवाई यात्रा की सहूलियत होगी तो फिर परेशानियां जाहिर हैं कम होंगी ही! उम्मीद की जानी चाहिए कि नरेंद्र मोदी अगले कुछ सालों में इस नीति का कार्यान्वयन 'जीरो डिफेक्ट' के साथ करेंगे, जैसा वह अपने भाषाओं में कहते रहे हैं. इसकी उम्मीद आम-ओ-खास सबको ही है, इस बात में दो राय नहीं!

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली. 




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