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इस दुनिया में तमाम लोग आते हैं, मगर उनमें से कुछ ही लोग ऐसे होते हैं, जिनका नाम दुनिया से जाने के बाद भी याद किया जाता है. बेशक उन्हीं लोगों में शामिल हैं "मोहम्मद अली"! अली ने अपना नाम न केवल बॉक्सिंग की दुनिया में बल्कि साफगोई से सच बोलने वालों में भी हमेशा के लिए अमर कर लिया है. यदि इस महानतम योद्धा की जीवनी की बात करें तो, मोहम्मद अली का जन्म 17 जनवरी 1942 को केंटकी में हुआ था. इनके बेहतरीन खेल की वजह से इन्हें लोग "दि ग्रैटेस्ट" के नाम से पुकारते थे. कहते हैं कि जब उनकी साइकिल चोरी हो गई और उसकी रिपोर्ट लिखाने के लिए वह पास के पुलिस स्टेशन गए, तो वहां के थाना इंचार्ज ने उदास अली से कहा था कि बेटा, मायूस होने से अच्छा है कि तुम बदला लेना सीखो और अली उसी वक्त से बॉक्सिंग सीखने लगे. इसके बाद लगभग डेढ़ महीने की ट्रेनिंग के साथ एक मैच में अली रिंग में उतरे और अगले ही पल मोहम्मद अली ने पलक झपकते ही अपने विरोधी को धाराशायी कर दिया और मैच अपने नाम किया. उस समय अली की उम्र मात्र 12 साल थी. यह जीत कोई साधारण जीत नहीं थी, बल्कि इस जीत से उन्होंने पूरे अमेरिका में तहलका मचा दिया था और फिर उन्होंने बॉक्सिंग को ही उन्होंने अपना कैरियर बना लिया. इसके तीन साल बाद, वे राष्ट्रीय गोल्डेन ग्लब्ज टूर्नामेंट के साथ लाइट हेवीवेट क्लास में एमेचौर एथलेटिक यूनियन की राष्ट्रीय टाइटल जीतने में भी कामयाब रहे तो 1964 में वे सोनी लिसन को हराकर पहली बार हैवीवेट चैंपियन बने. लोग उन्हें उनके जीत के लिए “The Greatest” कहते थे.
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मोहम्मद अली की बॉक्सिंग की खासियत ये भी थी कि मुक़ाबले से पहले ही वह बता देते थे कि वे अपने विरोधी को किस राउंड में और किस तरह हराएंगे और कमोबेश मैच में ऐसा ही होता था. खेल में इस योद्धा का योगदान तो था ही, लेकिन समाज में फैली तत्कालीन कुरीतियों पर भी इनके पंच खूब चले. तब के समय में अमेरिका जैसा देश काले और गोर का खूब भेद करता था और अन्य अश्वेतों की तरह मोहम्मद अली को भी अमेरिका में नश्लीय भेदभाव और टिप्पणियों का सामना करना पड़ा था. बताते चलें कि मोहम्मद अली का असली नाम कैशियश मार्सेलस क्ले जूनियर था, लेकिन नश्लीय भेदभाव की वजह से वे 1964 में राष्ट्रीय मुस्लिम ग्रुप से जुड़ गए और धर्म परिवर्तन कर अपना नाम मुहम्मद अली रख लिया. अपने कैरियर में कई सफलताओं के बाद मोहम्म्द अली ने सन्यास ले लिया और मुक्केबाजी में सन्यास लेने के बाद अली समाज सेवा के कार्यो में जुट गये. उन्होंने अमेरिका में अश्वेत और गरीब लोगों की भलाई के लिए खूब कार्य किया और उनकी यह उपलब्धि कहीं ज्यादा बड़ी दिखती है, उनके बॉक्सिंग पंचों से भी ज्यादा!
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इसी कड़ी में जब 1984 में अली को पार्किसन रोग हो गया, तब एरिजोना के फोनिक्स में मुहम्मद अली ने पार्किसन सेण्टर बनाने के लिए चैरिटी के द्वारा धन जुटाने में जी जान से मदद की. उन्होंने विकलांगों के लिए आयोजित होने वाले ओलम्पिक और मेक ए विश फाउंडेशन की भी वित्तीय सहायता की. जाहिर है, तब के समय में कोई बड़ा दिलवाला ही ऐसा कर सकता था और मोहम्मद अली का दिल वाकई बड़ा था. इसके साथ-साथ विकासशील देशों में किये गये उनके कार्यों को देखते हुए सयुंक्त राष्ट्र संघ ने 1998 में उन्हें अपना शान्ति दूत बनाया था, तो सन 2005 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति "जार्ज डब्ल्यू बुश" ने अली को 'प्रेसिडेंशियल मैडल ऑफ़ फ्रीडम' प्रदान किया. ठीक उसी साल अली ने अपने गृह नगर लौइस्विले में मुहम्मद अली सेण्टर का उद्घाटन किया. चमत्कारिक प्रतिभा के धनी मोहम्मद अली कहा करते थे कि "मैं साधारण आदमी हूँ और अपने भीतर प्रतिभा का उपयोग करने के लिए कठोर मेहनत करता रहा हूँ, मुझे खुद पर और दुसरो की अच्छाईयों पर भरोसा रहा है". इस महान योद्धा ने आखिरकार बीते 3 जून 2016 को आखिरी बार साँस ली और अपने पीछे छोड़ गए संघर्ष की एक लम्बी दास्ताँ! जाहिर है, अगर कोई व्यक्ति संघर्षों के कारण ज़िन्दगी से परेशान हो जाए तो उसे मोहम्मद अली की दास्तान जरूर पढ़नी चाहिए और बार-बार पढ़नी चाहिए, क्योंकि इस दास्ताँ से अवश्य ही 'हैवीवेट' राह निकलेगी, जो आपके लगातार संघर्षों से आपको चैम्पियन बनाएगी!
- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.
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