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'वेबसाइट' न चलने की वजह से आत्महत्या ... !!! ??? Website, Blog, Portal Business, Failure, Suicide, Reason, Solution, Hindi Article, Mithilesh



इस खबर को देख कर तो एकबारगी मैं भी चौंक गया था! पर इसमें चौंकने वाली कोई बात है नहीं, क्योंकि आज जिस तरह से चारों ओर भागमभाग मची हुई है, गलाकाट-प्रतियोगिता (Competition in Internet Business) बढ़ रही है, पुराने प्रतिष्ठान ढह रहे हैं तो नए की रचना से लोग अंजान हैं, तो ऐसी स्थिति में 'किंकर्तव्यविमूढ़ता' की स्थिति स्वाभाविक सी ही लगती है. खासकर मीडिया का दौर तो इतनी तेजी से बदला है कि एक झटके में 80% से ज्यादा पाठक इंटरनेट-माध्यमों की ओर चला गया है. अब बेशक दैनिक जागरण या कोई अखबार छपता हो, उसकी सर्कुलेशन भी हो, किन्तु सच यही है कि उसमें जो भी ख़बरें, लेख होते हैं, वह उसी की वेबसाइट के आगे 'बासी' हो चुके होते हैं. अपने स्मार्टफोन (Smartphone revolution) की सहायता से लोग उस खबर, लेख को पढ़ चुके होते हैं. जाहिर है, ऐसी स्थिति में पत्रकारों, लेखकों और मीडिया समूहों का रूख भी इंटरनेट के माध्यमों (वेबसाइट, ब्लॉग, एप्प - Website, Blog, Portal Business) की तरफ हुआ है. आप इस खबर का आधार देखिये, फिर नीचे की पंक्तियों में इस 'दुःखद घटना' के अन्य पहलुओं की ओर चलने की कोशिश करेंगे कि आखिर, कहाँ कमी रह जाती है और उसे कैसे सुधारा जा सकता (How to improve your website business) है. भड़ास मीडिया पर इस खबर की डिटेल देखी, जिसने वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता की फेसबुक वॉल से यह पोस्ट किया था, जिसके अनुसार- 

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आज सुबह इस खबर को पढ़कर जो धक्का लगा, क़ाबिले बयान नहीं है। मैं Saumit Sinh को जानता था। शायद हम फ़ेसबुक पर ही मिले थे। वह लखनऊ का रहने वाला था। नौकरी मुंबई में कर रहा था। मिडडे, डीएनए जैसे कई अख़बारों में काम किया। फिर एक वेबसाइट शुरू की Mumbaiwalla. बड़ा अचरज हुआ। तीस साल की उम्र में किसी मीडिया संस्थान की नियमित आय वाली नौकरी छोड़कर अनिश्चित आय और भविष्य वाला अपना काम शुरू करना पत्रकारों के लिए किसी बड़े जोखिम से कम नहीं होता। लेकिन उसने यह जोखिम उठाया। कुछ अच्छी ख़बरें ब्रेक कीं। उसकी एक खबर उसकी वेब साइट से साभार लेकर मैंने भी दैनिक भास्कर की संडे जैकेट पर छापी थी। वही हुआ जिसकी आशंका थी। वेबसाइट चली नहीं। कई मुकदमे हुए। सौमित ने नौकरी खोजनी शुरू की। दिल्ली शिफ़्ट हो गया। यहीं हमारी पहली मुलाकात हुई। लेकिन रेग्यूलर काम से ब्रेक सीवी में धब्बा माना जाता है। अनुभव और प्रतिभा से ज्यादा कद्र सीवी में लिखे शब्दों की होती है। अख़बार में छपा है - वह दो साल से बेराजगार था। वह डिप्रेशन का शिकार था। दवाइयाँ ले रहा था। सौमित तीन-चार महीने पहले मुझे प्रेस क्लब में मिला था। अजीब सी बातें कर रहा था। सभी के प्रति अजीब सा ज़हर भरा था उसके मन में। मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन ऐसा क़दम उठाएगा, कभी कल्पना भी न थी। इस प्रकरण से एक बात समझ आती है - यह हाल उनका है जो 'सिस्टम' से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। सरवाइवल के लिए अख़बार या टीवी चैनल का मुँह ताकते हैं। अगर सौमित ने भी अपने संबंधों को इस्तेमाल कर कॉरपोरेट्स/ बिज़नेस घरानों के काम कराने शुरू कर किए होते तो वह दौलत से खेल रहा होता। सत्ता के गलियारों में सैकड़ों उसे सलाम ठोक रहे होते। कहीं कॉरपोरेट कम्यूनिकेशन का हेड होता। काश.... काश...हम इस सिस्टम में बदलाव ला सकते। (साभार: भड़ास चैनल /Sharad Gupta)
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इस पोस्ट को पढ़कर कई लोगों के मन में सैकड़ों विचार आएंगे, पर यह आवश्यक है कि मानसिकता के लेवल पर और तकनीक के धरातल पर हम इस 'जनरल' होती घटनाओं का विश्लेषण (Analysis about website success and failure) करें. नीचे के कुछ हेडिंग्स पर ध्यान दें और अपनी प्रतिक्रिया भी अवश्य दें-

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असुरक्षा (Insecurity in entrepreneurship): उपरोक्त फेसबुक पोस्ट से ज़रा हटकर अगर हम व्यापक दृष्टिकोण से सोचते हैं तो यह बात साफ़ समझ आती है कि हर एक क्षेत्र में 'असुरक्षा' का भाव गहरे तक घुस चुका है. पोस्ट में वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता जी ने 'कॉर्पोरेट और कम्युनिकेशन हेड' (Corporate culture) जैसी शब्दावलियों का महिमा-मंडन किया है, किन्तु ऐसे कई उदाहरण हैं जब कारपोरेट में बैठे लोग भी 'आत्महत्या' करते हैं, तो नैतिकता को कुचलना उनके लिए बेहद आम बात बन चुकी है. इन्द्राणी मुखर्जी, शीना बोरा इत्यादि का हालिया उदाहरण हमारे सामने ही है कि कॉर्पोरेट की अंदरूनी हालत क्या है और आर्थिक सुरक्षा के लिए वह लोग क्या-क्या नहीं करते हैं (Corporate sector and corruption). खैर, इस बात पर लम्बे लेक्चर की बजाय यह बात हमें साफ़ समझ लेनी चाहिए कि असुरक्षा से हमें उबारने का कार्य खुद हम और हमारा परिवार (वास्तव में संयुक्त परिवार) ही कर सकता है. यह बात युगों-युगों से प्रमाणित है और आज भी अक्षरशः सत्य है. बेहद अफ़सोस की बात है कि मुझे भारतीय लोगों के लिए यह बात लिखनी पड़ रही है कि अपने माँ-बाप, भाई-बहन यहाँ तक कि अपने बीवी-बच्चों तक से लोगों का रिश्ता सहज नहीं रह पा रहा है. यह बात लिखते हुए मैं यहाँ क्लियर कर दूँ कि वर्तमान ज़मीनी हालात से आपकी तरह मैं भी अवगत हूँ कि आज रिश्ते-नाते सब अर्थ-केंद्रित (money minded people) हो चुके हैं और किसी से सूखे मुँह व्यवहार का कोई मतलब नहीं है. पर इसी बात को कुछ यूं समझें कि हम अपने कपड़ों पर, मल्टीप्लेक्स में, बजट से बाहर जाकर घूमने-फिरने में, दारू-सिगरेट पर, दोस्तों के साथ पार्टी करने में हज़ारों खर्च कर डालते हैं, जो अगर आप शांत-बुद्धि से सोचेंगे तो यही पाएंगे कि यह सारे क्रिया-कलाप अंततः आपकी 'असुरक्षा' को ही जन्म देते हैं और उसी 'असुरक्षित मानसिकता' का पोषण भी करते हैं. तो मित्रों, अपनी सुविधा (कई बार ऐयाशी) पर खर्च को जरा कम करके अपनी माँ के लिए एक साड़ी ले जाइये, थोड़ा समय निकालकर उनको कहीं मथुरा-वृंदावन घुमा दीजिये, छोटे भाई के लिए घड़ी ले जाइये, छोटी बहन के लिए एक पायल ही ले जाइये और यकीन मानिये आपके अंदर से पांच साल के भीतर ही 'असुरक्षा' छू-मंतर होने लगेगी (Website, Blog, Portal Business). हाँ, पर आप उनसे उल्टा वापस पाने की उम्मीद न करें क्योंकि माँ-बाप तो पहले ही आपको सब दे चुके हैं और दूसरे इन रिश्तों पर आप इतनी बड़ी इन्वेस्टमेंट ही नहीं कर रहे हैं कि आप उसका ब्याज ढूंढें! इंटरनेट की इस दुनिया में और भी कई महापुरुषों के लेक्चर आपको 'परिवार की महत्ता और असुरक्षा' पर मिल जायेंगे. सार्थक जीवन के लिए यह मन्त्र याद रहे कि 'अपना पुरुषार्थ करते रहना है और अपनी कमाई का 5 फीसदी हिस्सा (आज की व्यवहारिकता के लिहाज से 6 फीसदी नहीं) परिवार से सम्बन्धों की मजबूती की खातिर निस्वार्थता से, किन्तु व्यवहारिक ढंग से सही जगह खर्च करना है.' हालांकि, आज का समाज उल्टी दिशा में ज्यादा भाग रहा है, किन्तु दूसरों की खातिर न सही तो अपनी खातिर आपको इन 'पारिवारिक मूल्यों' के पुनर्जीवन पर कार्य करना ही होगा.

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टेक्नोलॉजी (इंटरनेट, वेबसाइट, एप्प: Technology, Internet, Website, Mobile Apps): आज केवल पत्रकारिता, लेखन में ही नहीं बल्कि टूरिज्म, मेडिकल, स्कूलिंग हर क्षेत्र में इंटरनेट जड़ तक घुसने के लिए ज़ोर लगा रहा है. चूंकि, मैं खुद इस व्यवसाय से पिछले 8 सालों से (8 Year experience in Digital marketing) सीधा जुड़ा हुआ हूँ और रोज अनेक क्षेत्रों से मेरे पास इंक्वायरी आती है कि मिथिलेश जी, मैं प्राइवेट स्कूल टीचर हूँ और एक वेबसाइट बनवाना चाहता हूँ, जिससे आगे का काम चल सके, तो कोई टूरिज्म के क्षेत्र से फोन करता है तो कई बार स्टूडेंट्स इन चीजों के लिए बेहद उत्सुकता दिखलाते हैं. लेखन, पत्रकारिता इत्यादि क्षेत्रों से तो खैर मेरे पास कई लोग जानकारी लेते ही रहते हैं (Website for Journalists / Media in Present). ऐसे में मैं कह सकता हूँ कि इस क्षेत्र ने संभावनाओं के बड़े द्वार खोले हैं तो बेरोजगारी के दौर में रोजगार के असीमित अवसर भी उत्पन्न किये हैं. पर इसमें जो समस्या पेश आती है, वह हमारी मानसिकता और समझ को लेकर है. कई लोग इस बात की उम्मीद लगा बैठते हैं कि एक वेबसाइट बनाकर वह रातों-रात करोड़पति बन जायेंगे तो कई लेखक-पत्रकार मित्र यह सोच बैठते हैं कि वह इंटरनेट पर अपनी धांसू लेखनी से तहलका मचा देंगे. अरे...रे.. रे.. भाई, ज़रा ठहरिए! एक बात आप अपने दिमाग में खुलकर बैठा लें कि यह टेक्नोलॉजी ऊपर से जितनी आसान दिखती है, वाकई में उतनी है नहीं! ऐसा नहीं है कि आप इसमें सफल नहीं हो सकते हैं पर क्या आप प्रतिदिन 6 घंटे से ज्यादा (डेडिकेटेड एंड फोकस्ड - Website, Blog, Portal Business) इसे समझने में खर्च करना चाहेंगे? क्या आपके पास 2 से 5 साल का समय है इसमें संघर्ष करने के लिए? चूंकि, यह एक बिजनेस (News Portal Development) है तो क्या व्यापार करने के मूल-सिद्धांतों और उसकी अनिश्चितताओं की आधारभूत बातें आपको पता हैं? सम्बन्ध विकसित करने के लिए आपके पास पर्याप्त विनम्रता और समय है तो किसी छोटे बच्चे से भी सीखने को आप कितनी प्राथमिकता देते हैं? यह बात गाँठ बाँध लीजिए कि आप पत्रकारिता, लेखन, साहित्य या किसी भी अन्य फिल्ड के कितने भी बड़े स्टार क्यों न हों, किन्तु इस टेक्नोलॉजी में अभी बच्चे ही हैं. यकीन मानिये, एक 15 साल के लड़के के भीतर टेक्नोलॉजी से सम्बंधित ज्यादा बड़ी सोच है आज के ज़माने में और इंटरनेट, वेबसाइट, एप्प के मामले में आप उससे जूनियर ही हैं. 

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एक अपना अनुभव सुनाऊं आपसे, जब सेंट्रल दिल्ली के एक माध्यम श्रेणी के अख़बार-मालिक ने मुझे बुलाया और कहा कि वह अपनी वेबसाइट शुरू करना चाहते हैं और उसे सफल भी करना चाहते हैं. यह तकरीबन 2009 की बात है और तब मैं भी नया-नया था. अन्य वेबसाइट डिज़ाइनर (Dynamic Website designers) की मैंने भी फटाफट हाँ कही और कस्टम-पीएचपी (वेबसाइट बनाने की एक टेक्नोलॉजी) में उनकी वेबसाइट बनवा दी. हर महीने मेंटिनेंस भी शुरू हो गया, यहाँ-वहां से उठाकर न्यूज-व्यूज अपडेट होने लगे. व्यूज-काउंटर देखकर हम खुश भी होने लगे. दो साल बीतते-बीतते उन अख़बार मालिक के दिमाग में खुराफ़ात आनी शुरू हो गयी और आप यकीन नहीं करेंगे उन्होंने दसियों और वेबसाइट की प्लानिंग कर डाली. दिलचस्प बात यह सुनिए कि उन्हें लगा कि उनका काम और सस्ता हो सकता है तो उन्होंने मेरी कंपनी के मेरे 'खास सहयोगी' को तोड़ लिया. फिर क्या था, वीडियो-पोर्टल, जॉब-पोर्टल, मैरिज-पोर्टल जैसे दसियों वेबसाइट बना डाला उन्होंने और स्वाभाविक रूप से मुझे उनसे अलग होना ही था. तीन-चार साल बाद फिर उन्होंने मुझे फोन करके बुलाया. मुझे देखते ही वह थोड़ी पीड़ा और व्यंग्य-मिश्रित स्वर में बोले कि आओ मिथिलेश, मेरी वेबसाइट तो चली नहीं, तुमने मुझे फंसा दिया यार! मैंने कहा कि '*** शि' (मेरा सहयोगी, जिसे उन्होंने तोड़ लिया था) तो है न सर, कई वेबसाइट भी आपने बनवाई है, फिर... !! मेरा मंतव्य समझकर वह चुप रह गए. हालाँकि, इस असफलता के लिए वह खुद भी जिम्मेदार थे, किन्तु बाद में मैंने उस पूरे मॉडल को एनालाइज (factors of website success or failure) किया कि 'वह फेल क्यों हुआ'? इसमें सबसे बड़ी कमी नज़र आयी कि कस्टम-पीएचपी (Custom PHP Websites are not good for small companies portals) छोटी कंपनियों के पोर्टल के लिए सक्सेसफुल नहीं है, जितना ओपन-सोर्स सीएमएस हैं, जैसे वर्डप्रेस (Wordpress website customization), जुमला, द्रुपल इत्यादि. मेरा सहयोगी, उसी पुरानी टेक्नोलॉजी से चिपका हुआ था, जो 2009 में हमने अडॉप्ट किया था. इसके अतिरिक्त संक्षिप्त में, कंटेंट कॉपी-पेस्ट (plagiarism is worst way for website) करना (भारत में न्यूज पोर्टल शुरू करने वाले 90% नए लोग यही करते हैं), ऑन-पेज एसईओ का न होना, सोशल मीडिया का सही प्रयोग न होना भी प्रमुख कारण थे तो विषय पर फोकस न होना भी एक बड़ा कारण था. 
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अगर मैं अपनी बात करूँ तो अगले 7 साल में मैंने एक-एक गलतियों से सैकड़ों चीजें सीखीं, जिसमें ब्लैकहैट और वाइटहैट एसईओ, सर्वर-बैंडविड्थ, वायरल-कंटेंट की प्रवृति शामिल है. आप आश्चर्य करेंगे कि मेरा खुद का बनाया एक सीएमएस पोर्टल (Website, Blog, Portal Business) काफी सफल हो रहा था, लगभग 2012 तक कि टेक्नोलॉजी से जुड़े तीन बड़े फैक्टर्स ने उसमें उथल-पुथल पैदा कर दी. पहला यह कि शेयर्ड होस्टिंग मेरी वर्डप्रेस-वेबसाइट का लोड नहीं उठा पा रही थी और वीपीएस लेने का मतलब था, हर महीने लगभग 5 हज़ार या ज्यादे का खर्च, जबकि इससे  इतनी आमदनी ही नहीं थी. दूसरा ट्रैफिक का बड़ा सीन गूगल से फेसबुक और दूसरे सोशल मीडियम्स (Social Media Marketing is important) पर शिफ्ट हो रहे थे और इन सबसे बड़ा बदलाव यह था कि जो इंटरनेट पहले सिर्फ कंप्यूटर तक सीमित था, वह अब स्मार्टफोन के जरिये अपना दायरा व्यापक कर रहा था. आप यकीन करेंगे कि आज 2016 के मध्य में आपकी इंटरनेट वेबसाइट को 70% से ज्यादा पाठक मोबाइल / स्मार्टफोन से मिल रहे हैं, और यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. इसके बाद भी सुनिए कि स्मार्टफोन एप्प के जरिये इंटरनेट-कंटेंट और भी परसनलाइज्ड अनुभव की ओर बढ़ चुका है. मैंने इस 'टेक्नोलॉजी' टॉपिक की शुरुआत में ही कहा कि आप बेशक पत्रकारिता या दूसरे क्षेत्र में बड़े नाम हों, किन्तु टेक्नोलॉजी में आप 'फ्रेशर' ही हैं और अगर आप इसे स्लो-स्पीड से सीखते हैं, तब तक तो यह पुरानी पड़ जाती है और कोई नयी टेक्नोलॉजी मार्किट में आ जाती है. इसलिए बेहद आवश्यक है कि खुद को एक 'फ्रेशर' मानकर आप लगातार सीखें, तेज सीखें (fast learning process) और खुद को परखें, परखे हुए प्रोफेशनल्स की सहायता लें, जो खुद को रोज साबित करते रहते हैं! 

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फ्रेश, फोकस्ड एन्ड लॉन्ग-लास्टिंग रेगुलर कंटेंट(Fresh, Focused and long lasting regular content): यह एक सामान्य तथ्य है, जिसे मैंने अपने कई लेखों में रिपीट किया है कि इंटरनेट की दुनिया में 'कंटेंट इज किंग'. न... न...  एक्चुअली 'फ्रेश एंड ओरिजिनल कंटेंट इज किंग'! आप एक न्यूज-पोर्टल शुरू करें, जॉब-पोर्टल शुरू करें, कुकिंग टिप्स का पोर्टल शुरू करें, मगर प्लीज अपनी सफलता की खातिर 'कंटेंट, उसकी प्रेजेंटेशन ओरिजिनल रखें.' गूगल और उसकी एल्गोरिदम (Google search algorithm) बहुत स्मार्ट है और उसके सैकड़ों सुपर-कंप्यूटर आपकी चालाकी को तुरंत पकड़ लेते हैं. हाँ, कुछ मामलों में अगर आपकी वेबसाइट सोशल मीडिया (फेसबुक, ट्विटर इत्यादि) से आने वाले ट्रैफिक पर डिपेंड है तो थोड़ी-बहुत छूट जरूर है, किन्तु गूगल कॉपी-पेस्ट करने की बिलकुल भी छूट नहीं देता है. नए पोर्टल शुरू करने वाले लोग एक और गलती करते हैं कि वह फोकस्ड (Website, Blog, Portal Business) नहीं रहते हैं. मतलब अगर उन्होंने न्यूज-पोर्टल शुरू करना है तो देश, विदेश, राजनीति, आर्थिक, धार्मिक, खेल सभी सेक्शन को वह डाल देंगे. अरे भाई, आप नवभारत टाइम्स या भास्कर नहीं हो जो आपके पास असीमित संशाधन और विशेषज्ञता है. इसलिए आप न तो इन सेक्शन्स को अपडेट कर पाते हैं और न ही आपकी पहचान बन पाती है. अब ज़रा गौर कीजिये कि आप इनमें से किसी एक फिल्ड पर फोकस करते हैं, जैसे- 'खेल', तो खेल की दुनिया में धीरे-धीरे आपका पोर्टल पहचान बनाने लगेगा (Be focused on your website) . यकीन मानिये, सफलता का रास्ता बहुत कुछ 'फोकस' होने पर ही निर्भर करता है. भड़ास का इस लेख में मैंने रिफ्रेंस लिया है तो इसी की बात करते हैं, जो सिर्फ मीडिया-जगत की ख़बरें देता है और इसकी अलेक्सा-रैंक बेहद अच्छी है. और भी ऐसे कई सफल पोर्टल आपको दिख जायेंगे, जिनकी खासियत उनका 'फोकस' होना ही है. तीसरा पॉइंट मैंने 'लॉन्ग-लास्टिंग कंटेंट' (Long lasting content writing) पर ज़ोर देने की तरफ इशारा किया है. इंटरनेट पर आपकी कोई भी पोस्ट, सूचना पुरानी नहीं पड़ती है और ऐसे में अगर आप अपने पोर्टल का एरिया ऐसा चुनते हैं, जिसके कंटेंट की अहमियत आगे तक बने रहने वाली है तो आप फायदे में रहेंगे, वह भी रेगुलर तौर पर आपको अपडेट करते रहना होगा. मतलब 'ब्रेकिंग-न्यूज' की बजाय 'ठोस कंटेंट' पर ज़ोर दें. इसका कारण भी साफ़ है कि ब्रेकिंग-न्यूज की अहमियत कुछ ही घंटों की रहती है और फिर आगे सर्च-इंजिन्स पर उसकी खोजबीन नहीं होती है, जबकि एनालिसिस की महत्ता आगे तक बनी रहेगी. स्पष्ट कर दूँ कि 'ब्रेकिंग या ओनली न्यूज' जैसे फीचर का फायदा बड़े ग्रुप आसानी से उठा लेते हैं, किन्तु छोटी और नयी वेबसाइट के लिए ऐसे सेगमेंट 'बेकार' सदृश होते हैं. उदाहरणार्थ, केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ, यह एक ब्रेकिंग न्यूज है और अगर इसे आप अपने शुरूआती पोर्टल पर अपडेट करते हैं तो फिर भूल जाइये कि उस कंटेंट का कोई वजन है. वहीं आजतक या नवभारत जैसी वेबसाइटों के लिए इसका जरूर महत्त्व है. हाँ, अगर आप मंत्रिमंडल-विस्तार पर अपना नजरिया लिखते हैं, अंदर की डिटेल्ड खबर या इसके बाद सरकार के भीतर मची हलचल जैसी एनालिसिस पेश करते हैं तो फिर उसका ज्यादा महत्त्व होगा इंटरनेट पर. इससे भी ज्यादा महत्त्व तब होगा, जब आप अपनी एनालिसिस को अगले दो सालों में होने वाले चुनावों से जोड़ देते हैं. मतलब आपके आर्टिकल की ऐज (Age and range of articles) और उसका दायरा बढ़ जायेगा. 

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आमदनी / कमाई (How to earn on internet): सबसे मुख्य क्षेत्र, जो सबसे अंत में आता है. अगर आप ऊपर के सभी स्टेप्स (असुरक्षा, टेक्नोलॉजी, कंटेंट) से पार पा लेते हैं तो फिर 'आमदनी' में कोई ख़ास दिक्कत नहीं होनी चाहिए. इसके लिए मैंने अनेक लेख लिखे हैं तो इंटरनेट पर भी 'ऑनलाइन कमाई के तरीके' बताने वाले हज़ारों लेख, वीडियो मौजूद हैं. पर आप वाकई अपनी वेबसाइट/ पोर्टल के सहारे सफल होना चाहते हैं तो आप ऊपर के स्टेप्स को अपनाने के बाद (कम से कम 100 क्वालिटी पोस्ट और 1 लाख पेज व्यूज के बाद) इस चक्कर में पड़ें. इसके लिए गूगल-ऐडसेंस (Google adsense) सहित फ्लिपकार्ट, अमेज़ॉन (Flipkart and Amazon affiliates) जैसे तमाम अफिलिएट प्रोग्राम से आपको ऑफर मिलेंगे. पर यह निश्चित मान लीजिए कि सिर्फ गूगल-ऐडसेंस और अफिलिएट प्रोग्राम के बल पर आप सर्वाइव नहीं कर सकते हैं, खासकर शुरुआत में. हालाँकि, हफिंगटन पोस्ट (huffington post) जैसी हज़ारों वेबसाइट हैं जो रोज अरबों की कमाई करती हैं, पर शुरुआत में हवा में न उड़ें. आपका उत्साह मैं कम नहीं कर रहा हूँ, लेकिन यह सलाह दे रहा हूँ कि इंटरनेट की वेबसाइट के लिए सिर्फ इंटरनेट से ही कमाई न ढूंढें. मसलन, अगर आपकी वेबसाइट/ पोर्टल 'खेल' सम्बंधित है तो (Website, Blog, Portal Business) खेल का सामान बनाने वाली कंपनियों को डायरेक्ट एप्रोच करें, उनके प्रोडक्ट्स का रिव्यु दें (शुरआत में फ्री, फिर पेड - Review writing for related products) खेल संगठनों से जुड़ें, खिलाड़ियों के फायदे-नुक्सान से जुड़ी चीजों पर चर्चा करें, अन्य वेंचर्स के साथ भागीदारी मॉडल्स पर नज़रें घुमाएं. जाहिर है, इंटरनेट बेहद तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, किन्तु भारत में अभी भी इसे अपनी पहुँच पूर्णतः व्यापक बनाने में दस साल से ज्यादा समय लग सकता है. कुछ महानगरों को छोड़ दिया जाए तो अन्य जगहों पर इंटरनेट की स्पीड आपको बेहद घटिया मिलेगी तो 3जी, 4जी के नाम पर तमाम मोबाइल ऑपरेटर बेवकूफ बनाते मिल जायेंगे. अरे भाई, ठीक से फोन तो कर नहीं पाते हैं हम और कॉल-ड्रॉपिंग से दुखी हो जाते हैं. ऐसे में अपना ऑफलाइन मॉडल (Offline earning model) भी तैयार रखें और इसे ऑनलाइन-पोर्टल के साथ तालमेल बना कर चलें, पर अपना सब्जेक्ट और क्षेत्र एक ही रखें. आने वाले दिनों में अमेरिका इत्यादि देशों की तरह ही भारत भी पूरी तरह इंटरनेट और स्मार्टफोन्स की जकड़ में होगा और तब तक वह नए बच्चे भी प्रोफेशनल्स के रूप में मार्किट में आ जायेंगे, जो पैदा होते ही कीबोर्ड और स्मार्टफोन से खेलने लग रहे हैं. जाहिर है, इस क्षेत्र की सकारात्मकता और अवसर की व्यापकता बेहद प्रेरित करने वाली है. हमें बस सावधानी और प्रोफेशनल ढंग से तालमेल बिठाकर आगे बढ़ते जाना है, अकेले नहीं, परिवार के साथ, जिसकी जरूरत आपको ताउम्र पड़ने वाली है.

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अन्य जरूरी बातें (Important factors for your website traffic): पहले ही यह लेख 2000 शब्दों से ज्यादा हो गया है और इस मुद्दे पर इतनी बातें और उदाहरण हैं कि एक किताब लिख दी जाए. वैसे भी, राजनीति पर मेरी एक किताब छपी जो बिकी नहीं, इसलिए अगली किताब बाद में कभी... !! खैर, मजाक के साथ-साथ कुछ छिटपुट बातें और भी दिमाग में आ रही हैं, जो संक्षिप्त रूप में यहाँ प्रस्तुत हैं:
  1. कंटेंट मतलब (Meaning of content on Internet): इंटरनेट की दुनिया में कंटेंट का मतलब सिर्फ 'टेक्स्ट' ही नहीं है, बल्कि टेक्स्ट के साथ-साथ इमेज, वीडियो और लिंक (Text, Images, Video, Links) भी 'कंटेंट' की ही श्रेणी में आता है. इसलिए कोशिश करें कि एक आर्टिकल अधिक से अधिक माध्यमों में डालें, अधिक विजिटर्स के लिए, उनकी चॉइस के अनुसार!
  2. भाषाई उहापोह (Importance of website languages): यदि आपकी वेबसाइट/ ब्लॉग इंग्लिश में है और फिर आप ऊपर के सभी नियमों को ईमानदारी से फॉलो करते हैं तो कोई कारण नहीं है कि आपकी कमाई किसी कॉर्पोरेट-नौकरी को पछाड़ दे, किन्तु अगर यही पोर्टल (Website, Blog, Portal Business) आपने हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में बना रखा है तो आपके संघर्ष का समय थोड़ा लम्बा होगा. घबराइये नहीं, हिंदी की मार्किट बेहद तेजी से आगे बढ़ रही है (fast growing hindi content market) और अगले 5 सालों में यह इंडिया में अंग्रेजी को पीछे छोड़ देगी, इंटरनेट माध्यमों पर. लेकिन, आज की सच्चाई यही है कि अगर किसी को हिंदी-कंटेंट भी ढूंढना होता है तो गूगल में वह रोमन में टाइप करता है जैसे: mantrimandal vistar !! हालाँकि, आप इस कमी को सही एसईओ और प्रमोशन से जरूर ढक सकते हैं.
  3. प्रमोशन (Website promotion techniques in hindi): आपकी वेबसाइट कितनी भी बढ़िया हो, किन्तु शुरुआत में लोग उस पर अपने आप नहीं आने वाले. आएंगे भी तो थोड़े-बहुत. इसके लिए आपको ईमेल-मार्केटिंग, सोशल मीडिया मार्केटिंग, रेस्पॉन्सिव वेबसाइट पर पुश नोटिफिकेशन इत्यादि कार्य मनोयोग से करना होगा, सीखना होगा.

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  4. कंसल्टेंट हायरिंग (Hiring a digital marketer / Web Designer): यह बेहद महत्वपूर्ण है, जब आप शुरुआत करते हैं. आज वेबसाइट बनाना बेहद आसान काम हो गया है, किन्तु उसे सफल करना उतना ही मुश्किल. यह बातें आप 3000 शब्दों से ज्यादा के इस लेख को पढ़ते हुए स्पष्ट ढंग से समझ गए होंगे. इसमें कोई भी डिज़ाइनर/ डेवलपर परफेक्ट नहीं होता, बल्कि लगातार रिसर्च करना वाला व्यक्ति ही आपको सही गाइड कर सकता है. काम शुरू करते समय और लगातार आप कंसल्टेंट, वेब डिज़ाइनर, डिजिटल एजेंट को परखें जरूर और इसके लिए आप अपने अनुभव के साथ, उसका ब्लॉग (पोर्टल) जरूर देखें और उसे पढ़ें, समझें. इससे आपको उसकी सोच और शोध की गहराई समझ आ जाएगी. इसके साथ खुद उसके पर्सनल वेबसाइट/ ब्लॉग की अलेक्सा-रैंक देखें, और उस पर कितना ट्रैफिक आ रहा है, इसे एनालाइज करें (परसनल वेबसाइट इसलिए, क्योंकि क्लायंट की किसी की भी कोई दिखा देता है आजकल). टेक्नोलॉजी के बारे में उसकी समझ की गहराई को समय लेकर परखें, क्योंकि इससे आपकी सफलता जुड़ी हुई है. जो वह राह दिखायेगा, आप उसी पर चलने वाले हैं तो उसकी परीक्षा लेने का आपको पूरा हक़ है.
  5. सबसे बड़ी और आखिरी बात: इन सबके बावजूद आप अपनी 'सफलता और असफलता' के लिए स्वयं जिम्मेदार होंगे, इसलिए बेहतर होगा अपनी गलतियों को नोट करें, उसमें सुधार करें और आलोचना को सकारात्मक ढंग से लेकर, बिना पीछे देखें जुट जाएँ जब तक 'लक्ष्य' की प्राप्ति न हो जाए!


- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.



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