जब समूचा विश्व ईरान को संदिग्ध नज़र से देख रहा था और उसकी आर्थिक नाकेबंदी कर दी गयी थी, तब भारत ने आगे बढ़कर इस शिया बहुल देश के साथ तेल की खरीददारी को संभव बनाया. आज जब उसके ऊपर से आर्थिक प्रतिबन्ध बहुत हद तक हटा लिए गए हैं तब उसके तेवर थोड़े बदले-बदले नज़र आ रहे हैं, जिसका कारण तेल व्यापार से ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के पेंच नज़र आते हैं. पश्चिमी देशों द्वारा ईरान पर परमाणु हथियार विकसित करने के शक में जबरदस्त प्रतिबन्ध थोपे गए थे, जिससे यह देश बुरी तरह प्रभावित हुआ था. तत्कालीन समय में पश्चिम के देशों का तर्क था कि ईरान के 'परमाणु हथियार' हासिल करने के प्रयास को रोकने के लिए इनकम स्रोतों को बंद करना बहुत जरुरी हो गया था. जाहिर है कि इनकम सोर्स तभी बंद होंगे, जब उसके बिज़नेस को रोका जा सकेगा और ईरान का सारा इनकम स्रोत कच्चे तेल का निर्यात है. पहले अमेरिका ने इस कच्चे तेल के ईरान से एक्सपोर्ट को प्रतिबंधित कर दिया, जिससे नए खरीदारों के साथ साथ पुराने खरीदारों पर भी ईरान से तेल न लेने का भारी दबाव था. भई! अमेरिका को कोई भी देश क्यों नाराज करना चाहेगा भला. इस तरह के अमेरिकी प्रतिबंधों से कहीं न कहीं भारत भी प्रभावित जरूर था, किन्तु फिर भी इस देश से मित्रता निभाने में हिंदुस्तान को कभी संकोच नहीं हुआ.
समझा जा सकता है कि भारत में पाबंदियों के दौरान 260,000 बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का निर्यात सिर्फ ईरान से होता था जिसको ईरान दोगुना बढ़ाना चाहता था. बाद में अमेरिका सहित पश्चिम ने कहा कि 'प्रतिबंधों से ईरान के परमाणु कार्यक्रमों पर रोक लगाना संभव नहीं था, लेकिन इन्ही प्रतिबंधों के कारण ईरान वार्ता के लिए राजी हुआ. कुछ दिन बाद ईरान ने सार्वजानिक घोषणा करी कि उसने परमाणु हथियार बनाना रोक दिया है, जिससे उस पर लगे प्रतिबन्ध भी कम हो गए और धीरे धीरे प्रतिबंध समाप्त होने की ओर आगे बढ़ गए. परमाणु गतिविधियों की वजह से लगे प्रतिबंधों के हटते ही ईरान दुनियाभर से सामान्य व्यापारिक संबंधों को फिर शुरू करने का रास्ता ढूढ रहा है तो कच्चे तेल को बेचने और इसके व्यापार में इजाफा करने के लिए उसका खास ध्यान एशिया में भारतीय और यूरोप के बाज़ार पर लगा हुआ है. इस कड़ी में, पहले ईरान अपने बिज़नेस को बढ़ाने के लिए अपनी शर्त और मूल्य नहीं थोपने का फैसला किया था तो भारत जैसे देशों को उसने कई सहूलियतें भी पेश कि थीं. हालाँकि, अब स्थिति बदल रही है और इसका संकेत ईरान धीरे-धीरे देने लगा है. अब न केवल ईरान से इंपोर्ट होने वाले कच्चे तेल पर फ्री शिपिंग की सुविधा खत्म हो रही है, बल्कि भारत को इसके लिए चार्ज देना पड़ेगा, हालांकि यह चार्ज डिस्काउंटेड होगा. गौरतलब है कि ईरान ने 3 साल पहले से चली आ रही इस व्यवस्था को खत्म कर दिया है. यही नहीं, भारत को इसके लिए ईरान को यूरोपीयन करंसी यूरो में पेमेंट करनी होगी. इसके साथ-साथ, इंडियन रिफाइनरीज पर बकाया करीब 650 करोड़ डॉलर की रकम भी यूरो में ही चुकाने के निर्देश मिल रहे हैं. हालाँकि, यह रकम 6 किस्तों में चुकाई जा सकती है. बताते चलें कि यह रकम एस्सार ऑयल, मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड आदि पर बकाया है.
इसी क्रम में, ईरान के साथ भारतीय व्यापारिक सम्बन्धों पर नज़र दौड़ाएं तो, ईरान ने पेमेंट के लिए पहले की तरह इंडियन रिफाइनरीज को 90 दिन का क्रेडिट समय देना जारी रखा है, जबकि 3 महीने बाद पेमेंट न मिलने पर दबाव बनाया जाएगा. इतना ही नहीं, पहले इंडियन रिफाइनरी 45 फीसदी पेमेंट रुपए में करती थीं और बचे 55 फीसदी को पेमेंट चैनल के जरिए क्लीयर किया जाता था, किन्तु अब ऐसा होना मुमकिन नहीं दिखता है. साफ़ तौर पर ईरान कुछ ज्यादा ही तेजी में दिख रहा है. कुछ अन्य बातों की तरफ अगर हम नज़र दौड़ाते हैं तो, ईरान ने नवंबर 2013 में ऑयल डिलिवरी अपनी शिपिंग लाइन से कराने का फैसला किया था, क्योंकि तमाम प्रतिबंधों की वजह से दूसरी शिपिंग लाइन्स इस झंझट में पड़ना नहीं चाहती थीं. अपनी शिपिंग लाइन के लिए ईरान पहले शिपिंग चार्ज नहीं लेता था, लेकिन अब इस व्यवस्था में नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी द्वारा बदलाव किया जा रहा है. इसकी जानकारी इंडियन रिफाइनरीज को लेटर लिखकर दी गई है. नेशनल ईरानियन ऑयल कंपनी का स्पष्ट कहना है कि शिपिंग पर चार्ज लिया जाएगा लेकिन उस पर डिस्काउंट मिलेगा, जबकि आगे चलकर यह डिस्काउंट 50 फीसदी तक हो सकता है. जाहिर है, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबन्ध हटते ही ईरान कहीं ज्यादा तेजी में आ गया दिखता है. साफ़ है कि उसे अपने आर्थिक हितों की चिंता है.
आर्थिक हितों से थोड़ा अलग हटकर सोचें तो पाकिस्तान ने 'रा' एजेंट का नाम देकर कुलभूषण जाधव, जो पहले भारतीय नेवी में अधिकारी रहे हैं, उनको पूरी दुनिया के सामने दिखाया. अंदरखाने बात यह सामने आ रही है कि तालिबान ने ईरान से कुलभूषण का अपहरण करके पाकिस्तान को सौंपा है, जबकि पाकिस्तानी प्रशासन ने दुसरे भारतीय, जो ईरानी सीमा पर व्यापार करते हैं, उनको सौंपने के लिए ईरान पर खूब दबाव बनाया है. जाहिर है, कहीं न कहीं इन बातों का असर भी आने वाले समय में भारत-ईरान सम्बन्धों में खटका पैदा कर सकता है. हालाँकि, ईरान की हालत शिया सुन्नी मामलों के लेकर अरब देशों से तनाव की हालत में ही रहती है और ऐसे में भारत को नाराज करना उसके हित में कतई नहीं होगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि तमाम व्यापारिक हितों को साधते हुए भारत और ईरान एक दुसरे के मजबूत सहयोगी बने रहेंगे, वह चाहे व्यापार की बात हो अथवा अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध ही क्यों न हों!
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1 टिप्पणियाँ
ईरान का मुस्लिम देंशो के सपोर्ट में भारत के लिए इस तरह से बदलना ठीक नहीं है, हो सकता है की भारत की मजबूत होती आर्थिक स्थिति को देख कर ईरान अपना मन बदल रहा हो.
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