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हमारा देश भारत धर्म-प्रधान देश और यह एक बड़ा कारण है कि हमारी संस्कृति सदियों से इस मजबूत डोर में बंधी होने के कारण 'अक्षुण्ण' रही है. यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि सम्पूर्ण विश्व में भारत ही ऐसा देश है, जहाँ आपको हर कदम पर आस्था और धर्म के विभिन्न स्वरूपों के दर्शन आसानी से हो जाएंगे! निश्चित रूप से भारत देश के हर क्षेत्र में आपको आस्था का एक नया रूप देखने को मिलता है, लेकिन इन सभी रूपों का अंत एक ही जगह होता है और वह है 'ईश्वर की साधना' और 'मोक्ष की प्राप्ति'! भारत की इसी आस्था का महामेला आपको महाकुंभ में देखने को मिलता है. भारतीय धर्मों में चमकते हुए ध्रुव तारे की भांति कुम्भ की महिमा का गान किया गया है और चूंकि कुम्भ का मेला 12 वर्षों के बाद आता है, इसलिए इसका महत्व काफी बढ़ जाता है. इस सम्बन्ध में कई किवदंतियां मौजूद हैं, जिसमें पुराणों के अनुसार देवताओं और राक्षसों के सहयोग से समुद्र-मंथन में जो 'अमृत' से भरा हुआ कुंभ (घड़ा) भी निकला था, जिसे राक्षस भी पीना चाहते थे और देवता उन्हें अमृत नहीं देना चाहते थे, क्योंकि ऐसी मान्यता रही है कि 'अमृतपान' करने के पश्चात 'जीव' अमर हो जाता है. इस सन्दर्भ में, अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग में बारह दिनों तक संघर्ष चलता रहा और इस छीना-झपटी में उस 'अमृत-कुंभ' से चार स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं. यह स्थान पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक माने जाते हैं. इन स्थानों की पवित्र नदियों को अमृत की बूंदे प्राप्त हुईं और इसलिए ही इन पावन स्थानों पर यह पर्व कुंभ-स्नान के नाम से मनाया जाता है. हिन्दू दर्शन में इस बात की मान्यता है कि विशेष काल में कुम्भ स्नान करने से तमाम पूण्य प्राप्त होते हैं. इन चारों स्थानों पर निश्चित अवधि के पश्चात कुम्भ मेला लगता है और इस बार का कुम्भ-स्नान महाकाल की नगरी, भगवान् श्रीकृष्ण के शिक्षा केन्द्र, महाकवि कालिदास की भूमि, राजा विक्रमादित्य की नगरी 'उज्जैन नगरी' में मनाया जा रहा है. उज्जैन के पर्व को सिंहस्थ इसलिए कहा जाता है कि सिंह राशि पर बृहस्पति ग्रह-योग होने के समय 'कुम्भ स्नान' का समय आता है.
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर का मंदिर यहीं पर स्थित है, जो विश्व प्रसिद्द है. हिन्दू समाज में मेलों का महत्व बहुत पहले से है, जिसका एक विशेष सामाजिक महत्त्व भी है. अपनी आस्था और सांस्कृतिक विरासत के प्रदर्शन और विस्तार के लिए मेले का आयोजन किया जाता रहा है, जहां सब लोग इकठ्ठे हो कर आपसी भाईचारे और सद्भावना के साथ आयोजन का आनंद लेते हैं और यह परंपरा आज भी हमारे देश में पूरे गौरव के साथ मनाई जाती है. थोड़ा पीछे के काल की तरह यात्रा की जाय तो, आज से सौ साल पहले भी लोग जान-मॉल कि परवाह किये बगैर कुंभ के मेले में शामिल होने के लिए दूर-दूर से पहुंचते थे. कई बार हम सबने भी सुना होगा कि कुम्भ स्नान पर छोटे-छोटे बच्चे बिछड़ जाते थे, जो या तो मिलते नहीं थे अथवा बड़े हो जाने के पश्चात माँ-बाप से उनका मिलन होता था. इस विषय पर हमारे बॉलीवुड ने भी तमाम फिल्में बनायी हैं, जो इसकी भव्यता का आप ही गवाह हैं. ऐसा भी नहीं है कि कुम्भ-स्नान करने केवल देशवासी ही पहुँचते हों, बल्कि विदेशी भी बड़ी संख्या में 'भारत दर्शन' के इरादे से कुम्भ मेलों में पहुँचते हैं. जाहिर है कि ऐसे में यह 'टूरिज्म' का बड़ा श्रोत बनकर भी उभरा है. थोड़ा पीछे जाकर अगर हम आंकलन करें तो, बहुत पहले कुम्भ नहाने का प्रचलन और सुविधा प्रयाग शहर में ही थी! ज्यादातर लोग प्रयाग के कुम्भ में ही इकठ्ठा होते थे. हालाँकि, उस समय में प्रयाग आने वाले तीर्थ यात्रियों को लुटेरों का बड़ा डर रहता था, लेकिन हमारे देश के धर्मभीरू लोगों की तो यही खासियत रही है कि हर 'डर' पर विजय प्राप्त करके वह धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेते रहे हैं. आज तो हर तरह की यातायात सुविधा होने से हम सहजता से कहीं से कहीं पहुँच जाते हैं, किन्तु पुराने समय में तो सार्वजनिक यातायात की सुविधाएं न होने के कारण कुंभ में आने के लिए लोग पैदल या बैलगाड़ी से ही संगम पहुंचते थे.
साधारण ग्रामीण यात्रियों को रास्ते में चोर-डाकु अक्सर अपना निशाना बनाते थे. हालाँकि, तीर्थयात्रियों को रात में लुटने का डर न सताए इसके लिए प्रयाग आने वाले रास्तों पर विशेष सराय बनाए जाते थे और इन सरायों में सुरक्षा के विशेष बंदोबस्त भी किए जाते थे. हालाँकि, इस सिंहस्ठ कुम्भ में भी कई साधुओं ने अपने सामानों की चोरी पर होहल्ला मचाया, किन्तु तब और अबके समय में ज़मीन आसमान का फर्क है. हिन्दी फिल्मों में बचपन में दो भाई या दो बहन अक्सर कुंभ के मेले में खो जाते थे, किन्तु अब 'भीड़-प्रबंधन' के लिए कुशलता से तकनीक को प्रयोग में लाया जाता है. बदलते वक्त में जहां भारत का तकनीकी चेहरा बदला है, वहीं कुंभ आयोजन भी अब हाईटेक हो गए हैं. इस बार सिंहस्थ आयोजन में तकनीक का सहारा लेकर उसे और सफल बनाने की भरपूर कोशिश की गयी है, जिसमें होटल, यातायात सहित तमाम दूसरी सहूलियतें शामिल हैं. राज्य सरकार ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में इस मेले को सफल बनाने के लिए सर्वस्व झोंक दिया है. तकनीक के जरिए अब तो अंतरिक्ष से भी सिंहस्थ मेले के दर्शन किए जा सकते हैं तो इस सिंहस्थ में सूचना तकनीक के सहारे सीसीटीवी कैमरे, लाइव स्ट्रीमिंग, आकर्षक वेबसाइट, मीडिया सेंटर और जीपीएस टैगिंग की व्यवस्था भी की गयी है. जाहिर है, तकनीक ने बड़े स्तर पर सिंहस्ठ का चेहरा बदल कर रख दिया है. चूंकि अनेक दुसरे कुम्भ मेलों की तरह, सिंहस्थ में भी आने वाली अधिकतर आबादी ग्रामीण बूढ़ों और महिलाओं की होती है और उनके लिए सूचना तकनीक मोबाइल ऐप का महत्व कुछ ख़ास नहीं है और ऐसे में उनकी मदद करने के लिए जगह-जगह कैंप लगाए गए हैं, तो इस बार कुंभ मेले में भटकने वाले लोगों को प्रशासन द्वारा विभिन्न जगहों पर लगी स्क्रीन पर दिखाया जा रहा है.
एक सूचना के अनुसार, लोगों की सुरक्षा और निगरानी के लिए 481 कैमरे लगाए गए हैं तो राज्य सरकार की ओर से मेले में मेडिकल की भी बेहतरीन सुविधा की गयी है. चूंकि, आजकल किसी भी आयोजन को लेकर आतंकी खतरा मंडराता ही हैं, इसलिए इससे निपटने और सुरक्षा की दृष्टि से 23 हजार पुलिस बल तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं में 80 हजार व्यक्तियों की तैनाती की गयी हैं, जिसमें 60 हजार वॉलेंटियर्स भी शामिल हैं. इन सबके बीच जो अनोखी पहल हुयी है, वो है ख़ास मेले के लिए 'बैंकिंग सुविधा' जिससे कि अब लोगों को कैश लेकर घूमने की जरुरत नहीं है. इसके लिए मेले में तमाम बैंकों ने 'सिंहस्थ कार्ड' जारी किया है, और इसकी सहायता से आप कुछ भी खरीद सकते हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तारीफ़ करनी होगी, जिन्होंने पूरी कोशिश की है कि मेले में आने वाले यात्रियों को किसी प्रकार की तकलीफ न हो, और इसके लिए क्षिप्रा नदी के चारों तरफ घाटों का निर्माण तथा सड़कों का निर्माण भी किया गया है. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संस्कार किस माध्यम से हमारी भारतीय व्यवस्था ट्रांसफर करती है, अगर इसका दर्शन किसी को करना हो तो उसे अवश्य ही जाना चाहिए 'सिंहस्ठ कुम्भ', जो आने वाले 21 मई 2016 को 'पूर्णिमा के मुख्य शाही स्नान' को संपन्न होगा.
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