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सिवान में दिन-दहाड़े हिंदुस्तान की पत्रकार की हत्या और पूरे बिहार में पत्रकारों की हड़ताल! मुख्य्मंत्री की इस बाबत प्रतिक्रिया देखिये, वह बेहद आसानी से कहते हैं कि 'अगर परिवार चाहता है कि सीबीआई जांच हो इस मामले की तो वह राजी हैं.' यह कहकर एक राज्य का मुख्य्मंत्री अपने ऊपर लग रहे 'जंगलराज' के आरोपों को मानों झटक सा देता है. पिछले कुछ दशकों में बिहार, बिहारी जैसे शब्द ऐसे बन गए हैं, जिसे बिहार के बाहर लोग कहने में शरमाते और सुनाने में घृणा और संकोच जैसा भाव महसूस करते हैं. इसका कारण भी कोई बहुत अंजान नहीं है, बल्कि 'कानून-व्यवस्था' को लेकर इस हिंदी-भाषी राज्य का इतना मजाक बनाया जा चुका है कि बहुत सारे बिहारी भाई-बहन, बिहार से बाहर इज्जत पाने के लिए अपनी असली पहचान को ही छुपा लेते हैं. यह उनकी मज़बूरी ही तो है, अन्यथा कोई अपनी मातृभूमि की पहचान भला क्यों छुपाना चाहेगा? सामाजिक बदलाव के आंदोलनकारी के तौर पर शुरुआत करने वाले लालू यादव के 15 साल के शासन काल ने इस राज्य को न केवल बर्बाद ही किया, बल्कि अपराधियों की शरणस्थली और संरक्षणस्थली के रूप में विकसित कर दिया. जी हाँ, ठीक वैसे ही जैसे किसी स्थान को पर्यटन-स्थल के रूप में विकसित किया जाता है, वैसे ही यहाँ गुंडे, दबंग, मर्डरर, अपहरणकर्ता, उठाईगीरे जैसे शब्द अपने अर्थ बताने लगे हों! हालाँकि, पिछले 10 साल में लालू की शासन की खिलाफ नीतीश कुमार और भाजपा ने अपेक्षाकृत शासन सुधारने की पहल जरूर की, किन्तु 'कैंसर' भी कहीं दवा से ठीक होता है. एक बार फिर राजनीति ने करवट बदली और बिहार में अपराधी-तत्व खुल कर सर उठाने लगे हैं और नीतीश कुमार इसे 'बेहद हल्के' में लेने को मानसिक रूप से तैयार हो गए भी लग रहे हैं, मानो अपराधियों के साथ वह तालमेल बिठा कर चलने को राजी हो गए हैं, बजाय की उन्हें कुचलने के, बजाय कि कैंसर का 'कीमोथेरेपी' करने के! खैर, राजनीति की अपनी मजबूरियाँ होती हैं और तब तो खासकर, जब प्रधानमंत्री बनने की सीढ़ियां आगे नज़र आ रही हों!
आखिर, नीतीश को क, ख, ग ... और उन सभी वांछित, अवांछित लोगों को साथ लेकर ही तो पीएम की रेस में दौड़ना होगा. इसलिए, अब बिहार में हो रहे अपराधों पर उनकी त्यौरियां नहीं चढ़ती हैं. शराब पर बैन लगाकर वह आत्ममुग्ध से हो गए दिख रहे हैं, मानो सुशासन का इससे बड़ा पैमाना क्या है भला! आखिर, उनके राजनीतिक और व्यक्तिगत प्रतिद्वंदी वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात में भी तो शराब पर बैन है और ऐसे वह प्रधानमंत्री की रेस में दौड़ लगाने की योग्यता हासिल कर चुके हैं. जी हाँ, अब नीतीश कुमार बिलकुल भी अपराध की घटनाओं पर घबरा नहीं रहे हैं. आज कल जैसा माहौल है बिहार में ठीक वैसा ही आज से 15 साल पहले भी था, इसमें कोई दो राय नहीं है. इसके लिए आपको ज्यादा सोचने की जरूरत भी नहीं है. पिछले साल दिसंबर में दरंभगा में दो इंजीनियरों की रंगदारी नहीं देने पर दिनदहाड़े हत्या कर दी गई, तो हत्या करने के बाद हत्यारे फरार हो गए. इसी वारदात को लोग जंगलराज का आगाज समझने लगे थे. अभी यह मामला सुलझा ही नहीं की रिलायंस टेलीकॉम में गुणवत्ता इंजीनियर अंकित झा को मार दिया गया. इस घटना को राजधानी पटना से करीब 60 किलोमीटर दूर वैशाली जिले में ही अंजाम दिया गया था. हालाँकि, वैशाली में हुई इस इंजीनियर की हत्या के कारण का पता भी नहीं लगा था कि इसके कुछ ही दिन बाद इसी प्रोजेक्ट से जुड़े दो अन्य इंजीनियरों पर दो मोटरसाइकिल सवार लोगों ने हमला किया, पर नीतीश कुमार कान में रूई डाले 'मुंगेरीलाल के हसीं' सपने देखने में मगन हैं, इसलिए उन्हें कुछ भी नज़र नहीं आ रहा है. बीजेपी नेता और बिहार के उपमुख्यमंत्री रह चुके सुशील कुमार मोदी ने ऐसी घटनाओं पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि जंगलराज वाले 'उन' पुराने दिनों को याद कर बिहार की जनता आज भी सहम जा रही है. बीती जनवरी की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में सिर्फ दो महीने में कुल 578 मामले सिर्फ हत्या के दर्ज किये गए हैं, जिससे यह साफ होता है कि एक बार फिर से बिहार में अपराधियों का बोलबाला हो गया है और उन्हें राजनीतिक संरक्षण बखूबी प्राप्त हो रहा है, इस बात की पुष्टि भी हो ही चुकी है.
गत 12 फरवरी को भोजपुर जिले के बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष विशेश्वर ओझा की गोली मार कर हत्या कर दी गई और इसे आपसी दुश्मनी का मामला बता कर पल्ला झाड़ लिया गया. अरे भाई, आपसी दुश्मनी का भी मामला हो तो क्या दिन-दहाड़े हत्या हो जाएगी और नीतीश सरकार हाथ पर हाथ धरे देखती रहेगी. उसी दिन सुबह 12 बजे छपरा के तरैया में बीजेपी नेता केदार सिंह की गोली मारकर हत्या की गई. इससे 10-15 दिन पहले पटना के श्रीकृष्णपुरी थाना क्षेत्र में अज्ञात अपराधियों ने दिन-दहाड़े 'सोनाली ज्वेलर्स' के मालिक रविकांत की हत्या कर दी थी. रविकांत सुबह करीब 10 बजे राजापुर पुल के पास अपनी दुकान पर आये थे, तभी अपराधियों ने उन्हें करीब से कई गोलियां मारीं, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई. इस तरह की घटना के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बड़ी आसानी से कहते हैं कि "हर एक घटना की गंभीरता से जांच की जाएगी और राज्य पुलिस की तरफ से किसी तरह की ढिलाई नहीं दी जाएगी! नीतीश की मानें तो एक मुख्य्मंत्री इससे ज्यादा कर भी क्या सकता हैं, क्योंकि कानून अपने हिसाब से काम कर रहा है और चिंता की कोई बात नहीं है! वह रे नीतीश जी, वह... आप वाकई सुशासन बाबू हैं और असली सुशासन-मॉडल तो अब बिहार की लोगों को दिखाई पड़ ही रहा हैं, जिसका प्रभाव आने वाले दिनों में और भी बढ़ने की सुगबुगाहट साफ़ नज़र आ रही है. और हाँ, नीतीश बाबू अपने सम्बोधनों में मीडिया पर दोष मढ़ते हुए कहना नहीं भूलते हैं की 'मीडिया को हर केस को गलत दिशा में ले जाने की जरूरत नहीं है'. हाल ही में हुए 'गया रोडरेज', जिसमें नीतीश कुमार के पार्टी की विधायक के पुत्र ने एक लड़के को गोली मार दी, क्योंकि उस निर्दोष ने उनकी गाड़ी को ओवरटेक किया था. गाड़ी उनके पास थी, ये तो स्टेटस है लेकिन क्या बिहार के विधायकों के बच्चे भी बन्दुक लेकर घूमने के लिए स्वतंत्र है, जबकि बिहार में पंचायत चुनाव चल रहा है! क्या वाकई यह कानून-व्यवस्था और अंधेरगर्दी का मामला नहीं है, इस बात का नीतीश और लालू यादव की सुपुत्र-मंत्रियों को जवाब जरूर देना चाहिए. किसी भी चुनाव में आम जनता के किसी भी हथियार को चुनाव से पहले जमा करा लिया जाता हैM तो क्या ये नियम सिर्फ आम जनता के लिए है?
नीतीश कुमार ने बिहार में शराब पर रोक लगा दिया है जिसकी वजह से पुरे देश में उनकी प्रशंसा हो रही है, लेकिन उन्हीं के पार्टी के विधायक के घर में शराब की बोतलें मिलती है और नीतीश जी खुद दूसरे राज्यों में शराब को रुकवाने की बात करते हैं. नीतीश कुमार को पहले खुद के घर में देखना चाहिए था कि मैं जो कह रहा हूँ इसको हमारे ही लोग मानते है या नहीं! बच्चों को मंत्री बनाने का किस प्रकार का ऊंटपटांग परिणाम आता है, इसका नज़ारा दिखा लालू की योग्य सुपुत्र की बातों से! उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का कहना है कि 'यदि रोड रेज की घटना में हुई हत्या 'जंगलराज' का उदाहरण है तो फिर पठानकोट एयरबेस पर पाकिस्तानी आतंकियों द्वारा किया गया हमला भी जंगलराज ही है'. खैर, तेजस्वी ऐसा इसलिए कह रहे होंगे क्योंकि उनके पिता के शासन में आया यह शब्द 'जंगलराज' उनको कुछ ज्यादा ही पसंद आ गया हो, किन्तु नीतीश इस माहौल पर सर क्यों नहीं पीट रहे हैं, यह बात बड़े से बड़े विश्लेषक को भी शायद ही समझ आये!
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1 टिप्पणियाँ
नीतीश कुमार ने शराब बंदी के अभियन से जो शोहरत हासिल करने की सोची है उस पर ये दिनदहाड़े होने वाली हत्याएं हावी नजर आ रही. अपने भाषणों में नीतीश ने कहा था की शराब बंद होगा तो अपराध बंद होगा लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. क्योकि शराब तो आम जनता के लिए बंद हुआ है लेकिन अपराध तो शातिर मुजरिम कर रहे है.
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