कभी-कभी ट्रैक पर चलती गाड़ी को जान बूझकर यूं उतारा जाता है कि कई बार समझ ही नहीं आता कि आखिर इस बेवजह लीपापोती की जरूरत क्या रही होगी? जब भारत ने पठानकोट हमले में मिले सुबूत, जिससे साफ़ जाहिर था कि आतंक मचाने वाले हमलावर पाकिस्तानी थे अथवा पाकिस्तान से उनका सीधा सम्बन्ध था, पाकिस्तान सरकार को भिजवाया, तबसे ही सरकार की इस तरह की उम्मीद पर अजब-गजब सवाल उठ रहे हैं. लोग सवाल उठा रहे हैं कि, एक चोर को ही 'न्यायाधिकारी' बनाने से आखिर क्या हासिल हो जायेगा! कोढ़ में खाज वाली बात यह हो गयी कि पठानकोट हमले की जाँच के लिए पाकिस्तान ने भी ड्रामा करते हुए अनुमति मांगी और दौड़ी-दौड़ी उसकी टीम पठानकोट भी पहुँच गयी! तमाम विपक्षी पार्टियों ने इस मसले पर खूब हो हल्ला मचाया, किन्तु केंद्र सरकार ने पाकिस्तानी एजेंसी को भारत आकर जाँच की अनुमति दे ही दी. 27 मार्च 2016 को पाकिस्तान से 5 सदस्यों वाली संयुक्त जांच टीम भारत पहुंची थी, जिसके बाद से ही वह मीडिया में छाई हुई है. मीडिया के साथ-साथ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने पाकिस्तान से आये 'जे.आई.टी.' का पुरजोर विरोध किया. हालाँकि, इन दोनों पार्टियों के तात्कालिक विरोध का एक बड़ा एंगल पंजाब प्रदेश में होने वाले चुनाव हो सकते हैं. इस क्रम में, कांग्रेस और अरविन्द केजरीवाल दोनों ही जानते हैं कि इस मुद्दे पर तथ्यों की बजाय आम जनमानस भावनाओं से 'वोट' करता है, इसलिए भी दोनों दल बढ़ चढ़ कर इसका विरोध करने में जुटे हुए हैं. हालाँकि, इस विरोध से परे हटकर भी सोचा जाय तो कोई निष्कर्ष निकाल पाना बड़ा मुश्किल लगता है कि आखिर इस जांच से हासिल क्या हुआ और क्या होगा? विपक्षियों का यह कहना कि जो दागी है वही जाँच करेंगे कि "हम दोषी हैं या निर्दोष?" आम आदमी पार्टी ने तो कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा है कि पाकिस्तानी जाँच टीम का भारत आना पठानकोट में शहीद हुए जवानों का अपमान है, साथ ही साथ देश की सुरक्षा के लिए भी एक खतरा हो सकता है.
हालाँकि, सरकार को इसका बचाव करना ही था, सो इसका प्रयास भी बखूबी किया गया. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपना बयान जारी कर कहा है कि पाकिस्तान ने पहली बार किसी आतंकी मामले की जांच की दिशा में ‘गंभीर प्रयास’ किये हैं और हमें सकारात्मक रवैया अपनाए रखना चाहिए. बहुत खूब अमित शाह जी! पाकिस्तान के गम्भीर प्रयास पर तो आप सकारात्मक रवैया जरूर अपनाइए, किन्तु ज़रा यह बताते जाइये कि अगर यही कार्य भाजपा के अलावा किसी दूसरी सरकार ने किया होता तो 'आपका बयान क्या रहता?" जाहिर तौर पर आप उसे सरकार की विवशता या तथ्य बताने की बजाय देश भर में प्रचारित कर चुके होते कि 'देश की प्रतिष्ठा और सुरक्षा' दोनों को दांव पर लगा दिया गया है. इस क्रम में पढ़े-लिखे रक्षा मंत्री की टिप्पणी तो और भी दिलचस्प रही है. बिचारे, कन्फ्यूज रहे हैं कि उन्हें करना क्या है, कहना क्या है? गेंद को कभी इस पाले में तो कभी उस पाले में डालते रहते हैं. मनोहर पर्रिकर ने बार -बार ये स्पष्ट करने की कोशिश की है कि जाँच के लिए आई संयुक्त जांच टीम को एयरबेस में जाने की इजाजत नहीं दी है, और उसे सिर्फ एनआईए ने परमिशन दिया है ! रक्षामंत्री जी, हो सकता है कि आपने अति संवेदनशील इलाकों को टेंट से ढक दिया हो और पाकिस्तानी टीम को सिर्फ उन्ही जगहों पर ले गए हो, जहाँ मुठभेड़ हुई थी, किन्तु हमारे राष्ट्रीय सम्मान का क्या, जो यह उम्मीद लगाए बैठा है कि हमारे स्पेशल कमांडो पाकिस्तान में 'अमेरिकी नेवी सील' की तरह घुसेंगे और 'दाऊद' को उसी प्रकार पकड़ कर लाएंगे, जैसे लादेन को अमेरिका ने 'मुर्दा' पकड़ लिया था! सच कहा जाय तो भाजपा की राष्ट्रवादी सरकार से इस कदम की अपेक्षा शायद ही किसी को रही हो! जहाँ तक सबूतों और जांच की बात है तो क्या ये पहली बार है जब भारत ने आतंकवाद के तमाम सुबूत पाकिस्तान को दिए हों और हमेशा की तरह पाकिस्तान या तो मुकर जाता है या सुबूतों पर चुप्पी साध लेता है? जब पाकिस्तानी दल भारत आने वाला था, तब मैंने अपनी फेसबुक पोस्ट में आशंका जताई थी कि पाकिस्तान से आया जांच दल वापस जाकर तमाम सुबूतों और गवाहों के बयान पर लीपापोती नहीं करेगा? वह करेगा और जरूर करेगा, इस बात में रत्ती भर भी शक किसी को शायद ही हों!
यह अनुमान अंततः सही साबित हुआ और हमेशा की तरह इस बार भी पाकिस्तान ने अपनी 'बदनीयती' दिखा ही दी. पठानकोट हमले की जांच करने के बाद वापस लौटी पाकिस्तान की संयुक्त जांच टीम (जेआईटी) ने पठानकोट हमले के सबूतों को नकार दिया और दावा किया है कि भारत इस हमले को लेकर पर्याप्त सूबत देने में 'नाकाम' रहा. यह होना ही था और इस बात को भांपने में हमारी राजनीतिक सरकार और उसके तथाकथित योग्य नौकरशाह कैसे चूक गए, यह एक बड़ा प्रश्नचिन्ह है! अब खबर है कि हमारी एनआईए टीम पाकिस्तान जाएगी. क्या हास्यास्पद विषय है यह! हर एक व्यक्ति यह बात खूब बढ़िया से जानता है कि भारतीय जांच टीम का पाकिस्तानी दौरा 'अडवेंचर टूर' से अधिक कुछ न होगा. बिरयानी खिलाकर वापस भेज दिया जायेगा और किसी ने अगर ज्यादा चूं-चपड़ की तो तालिबान से अपहरण करा कर 'रॉ' का एजेंट साबित कर देंगे. आखिर कुलभूषण जाधव का तालिबान द्वारा अपहरण करा के उसको जासूस साबित करने की कोशिश तो की ही जा रही है न! साफ़ है कि पाकिस्तान के साथ भारत की इस संयुक्त जाँच का परिणाम सबको मालूम है कि अंततः कुछ होना जाना नहीं है, बल्कि आने वाले भविष्य के लिए हमने एक गलत परंपरा की शुरुआत जरूर कर दी है. अब तो कहीं भी विस्फोट हुआ, धमाका हुआ और जैसा कि 99 फीसदी केसों में पाकिस्तान शामिल रहता ही है तो अब उसकी टीम हर बार भारत आना चाहेगी! बिचारों को आप 'ईडन गार्डन' में क्रिकेट मैच देखने का वीजा तो देते नहीं हों, लेकिन उनको सरकारी मेहमान बना कर अपनी भद्द जरूर पिटवाते हो! वह लोग तो घूम फिर लेंगे इंडिया में और 'भारत माता की छाती' कुचलते हुए वापस जायेंगे और कहेंगे कि 'जांच के दौरान मिले सुबूत' काफी नहीं हैं! तब क्या कर लोगे आप? जांच की कड़ी में, भारत ने पाकिस्तान से जैश-ए-मोहम्मद सरगना मसूद अजहर की आवाज के नमूने मांगे हैं तो पाकिस्तानी JIT से पूछने की तैयारी है कि पाकिस्तान में बैठे पठानकोट हमले के मास्टरमाइंड मौलाना मसूद अजहर और उसके भाई रउफ को लेकर पाकिस्तानी एजेंसियों ने क्या कार्रवाई की है? वाह मियाँ, क्या खूब कही आपने.
अगर यही जांच है तो तमाम नौकरशाहों और अधिकारियों को 'मोटी तनख्वाह' और सुविधाएं देना बंद कर दीजिये. संजय दत्त की मशहूर फिल्म 'मुन्ना भाई एम बी बी एस' का एक सीन याद आ रहा है यहाँ. मुन्ना भाई इस फिल्म में कई बार चीट करके टॉप करता है तो उससे चिढ़ा कॉलेज का डीन जे.अस्थाना उसे अपने केबिन में बुलाकर गुस्से से पूछता है कि क्या वह चीट करके पास हुआ है? तब मुन्ना भाई कहता है कि 'हाँ, मैं खुल्ला बोलता हूँ कि चीट करके पास हुआ हूँ और अगली बार भी करूँगा, जो उखाड़ सकता है उखाड़ लेना...'!! पाकिस्तान भी हर बार खुल्ला बोलता है और यह हर किसी को सुनाई और दिखाई भी देता है कि 'जो उखाड़ सकता है, उखाड़ ले' ... धमाके हमने ही किये हैं और आगे भी करेंगे! फिर NIA पठानकोट हमले की जांच से जुड़े हुए सवालों की एक नहीं हज़ार लिस्ट तैयार कर ले, क्या फर्क पड़ने वाला है. सवालों की वह लिस्ट JIT से लेकर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने ही क्यों न रख ले, क्या फर्क पड़ने वाला है भला! धर्म और राष्ट्रवादिता की बड़ी पैरोकार भाजपा क्या 'भय बिन होय न प्रीती' की तुलसीदास की चौपाई भूल गयी है! अब अंध समर्थक कहेंगे कि इससे पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के सामने नंगा हो जायेगा! क्या मजाक है, वह पहले कम नंगा है क्या? अब क्या उसकी चमड़ी उतार कर नंगा करोगे? रोज रिपोर्ट आती है कि विश्व शांति के लिए पाकिस्तान खतरा है, कैंसर है... बला, बला ... !! जांच अधिकारी तो जांच अधिकारी हैं, जिन्होंने हमला कराया, उनको जांच अधिकारी का रूतबा देकर सरकार ने बड़ी गलती की है, इस बात में दो राय नहीं! कल को वह भारत के प्रधानमंत्री से भी पूछताछ की मांग कर सकते हैं, क्योंकि पठानकोट हमले के बाद वह और अजीत डोवाल घटनास्थल पर गए थे! ऐसे बेवकूफाना जांच-दल को आखिर भारत आने देने का फैसला किस आधार पर लिया गया जो शक के घेरे में आए एसपी सलविंदर और परिवार का ब्योरा मांगता है तो पठानकोट एयरबेस के कमांडर तक से पूछताछ की इजाजत भी मांगने में संकोच नहीं करता है! इस कड़ी में, आतंकियों की पोस्टमार्टम और डीएनए रिपोर्ट, आतंकियों की तरफ से इस्तेमाल मोबाइल फोन, पठानकोट हमले के मामले में दर्ज तमाम एफआईआर की कॉपी, बॉर्डर से लेकर एयरबेस तक की सीसीटीवी फुटेज, विदेश मंत्रालय में अलर्ट इत्यादि पहले ही सौंपा जा चूका है अथवा उसे देने पर सहमति बन चुकी है. अब क्या उन्हें संसद भवन में बिठाकर उनका भाषण सुनाने का इंतजार किया जा रहा है? जरा गौर कीजिये, पठानकोट एयरबेस पर 2 जनवरी को पाकिस्तान से आए आतंकियों ने हमला कर तो अत्याधुनिक हथियारों से लैस इन आतंकियों को 80 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद सुरक्षाबलों ने मार गिराया था. इसमें हमारे 6 जवान भी शहीद हो गए थे. आखिर, उनकी आत्मा पर आज क्या गुजर रही होगी? उनके परिवारवालों के ऊपर क्या गुजर रही होगी?
अरुण जेटली जी एकाध दिन पहले ही बयान आया था कि 'मोदी सरकार ने अभी तक कोई बड़ी गलती नहीं की है!' जेटली साहब, जरा बताइयेगा, इस तरह नौकरशाही की उल जुलूल सलाह पर, अपना राजनीतिक अनुभव परे रखकर निर्णय करना 'बड़ी गलती' की श्रेणी में आता है कि नहीं? प्रधानमंत्री निश्चित रूप से जनता के दिलों पर राज करके सत्ता में हैं, किन्तु इसका क्या करें कि उन्हें नौकरशाहों पर अत्यधिक भरोसा उनकी राजनीतिक सूझबूझ पर कई बार भारी पड़ जाता है. जिसने भी पाकिस्तानी जांच दल को भारत आने की सलाह पीएम को दी है, उसका विवेक क्षीण नहीं तो कन्फ्यूज अवश्य माना जाना चाहिए! प्रधानमंत्री जी, यह देश राजनीति से चलता है, नौकरशाही से नहीं, इसलिए कोर फैसलों में राजनीति को ही निर्णय करना चाहिए, नौकरशाही को नहीं, इस बात में रत्ती भर संदेह नहीं! जहाँ तक बात पाकिस्तान की है तो एक बात बेहद साफ़ तौर पर समझ लेना चाहिए कि जैसे हमारे यहाँ 'भारत माता की जय' पर 90% देशवासियों के भीतर एकता का संचार होता है, वैसे ही पाकिस्तान में 'हिंदुस्तान मुर्दाबाद' के नाम पर पाकिस्तान को एक रखने की नीति उसके जन्म से ही अपनाई गई है. यह बात कोई हवा-हवाई नहीं है, बल्कि, भारत में कुल पहले के 13 प्रधानमंत्रियों की नीतियों और लगभग 70 साल के ट्रैक रिकॉर्ड का विश्लेषण है !! उम्मीद है पाकिस्तान आईएसआई (JIT) को भारत में घुसने की परमिशन देने वालों को यह बात अब तो समझ आ ही गयी होगी! किसी ने फेसबुक पर लिखा कि वह तो शुकर है कि विपक्ष 'नपुंसकता को प्राप्त है', अन्यथा इस विषय पर पूरे देश में वह तूफ़ान खड़ा कर सकता था. विपक्ष को अगर हटा भी दिया जाय, बावजूद उसके जनता में केंद्र सरकार की एक बेहद नकारात्मक छवि गयी है पाकिस्तान के साथ हो रही डीलिंग को लेकर! अगर इसके नकारात्मक प्रभाव को कुछ कम करना है तो गलत फैसलों की सलाह देने वालों की शिनाख्त करके गलती को जल्द से जल्द सुधारा जाना चाहिए!
Pakistan JIT in India, bad step of Indian Government, new hindi article, mithilesh,
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