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1. दिवाली का भारतीय अर्थशास्त्र एवं चीन संग आधुनिक व्यापार! New Hindi Articles, Essays, October 2016
पिछले दिनों एक साप्ताहिक संगोष्ठी में गया तो संयोग से वहां 'दिवाली का भारतीय अर्थशास्त्र' विषय पर ही चर्चा चल रही थी. किस तरह से इस त्यौहार में कुम्भकार, पुताई करने वाले मजदूर, फूल बेचने वाले माली, मिठाई बनाने वाले हलवाई, कपास से रूई निकालने वाले जुलाहे इत्यादि भारतीय अर्थशास्त्र से जुड़े रहते थे, पर इस चाइनीज सामान ने सब चौपट कर दिया है. ऐसी परिस्थिति में अगर हम यह कह कर अपना पल्ला छुड़ाना चाहें कि यह सब जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही है, तो यह अपनी जिम्मेदारी से भागने जैसा ही होगा! चूंकि वैश्वीकरण के सन्दर्भ में तमाम पेंच ऐसे हैं कि सरकारें उलझ ही जाती हैं और ऐसे समय परीक्षा होती है हमारी राष्ट्रीय भावना की. यूं भी सरकारें जन आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति करने में कहीं ज्यादा भरोसा करती हैं. इस सन्दर्भ में एक कहानी मैंने सुनी थी, जिसका सन्दर्भ शायद जापान से था (शायद कोई और भी देश हो). इसके अनुसार उस समय परमाणु बम गिराने के बाद जापान में अमेरिका विरोधी भावनाएं तेजी से उबाल मार रही थीं, किन्तु कुछ समय बाद जापान सरकार को अमेरिका से व्यापारिक समझौता करना पड़ा. तब के समय अमेरिका से जापान में खूब सारे सेब (एप्पल) भेजे गए, जो बाज़ारों में सज भी गए. अमेरिका से आये सेब बेहद खूबसूरत और सस्ते भी थे, किन्तु तब बिना किसी शोर या विरोध के जापानियों में यह भावना उभर आयी थी कि अमेरिकन सामान नहीं खरीदना है और जो कहानी मैंने सुनी है, उसके अनुसार सेब पर हुआ पूरा समझौता अमेरिका को वापस लेना पड़ा था.
पिछले दिनों एक साप्ताहिक संगोष्ठी में गया तो संयोग से वहां 'दिवाली का भारतीय अर्थशास्त्र' विषय पर ही चर्चा चल रही थी. किस तरह से इस त्यौहार में कुम्भकार, पुताई करने वाले मजदूर, फूल बेचने वाले माली, मिठाई बनाने वाले हलवाई, कपास से रूई निकालने वाले जुलाहे इत्यादि भारतीय अर्थशास्त्र से जुड़े रहते थे, पर इस चाइनीज सामान ने सब चौपट कर दिया है. ऐसी परिस्थिति में अगर हम यह कह कर अपना पल्ला छुड़ाना चाहें कि यह सब जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही है, तो यह अपनी जिम्मेदारी से भागने जैसा ही होगा! चूंकि वैश्वीकरण के सन्दर्भ में तमाम पेंच ऐसे हैं कि सरकारें उलझ ही जाती हैं और ऐसे समय परीक्षा होती है हमारी राष्ट्रीय भावना की. यूं भी सरकारें जन आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति करने में कहीं ज्यादा भरोसा करती हैं. इस सन्दर्भ में एक कहानी मैंने सुनी थी, जिसका सन्दर्भ शायद जापान से था (शायद कोई और भी देश हो). इसके अनुसार उस समय परमाणु बम गिराने के बाद जापान में अमेरिका विरोधी भावनाएं तेजी से उबाल मार रही थीं, किन्तु कुछ समय बाद जापान सरकार को अमेरिका से व्यापारिक समझौता करना पड़ा. तब के समय अमेरिका से जापान में खूब सारे सेब (एप्पल) भेजे गए, जो बाज़ारों में सज भी गए. अमेरिका से आये सेब बेहद खूबसूरत और सस्ते भी थे, किन्तु तब बिना किसी शोर या विरोध के जापानियों में यह भावना उभर आयी थी कि अमेरिकन सामान नहीं खरीदना है और जो कहानी मैंने सुनी है, उसके अनुसार सेब पर हुआ पूरा समझौता अमेरिका को वापस लेना पड़ा था.
Chinese goods, Indian goods, Hindi Article, New, Diwali Festival, Enemy Country, Be clear, Public, Industrialists and Indian Government Policies
बाद में किसी जापानी से जब किसी पत्रकार ने पूछा कि अमेरिकन्स ने आप के देश के ऊपर एटम बम गिराया और आप लोगों ने बदला नहीं लिया? उन जापानी महोदय का सीधा जवाब था कि 'हमने बदला ले लिया है.' सवाल आया कैसे? क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और जापान में कोई युद्ध तो हुआ नहीं! जापानी महोदय ने फिर जवाब दिया कि आज अमेरिकन राष्ट्रपति जिस पैनासोनिक कंपनी का फोन इस्तेमाल करते हैं वह जापान में बना हुआ है, जिस सोनी टेलीविज़न पर वह देश दुनिया की खबरें देखते हैं वह भी जापान में ही बना हुआ है. यह कहानी मैंने काफी पहले सुनी थी और शायद इसमें कुछ शब्दों की गलतियां भी हों, किन्तु सन्देश बेहद साफ़ है कि ...
Chinese goods, Indian goods, Hindi Article, New, Diwali Festival, Enemy Country, Be clear, Public, Industrialists and Indian Government Policies |
बाद में किसी जापानी से जब किसी पत्रकार ने पूछा कि अमेरिकन्स ने आप के देश के ऊपर एटम बम गिराया और आप लोगों ने बदला नहीं लिया? उन जापानी महोदय का सीधा जवाब था कि 'हमने बदला ले लिया है.' सवाल आया कैसे? क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और जापान में कोई युद्ध तो हुआ नहीं! जापानी महोदय ने फिर जवाब दिया कि आज अमेरिकन राष्ट्रपति जिस पैनासोनिक कंपनी का फोन इस्तेमाल करते हैं वह जापान में बना हुआ है, जिस सोनी टेलीविज़न पर वह देश दुनिया की खबरें देखते हैं वह भी जापान में ही बना हुआ है. यह कहानी मैंने काफी पहले सुनी थी और शायद इसमें कुछ शब्दों की गलतियां भी हों, किन्तु सन्देश बेहद साफ़ है कि ...
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2. अपने लिए बेहतरीन न्यूज-पोर्टल बनवाएं !! (Look Examples)
अगर कंटेंट की समझ आप में है और आप घर बैठे, बेहद कम खर्चे में अपना पोर्टल चलाना चाहें तो इसका सटीक उदाहरण आपको शांतिदूत.नेट के रूप में अवश्य देखना चाहिए. मिथिलेश द्वारा कस्टमाइज किये गए इस हिंदी न्यूज पोर्टल में बेहद उपयोगी फीचर्स हैं, जो तकनीकी रूप से इसे वर्ल्ड-क्लास वेबसाइट की श्रेणी में सहज ही खड़ा करते हैं. आइये देखते हैं, इस हिंदी न्यूज पोर्टल में ...
3. मेरी दूसरी संतान प्यारी बिटिया 'विमिशा' का इस दुनिया में आना (My Daughter)
आदरणीय जनों, प्रिय मित्रों,
पिछले लगभग दो हफ्ते से बेहद व्यस्त रहा हूँ और इसका कारण मेरे लिए बेहद खास रहा है, मेरी दूसरी संतान प्यारी बिटिया 'विमिशा' का इस दुनिया में आना ...
हालाँकि, कुछ मेडिकल कॉम्प्लीकेशंस की वजह से लगभग एक महीने पहले ही सिजेरियन करना पड़ा और इसी वजह से विमिशा को नर्सरी में भी रहना पड़ा. खैर, अब वह पूर्ण स्वस्थ रूप में घर पर है...
आप सबके आशीर्वाद की आकांक्षा है, आज भी, कल भी और परसों भी!
एक और बात: अपनी बिटिया के नाम से वेबसाइट शुरू की है, जिस पर उसी से सम्बंधित विभिन्न सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, व्यक्तिगत, सकारात्मक, नकारात्मक, सुधारात्मक मुद्दों पर, उसी की दृष्टि से बात रखने की कोशिश होगी. आपको पसंद आएगी, देखना और कुछ पोस्ट्स को पढ़ना, कमेंट करना नहीं भूलियेगा: http://www.vimisha.com
... सरकार इस मामले में सीधे इन्वॉल्व नहीं है, बल्कि लॉ कमीशन के जिन क्वेश्चन्स पर बवाल हो रहा है, कहीं न कहीं उसका कनेक्शन सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका से जुड़ा हुआ है. इसके साथ यह बात भी सच है कि तीन तलाक जैसे मामलों पर खुद मुस्लिम समाज के भीतर से ही बड़ी संख्या में महिलाएं आवाज उठा रही हैं, बावजूद इसके कहा जा सकता है कि अभी कम से कम अगले दस सालों के लिए देश इस चर्चा हेतु तैयार नहीं है. अगले दस सालों तक अगर केंद्र सहित अन्य राज्यों में भाजपा अपनी वर्तमान राजनीतिक स्थिति भी कायम रख पाती है तो निश्चित रूप से चीजें काफी आसान हो जाएँगी तो विश्वास का लेवल भी बढ़ जाएगा. तब तक कुछ हद तक जागरूकता भी निश्चित रूप से बढ़ेगी और फिर चर्चा सार्थक दिशा में चल सकने की सम्भावना भी बढ़ जाएगी. अन्यथा, हाल-फ़िलहाल इस मुद्दे पर सिर्फ और सिर्फ राजनीति की रोटियां ही सेंकी जाएगी और इसका परिणाम जनता में ...
आदरणीय जनों, प्रिय मित्रों,
पिछले लगभग दो हफ्ते से बेहद व्यस्त रहा हूँ और इसका कारण मेरे लिए बेहद खास रहा है, मेरी दूसरी संतान प्यारी बिटिया 'विमिशा' का इस दुनिया में आना ...
हालाँकि, कुछ मेडिकल कॉम्प्लीकेशंस की वजह से लगभग एक महीने पहले ही सिजेरियन करना पड़ा और इसी वजह से विमिशा को नर्सरी में भी रहना पड़ा. खैर, अब वह पूर्ण स्वस्थ रूप में घर पर है...
आप सबके आशीर्वाद की आकांक्षा है, आज भी, कल भी और परसों भी!
एक और बात: अपनी बिटिया के नाम से वेबसाइट शुरू की है, जिस पर उसी से सम्बंधित विभिन्न सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, व्यक्तिगत, सकारात्मक, नकारात्मक, सुधारात्मक मुद्दों पर, उसी की दृष्टि से बात रखने की कोशिश होगी. आपको पसंद आएगी, देखना और कुछ पोस्ट्स को पढ़ना, कमेंट करना नहीं भूलियेगा: http://www.vimisha.com
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... अखिलेश ने पूरे कार्यकाल तक सजगता से सरकार चलाई और समाजवादी पार्टी की आपराधिक छवि होने के बावजूद खुद को इस छवि से दूर रखने की न केवल कोशिश की, बल्कि इसमें कमोबेश सफल भी रहे. हालाँकि, इस बीच प्रदेश में कई आपराधिक घटनाएं हुईं , सरकार की बदनामी भी हुई, किन्तु बावजूद इसके अखिलेश की छवि बची रही जबकि इन सबका इल्जाम अन्य सपा नेताओं पर लगता रहा. हाँ, अखिलेश के ऊपर अन्य सपा नेताओं के हावी होने की भरपूर आलोचना हुई और उन्हें आधा मुख्यमंत्री तक कहा गया, वह भी साढ़े चार में से आधा! खैर, आलोचना अपनी जगह है किन्तु अखिलेश यह बात बखूबी जानते थे कि समाजवादी पार्टी में उनके विरोधी यही चाहते थे कि वह बीच कार्यकाल में अपना धैर्य खोएं और फिर अखिलेश को नाकाम साबित कर दिया जाए. बार-बार उन्हें उकसाया गया, उनके फैसलों को नीचा दिखाने की हद तक पलटा गया, किन्तु राजनीति समझने वाले इस लड़के की तारीफ़ ही करेंगे कि इसने विपरीत समय में भी विकास की राजनीति करने की कोशिश की और जिन्होंने इसे राजनीतिक रूप से नीचा दिखाया था, उनसे लड़ा भी, किन्तु जगह और वक़्त अखिलेश ने अपने हिसाब से तय किया! कार्यकाल समाप्ति की ...
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... बीसीसीआई से इतर अन्य धनिकों में जिन दो बड़े नामों का पाला कानून से हाल-फिलहाल पड़ा है, उनमें सहारा ग्रुप के सुब्रत रॉय सहारा एवं किंगफ़िशर के विजय माल्या रहे हैं. बीसीसीआई को इन दोनों का हश्र देख लेना चाहिए, जिनमें एक लगातार जेल आ जा रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट की फटकार खा रहे हैं तो दूसरा बंदा भारत छोड़कर भाग चुका है और डर डर कर ज़िन्दगी बिताने को मजबूर है. कई बार धनाढ्य व्यक्तियों या संस्थाओं के कानून और नैतिकता उल्लंघन को लेकर प्रतीत होता है कि इनके अधिकांश हित कानून-उल्लंघन के रास्ते ही तो नहीं चलते हैं? यह बात अपनी जगह है कि बीसीसीआई एक ऑटोनॉमस संस्था है, किन्तु उसे यह बात कदापि नहीं भूलना चाहिए कि आखिरकार वह 'भारत' का नाम इस्तेमाल करता है और इस आधार पर भारतीय कानून का प्रत्येक हिस्सा उस पर यथावत लागू होता है. ऐसे में अगर लोढ़ा समिति का आरोप है कि बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश नहीं माने हैं, तो यह बेहद गंभीर आरोप हैं और इसलिए ...
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... लगभग 1 लाख का बिल था और आप समझ सकते हैं कि ऐसे में मेरे माँ-पा पर क्या बीती होगी. खैर, टर्म्स तो टर्म्स होती हैं और एकबारगी तो मेरे माँ-पा के ध्यान में आया कि हो सकता है कि यह केस टर्म्स का उल्लंघन ही हो, किन्तु तब मेरे माँ-पा को भारी आश्चर्य हुआ जब हॉस्पिटल के डॉक्टर्स ने बताया कि इन्शुरन्स कंपनी ने जो ऑब्जेक्शन उठाया है, वह न केवल मेडिकली टर्म्स में मिस-इन्टरप्रेट किया गया है, बल्कि यह जान बूझकर टालने के लिए ही किया गया है, ताकि कस्टमर अपना क्लेम छोड़कर भाग जाए. चूंकि, मेरे पापा लेखन, पत्रकारिता और ऑनलाइन दुनिया से गहरे जुड़े हुए हैं तो फिर उनका दिमाग सक्रीय हुआ. इसके बाद कंपनी द्वारा कैशलेश रिजेक्शन के दिए गए कारणों को उन्होंने अध्ययन किया, टर्म्स पॉलिसीज देखी, हॉस्पिटल के डॉक्टर्स के साथ-साथ उन्होंने दूसरे हॉस्पिटल के डॉक्टर्स से भी इस सम्बन्ध में कन्सल्ट किया और सबमें यही बात सामने आयी कि मैक्स बुपा हेल्थ इन्शुरन्स कंपनी पैसा नहीं देना चाहती है, और इसलिए उसने यह रास्ता निकाल लिया है. इस सम्बन्ध में ...
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... भारत रूस का सम्बन्ध , बिना किसी शक के बेहतरीन रहा है और इसकी इमेज आज भी तमाम भारतवासियों के दिलों में है. शीतयुद्ध काल में अमेरिका जब पाकिस्तान के साथ मिलकर तमाम कुकर्मों को अंजाम देने में लगा हुआ था, तब वह रूस ही था जिसने न केवल भारत की इज्जत बचाई बल्कि विपरीत हालातों में वैश्विक स्तर पर उसके साथ भी खड़ा रहा. खासकर 1971 में जब बंगलादेशी स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा था और पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के विरोध में भारतीय सेना भी कराची में कब्ज़े की तैयारियां कर रही थी, तब पाकिस्तान के रहनुमा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने दिसंबर 1971 को भारत के खिलाफ किंग क्रूज मिसाइलों, सत्तर लड़ाकू विमानों और यहाँ तक कि परमाणु बम से लैस अपने सांतवे युद्धक बेड़े यूएसस इंटरप्राइजेज को दक्षिणी वियतनाम से बंगाल की खाड़ी की ओर कूच करने का आदेश दे डाला था. ब्रिटेन भी हमेशा की तरह अमेरिका की हाँ में हाँ मिला रहा था. कहते तो यह भी हैं कि तब अमेरिका ने भारत को घेरने के लिए चीन को भी उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, हालाँकि चीन तब तटस्थ ही रहा था. ऐसे दबाव की स्थिति में ...
... भारत रूस का सम्बन्ध , बिना किसी शक के बेहतरीन रहा है और इसकी इमेज आज भी तमाम भारतवासियों के दिलों में है. शीतयुद्ध काल में अमेरिका जब पाकिस्तान के साथ मिलकर तमाम कुकर्मों को अंजाम देने में लगा हुआ था, तब वह रूस ही था जिसने न केवल भारत की इज्जत बचाई बल्कि विपरीत हालातों में वैश्विक स्तर पर उसके साथ भी खड़ा रहा. खासकर 1971 में जब बंगलादेशी स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा था और पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के विरोध में भारतीय सेना भी कराची में कब्ज़े की तैयारियां कर रही थी, तब पाकिस्तान के रहनुमा रहे अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने दिसंबर 1971 को भारत के खिलाफ किंग क्रूज मिसाइलों, सत्तर लड़ाकू विमानों और यहाँ तक कि परमाणु बम से लैस अपने सांतवे युद्धक बेड़े यूएसस इंटरप्राइजेज को दक्षिणी वियतनाम से बंगाल की खाड़ी की ओर कूच करने का आदेश दे डाला था. ब्रिटेन भी हमेशा की तरह अमेरिका की हाँ में हाँ मिला रहा था. कहते तो यह भी हैं कि तब अमेरिका ने भारत को घेरने के लिए चीन को भी उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, हालाँकि चीन तब तटस्थ ही रहा था. ऐसे दबाव की स्थिति में ...
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