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"पर्यावरण दिवस" को सार्थक बनाएं! World Environment Day 2016, New Hindi Article, Mithilesh

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आज 5 जून को निश्चित रूप से टी.वी. खोलते ही कई चैनलों पर पर्यावरण की समस्याओं पर विशेषज्ञों के विचार एवं विवाद सुनाई देंगे. आखिर, पर्यावरण दिवस भी कोई चीज है और चूंकि इसको लेकर जितना शोर शराब होगा, व्यक्ति उतना ही पर्यावरण प्रेमी कहा जायेगा, इसलिए शोर खूब मचेगा, पर प्रश्न उठता है कि क्या वाकई पर्यावरण दिवस पर सिर्फ शोर से स्थिति में सुधार आ जायेगा? बीते कुछ सालों में मनुष्य ने बहुत प्रगति की है और अपने रहन-सहन को बेहतर बनने के लिए अंधाधुंध प्रकृति की अवहेलना भी की है, जिसका परिणाम ये हुआ है कि मनुष्य तथा अन्य वन-जीवों को अपने जीवन के प्रति संकट का सामना करना पड़ रहा है. मामला कई बार तो इस कदर खतरनाक दिखता है कि व्यक्ति तो व्यक्ति, देश और सम्पूर्ण विश्व के नेता भी कई बार इस पर गम्भीर चिंता जताते हैं, सम्मेलन करते हैं, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात! प्रदूषित पर्यावरण का प्रभाव पेड़ पौधों एवं फसलों पर पड़ा है. अक्सर ही असमय बरसात तथा सूखा फसलों को बुरी तरह से बर्बाद कर देते हैं. पानी के सारे श्रोत सुख रहे हैं या उनमें घुले रसायनों की वजह से पीने योग्य नहीं रह गए हैं और ऐसे में मानव जीवन पर संकट की चर्चा और उससे निकले समाधान पर कार्यान्वयन होना ही चाहिए. समुद्र तटों पर स्थित महानगरों को अब भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्र के पानी का स्तर बढ़ रहा है, जिससे इसके किनारों पर बसे महानगरों के डूबने का खतरा नज़र आता है. कहीं भूकम्प तो कहीं बाढ़ तो कहीं भूस्खलन ने तबाही मचा रखी है और यह नज़ारा पृथ्वी के हर एक कोने में देखने को मिल जाता है, वह चाहे नेपाल हो, पाकिस्तान हो, अमेरिका हो, चीन हो या फिर अपना देश भारत ही क्यों न हो! सड़कों पर दौड़ती गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की वजह से आज साँस लेना दूभर हो गया है. 

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इस औद्योगिक विकास के युग में संसार के सभी विकासशील और विकसित देशों में हजारों लाखों फैक्टरियाँ दिन रात चलती रहती हैं जिनसे निकलने वाला धुआं और विषैले पदार्थ हमारे पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं. प्रदुषण की वजह से ही सूर्य की खतरनाक किरणों से रक्षा करने वाली ओज़ोन परत में छेद बढ़ता ही जा रहा है. पृथ्वी का तापमान इतना बाढ़ गया है कि मार्च-अप्रैल के महीने में ही तापमान 50 के आंकड़े को छूने को बेताब हो जा रहा है. अभी जून का महीना चल रहा है, और क्या दिन, क्या रात, आपको गर्मी से त्राहि माम, त्राहि माम के अतिरिक्त कुछ और सुनाई न देगा! हालाँकि, इन समस्याओं के प्रति कई पर्यावरणविद सचेत हैं तो हमारे पर्यावरण को बचाने के लिए तथा लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के लिए साल में एक दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 5 जून को 'विश्व पर्यावरण दिवस' स्थापित किया गया था. ये लगभग 100 से अधिक देशों में मनाया जाता है तथा यह संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) द्वारा चलाया जाता है. विश्व पर्यावरण दिवस को मनाने का उद्देश्य है लोगों के मन में पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ाना तथा प्रकृति और पृथ्वी की रक्षा करने के साथ-साथ पर्यावरण को और बेहतर बनाना है. इस मौके पर विश्व भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, लेकिन बेहद दुःख की बात है कि ये आयोजन सिर्फ आयोजन तक ही सीमित रह जाते हैं. जन-मानस भी इसके प्रति दायित्व नही समझ पा रहे तो तमाम संस्थाओं के काग़जी कार्यक्रमों पर सवाल तो उठते ही हैं. अगर हम ठान लें कि हमें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कुछ करना है तो हमें इसके लिए ज्यादा मेहनत करने की जरुरत भी नहीं है. बस रोजमर्रा के कामों को करते हुए हम ये काम व्यक्तिगत स्तर पर भी आसानी से कर सकते हैं. 

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हमारी छोटी-छोटी, समझदारी भरी पहल पर्यावरण को बेहद साफ-सुथरा और तरोताजा कर सकती है, इस बात में दो राय नहीं. जैसे, जब भी हम बाजार जाते हैं तो प्लास्टिक के थैलों की बजाय हम घर से कपड़े का थैला ले जाएँ या कागज का थैला प्रयोग करें जिससे बेवजह प्लास्टिक का कचरा फैलने से बचेगा. इसी तरह, अक्सर हमने देखा है कि लोग कमरे में घुसते ही पंखा और लाइट चला लेते हैं लेकिन कमरे से बाहर निकलते समय पंखा और लाइट बंद करना भूल जाते हैं या जरुरी नहीं समझते. हमारे ऐसा करने से बिना जरुरत बिजली बर्बाद होती है जो पर्यावरण के हिसाब से ठीक नहीं है, क्योंकि बिजली उत्पन्न करने में हमारे पर्यावरण को नुक्सान पहुँचता हैं, इसलिए हमें बस जरूरत भर की बिजली ही खर्च करनी चाहिए. इसी कदम में हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है पानी. इसलिए बेहद जरुरी है कि हम पानी को सोच समझ कर और समझदारी से खर्च करें. हमारी कोशिश होनी चाहिए कि एक बार इस्तेमाल हुए पानी को भी दोबारा किसी दूसरे कार्य में इस्तेमाल कर लिया जाये. अपने आस-पास और अपने बच्चों को भी प्रेरित करें की पानी की फिजूलखर्ची न करें. आज-कल जमाना इंटरनेट का है तो हमें भी इसका लाभ लेते हुए अपने सारे बिलों का भुगतान आनलाईन करने की आदत डालनी चाहिए, इससे हमारा समय तो बचेगा ही साथ ही कागज की बर्बादी भी नहीं होगी. और तो और डीजल-पेट्रोल की बचत के साथ ही वायु प्रदुषण भी कम होगा. और सबसे जरुरी बात हमें स्वयं पेड़ लगाने चाहिए और दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए. 

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अगर हम इन छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देने लग गए तो क्रांति की शुरुआत जरूर हो जाएगी और हमारी आने वाली पीढ़ियों को हम एक स्वस्थ वातावरण जरूर ही मुहैया करा सकेंगे. हालाँकि, बढ़ती जनसंख्या का पर्यावरण के ह्रास से सीधा सम्बन्ध है, इसलिए सरकार को भी इन मामलों की तरफ कड़ाई से ध्यान देना चाहिए. साथ ही साथ, बढ़ता शहरीकरण, जंगलों की कटाई इत्यादि पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने के प्रमुख कारणों में शामिल हैं. विकसित और विकासशील देशों के बीच ग्रीन हाउस उत्सर्जन को लेकर हमेशा ही विवाद रहा है और अभी हाल ही में इसको लेकर कई सम्मेलन भी हुए है, जिस पर काफी हद तक सहमति भी बनी है. देखना दिलचस्प होगा कि विश्व भर के देश और उनका नेतृत्व इन मामलों पर क्या रूख अपनाता है तो व्यक्तिगत स्तर पर नागरिक इसके प्रति क्या कदम उठाते हैं. कम से कम हर व्यक्ति यथासम्भव प्लास्टिक इस्तेमाल न करने की कसम ही खा ले, फिर तो पर्यावरण दिवस की सार्थकता जरूर होगी, अन्यथा हर साल की भांति खानापूर्ति तो चल ही रही है!

- मिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली.



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